कविवर संजय पंकज को परमेश्वर नारायण स्मृति साहित्य सम्मान से विभूषित किया गया
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शॉल, पुष्पगुच्छ, सम्मान पत्र, अभिनंदन पत्र और 51000 की राशि से किया गया सम्मानित।
डॉ रामभद्र ने भी छात्र-छात्राओं के संग साथ ही मां है शब्दातीत के दोहे गाए और कहा कि मुझे मेरे विद्यार्थियों ने प्रेरित किया कि मैं संजय पंकज जी की रचनाधर्मिता का अभिनंदन करूं।
डॉ रामप्रवेश सिंह और डॉ पूनम सिन्हा ने संजय पंकज के रचनात्मक व्यक्तित्व की विस्तार से चर्चा की।
डॉ विजय शंकर मिश्र ने शब्दों के फूल खिले गीत की सस्वर प्रस्तुति करते हुए कहा कि संजय पंकज हृदय को छूते हैं क्योंकि ये आत्मा की भाषा में गीत रचते हैं।
“कविता मुझे मेरा दर्शन कराती है। मैं आत्ममुग्ध नहीं, सर्व समावेशी हूं।यह सम्मान भाव, संवेदना और शब्द का है, मैं तो निमित्त मात्र हूं। “- आभार में कहा डॉ संजय पंकज ने।
हिन्दी साहित्य साधक सुप्रसिद्ध कवि-गीतकार डॉ संजय पंकज को इक्कावन हजार रुपए की सम्मानित राशि के साथ परमेश्वर नारायण स्मृति साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान परमेश्वर नारायण मेमोरियल विकास सेवा संस्थान मोरसंड के तत्वावधान में ज्ञान भारती पब्लिक स्कूल के दिनकर सदन में उपस्थित सैकड़ों बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों की उपस्थिति में समारोहपूर्वक दिया गया। अध्यक्षता पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष बिहार विश्वविद्यालय डा पूनम सिन्हा ने की और मुख्य अतिथि के रूप में विद्वान प्राध्यापक, समीक्षक चिंतक डॉ राम प्रवेश सिंह तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ अबूजर कमालुद्दीन, डॉ रामेश्वर द्विवेदी, डॉ दशरथ प्रजापति, डॉ त्रिविक्रम नारायण सिंह, डॉ विजय शंकर मिश्र, डॉ राघवेन्द्र, डॉ रेणु सिंह मंच को सुशोभित कर रहे थे। अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित करने के साथ ही समारोह शुरू हुआ। विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने संजय पंकज के कई गीतों पर नृत्य और गायन की आकर्षक प्रस्तुतियों से सबको सम्मोहित कर दिया। बंजारे भाग रे, तुम्हारी हंसी, पाहुन आएगा, जाने क्यों घबराया चांद, नया विचार करें जैसे गीतों के साथ ही मां है शब्दातीत के दोहे पूरे वातावरण में अपने माधुर्य और प्रभाव को घोलते हुए सबको विमुग्ध कर गए। गीत नृत्य के आनंद में डूबे हुए दर्शकों और श्रोताओं का ज्ञान तब टूटा जब तालिया की गरगराहट के बीच डॉ संजय पंकज का सम्मान क्रमशः शुरू हुआ। डॉ राघवेन्द्र ने शॉल, ज्ञान भारती पब्लिक स्कूल के निदेशक रामभद्र ने सम्मान पत्र, रश्मिकुमारी ने अभिनंदन पत्र, डॉ रेणु सिंह ने इक्कावन हजार की राशि समर्पित करके डॉ संजय पंकज को विभूषित किया। आशीर्वाद, शुभकामनाएं, स्नेह, सम्मान व्यक्त करनेवालों में कथाकार राजेंद्र सिन्हा, रामशंकर शास्त्री, आर आर त्रिवेदी, विमल कुमार परिमल, सुरेश वर्मा, आनंद कुमार मिश्र, रामबाबू सिंह, डा आशा कुमारी, द्विवेदी जी,नीलमभद्र, डॉ केशव किशोर कनक, कुमार राहुल, वीरेंद्र सिंह, चुन्नू बाबू, पवन कुमार वत्स,डा अनु , गोपाल शाही, राधेश्याम सिंह, डी सी द्विवेदी आदि प्रमुख थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन दिलीप कुमार तथा सम्मान सत्र का संचालन परमेश्वर नारायण मेमोरियल विकास सेवा संस्थान के सचिव रामभद्र और संवाद संबोधन सत्र का संचालन डॉ विजय शंकर मिश्र ने किया।
संस्थान के सचिव डॉ रामभद्र ने कहा कि ‘मां है शब्दातीत’ जैसी महत्वपूर्ण कृति के कारण श्रेष्ठ और लोकप्रिय हैं कविवर संजय पंकज। महान रामकथा वाचक मुरारी बापू इस कृति की अपने प्रवचनों में करते हैं चर्चा। रामप्रवेश सिंह ने कहा कि संजय पंकज व्यापक भाव राग के भाषा सिद्ध कवि हैं। डॉ पूनम सिन्हा ने कहा कि डॉ पंकज लोकसंस्कृति और परंपरा से जुड़कर समकालीनता की जमीन को उकेरते हुए भविष्य का पथ प्रशस्त कर रहे हैं। डॉ अबूजर कमालुद्दीन ने संजय पंकज के भाषा वैशिष्ट्य पर बोलते हुए कहा कि तत्सम, देशज और विभिन्न भाषाओं के शब्दों का बहुत ही प्रभावशाली प्रयोग इनकी रचनाओं में मिलता है। डॉ राघवेंद्र ने कहा कि यह सम्मान डॉ संजय पंकज जैसे समर्थ और श्रेष्ठ शब्द साधक को सम्मानित करके स्वयं ही सम्मानित और गौरवान्वित हो रहा है। आभार व्यक्त करते हुए संजय पंकज ने कहा कि कविता मुझे मेरा दर्शन कराती है। मैं आत्ममुग्ध नहीं सर्व समावेशी हूं। यह सम्मान भाव, संवेदना और शब्द का है, मैं तो निमित्त मात्र हूं। गीतों की दुनिया बड़ी निश्छल और प्रेमिल होती है। पुरस्कार और सम्मान रचनात्मक चुनौती है जिसे लेखक को दृढ़ता और संकल्प से स्वीकारना चाहिए। विदित हो कि डॉ संजय पंकज समर्थ लेखन,ओजस्वी संबोधन तथा कुशल संपादन कला के लिए जाने जाते हैं। ‘गांधारी की पट्टी नहीं है शब्द, यवनिका उठने तक, मंजर मंजर आग लगी है,मां है शब्दातीत, यहां तो सब बंजारे, सोच सकते हो, शब्द नहीं मां चेतना, बिहार केसरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह, समय बोलता है, मौसम लेता अंगड़ाई, शब्दों के फूल खिले, बजे शून्य में अनहद बाजा, बिहार की लोककथाएं’ – जैसी विभिन्न विधाओं की कृतियों से साहित्य के विमर्श में लगातार बने रहते हैं। इनकी वैचारिक और रचनात्मक अभिव्यक्ति राष्ट्रीय स्तर पर मंचों, सेमिनारों, दूरदर्शन, रेडियो तथा गोष्ठियों के माध्यम से प्रस्तुत होती रहती हैं। इनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर डॉ रेवती रमण तथा श्यामल श्रीवास्तव के संपादन में मूल्यांकन ग्रंथ ‘जातीय संवेदना और प्रगतिशील विचार ‘ नाम से वर्षों पहले आ चुका है। राष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित डॉ संजय पंकज ने भिक्षुक, कमल दल, सुगंध, सौदामिनी, पारिजात, नई आकृति, इंद्रधनुष, उत्कर्ष, गरिमा, कावेरी, दृष्टि, शिवम सुंदरम, अग्रणी, कला अभिप्राय,बेला आदि पत्रिकाओं का संपादन किया है। टीवी सीरियल – ‘भूमि’, ‘खड़ी बोली का चाणक्य’, ‘सांझ के हमसफर’ में अपनी अभिनय-कला की छाप छोड़ी। ‘जानकीवल्लभ शास्त्री संचयिता’ पांच खंडों – मेरे पथ में न विराम रहा, वह तान कहां से आई, समुद्र की गहरी हरी आत्मा, मेरा रास्ता आसान नहीं, बरगद के साए में’ के अतिरिक्त ‘कल्पतरु’ ‘अविराम’ (मूल्यांकन ग्रंथ) का भी संपादन किया। रेलवे हिंदी सलाहकार तथा नेशनल बुक ट्रस्ट के न्यासी संजय पंकज ‘बेला’ के संपादक ‘विशुद्ध स्वर’ एवं ‘ऑनेस्ट रिपोर्टर’ के सलाहकार संपादक हैं। सम्मानित होने पर डॉ महेंद्र मधुकर, डॉ इंदु सिन्हा, डॉ शारदाचरण, डॉ वीरेंद्र किशोर, पूर्व मंत्री बिहार सरकार सुरेश शर्मा, भाजपा जिलाध्यक्ष रंजन कुमार, डॉ पुष्पा प्रसाद, एच एल गुप्ता, डॉ अरुण साह, डॉ एच एन भारद्वाज, डॉ विनोद, डॉ नवीन कुमार, डॉ कंचन, देवेंद्र कुमार, रामवृक्ष चकपुरी, सत्येंद्र कुमार सत्येन, श्यामल श्रीवास्तव, ब्रजभूषण शर्मा, डॉ यशवंत, मनोज झा, मुकेश त्रिपाठी, अविनाश तिरंगा अखिलेश राय, सियाराम तिवारी, प्रमोद आजाद, सुधांशु राज ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए अपनी शुभकामनाएं दीं।