"प्रत्येक व्यक्ति में कुछ गुण भी होते हैं और कुछ दोष भी। गुण सदा सुखदायक होते हैं, और दोष सदा दुखदायक होते हैं।"
"गुण बड़े हों, या छोटे, वे तो सदा सुख ही देते हैं। परंतु दोष बड़े हों या छोटे, वे सदा दुख ही देते हैं।" "दोषों की संख्या के साथ साथ उनकी मात्रा भी महत्वपूर्ण होती है। यदि दोषों की संख्या और मात्रा थोड़ी-थोड़ी है, तो अधिक घातक नहीं होंगे। यदि दोषों की संख्या और मात्रा अधिक है, तो वे अधिक घातक हो सकते हैं।"
"यदि एक दो दोष हों, तो कम हानिकारक हैं, यदि 5/7/8/10 दोष हों, और अधिक मात्रा में हों, तब तो उन दोषों को धारण करने वाला व्यक्ति एक जीवित बम की तरह होगा, जो कभी भी कहीं भी फट सकता है। यदि बम फटेगा, तो बहुत विनाश करेगा।"
इसलिए अपना आत्म निरीक्षण प्रतिदिन करें। "यदि आपके अंदर काम क्रोध लोभ मोह अभिमान ईर्ष्या जलन अविद्या मूर्खता राग द्वेष खिन्नता घृणा और असहिष्णुता आदि बहुत सारे दोष हैं, और वे भी यदि अधिक मात्रा में अर्थात हाई लेवल में हैं, तब तो आप किसी बम से कम नहीं है, जो कभी भी कहीं भी फट सकता है, और अपना तथा दूसरों का विनाश कर सकता है।"
"इसलिए अपने दोषों को दूर करें, और अपने अंदर छोटे-बड़े अच्छे गुण स्थापित करें। जैसे सभ्यता नम्रता सेवा परोपकार दान दया समय का पालन करना बड़ों का आदर सम्मान करना ईश्वर का ध्यान करना यज्ञ करना व्यायाम करना इत्यादि। इन गुणों को धारण करने से आप सुखपूर्वक अपना जीवन जी सकते हैं।"
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़ गुजरात।”