अपने गुणों में अद्वितीय है नीम
सुनीता बापना / कुसुम अग्रवाल
इसके वृक्ष प्राय: भारत में नैसर्गिक रूप से पाये जाते हैं और इनकी महत्वता देखते इनको जगह-जगह लगाए भी जाते हैं। नीम को मृत्युलोक का कल्प वृक्ष माना जाता है। ‘सर्व रोग हरो निम्ब’, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है और इसी से इसका नाम ‘निम्बनिसंचति स्वास्थ्यम’ (अर्थात जो रोगों को दूर कर स्वास्थ्य बढ़ाता है,) रखा गया है ।
पिचुमर्द, (पिचूँ कुष्ठम मर्दयतिनाशयाति) के कुष्ठादि रक्त विकारों को नष्ट करता है।
अस्तु ‘नक्त न सेवेत दुगम’ (रात्रि में किसी वृक्ष के नीचे शयन न करें) यह शास्त्रीय नियम नीम पर नहीं लागू होता है। दूसरे वृक्ष तो रात में नाइट्रोजन अधिक मात्रा में छोड़ते हैं, किन्तु नीम वृक्ष रोग नाशक शुद्ध वायु ही विशेष छोड़ता है।
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में मिलता है। इसका उल्लेख
निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत । अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु ॥
अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, परिश्रम, तृषा, अरुचि, कृमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।
नीम के पेड़ का औषधीय के साथ-साथ धार्मिक महत्त्व भी है। माँ दुर्गा का रूप माने जाने वाले इस पेड़ को कहीं-कहीं पर नीमारी देवी भी कहते हैं। इस पेड़ की पूजा की जाती है। कहते हैं कि नीम की पत्तियों के धुएँ से बुरी और प्रेत आत्माओं रक्षा होती है।
अगर आप अपने घर या कार्य स्थल पर नीम का पेड़ लगाते हैं तो सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर भागती है।
भारतीय ग्रामीण समाज ने शताब्दियों पूर्व नीम को एक विशिष्ट वृक्ष के रूप में पहचाना तथा इससे प्राप्त जड़, तना, छाल, टहनियों, पत्तियों, पुष्प, फल बीजरस, तेल, अर्क आदि का अपने दैनिक जीवन में औषधियों, कीटनाशकों एवं उर्वरकों के रूप में भरपूर उपयोग किया है और इसे प्राकृतिक वैद्य की संज्ञा दी है। आधुनिक वैज्ञानिक खोजों ने नीम में पाये जाने वाले विभिन्न अवयवों का विश्लेषण करके इस तथ्य की पुष्टि की है कि यह अनमोल एवं अद्भुत गुणों से भरा एक अद्वितीय वृक्ष है।
पर्यावरण विशेषज्ञों, प्रकृतिविदों, चिकित्साविदों, कृषि वैज्ञानिकों एवं वन-विशेषज्ञों आदि द्वारा इसके विभिन्न गुणों जैसे वायरस रोधी, क्षय रोग नाशक, बैक्टीरिया नाशक, फफूंदी नाशक, अमीबा नाशक, फोड़ा / जहरबाद नाशक, खाज/खुजली नाशक, सूजन विरोधी, पाइरिया नाशक, चर्मरोग नाशक, मूत्रवर्धक, हृदय संबंधी, कीट नाशक, कीट डिंबनाशक, सूत्र कृमिनाशक और इसके योगिकों के अन्य जैविक क्रियाओं के कारण उत्पत्ति एवं औषधीय रूप से इसे बहुउपयोगी माना गया है।
अन्य वृक्ष तो रात के समय दूषित वायु नाइट्रोजन अधिक मात्रा में छोड़ते हैं पर नीम वृक्ष रोग नाशक शुद्ध वायु छोड़ता है।
एक दंतकथा है कि एक बुद्धिमान वैद्यराज ने अपना नूतन औषधालय किसी नगर में स्थापित किया था। एक अन्य व्यक्ति, जो दूर के नगर में रहते थे उन्होंने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक निरोगी ग्रामीण मनुष्य को एक पत्र देकर भेजा। पत्र में लिखा कि इस मनुष्य को जो रोग हो उसे बिना किसी औषधी के शीघ्र ही अच्छा कर भेजने की कृपा करें। उस मनुष्य को कह दिया कि रास्ते में रात्रि के समय इमली वृक्ष के नीचे शयन करते हुए नगर में जाकर प्रणाम कर उन्हें वह पत्र दिया। उसके शरीर पर कुछ शोध हो रहा था, जाना, उसने वैसा ही किया। नगर में पहुँचने पर उससे उक्त वैद्यराज के समीप
उससे पूछा । तो उसने कह दिया कि रास्ते में इमली वृक्ष के नीचे शयन किया। था। तुरंत ही वैद्यराज ने उसे पत्र देकर वापस भेजा और कह दिया कि रात्रि में नीम वृक्ष के नीचे शयन करना। उसने वैसा ही किया और फिर ग्राम में पहुँचकर वृद्ध वैद्यराज को पत्रोंत्तर दे दिया। उत्तर था कि आपके मनुष्य को बिना दवा के ठीक कर दिया। उस मनुष्य का शोध दूर हो गया।
अतः रात्रि में किसी पेड़ के नीचे शयन ना करें यह शास्त्रीय नियम नीम वृक्ष पर लागू नहीं होता है।
रसायनिक संगठन
वृक्ष की छाल में एक तिक्त रालमय अम्ल मार्गोसीन एसिड पाया जाता है। पुष्प में पाया जाने वाला तेल सदृश्य, गोंद श्वेतसार (starch) एवं (tannin) कषायम्ल भी होता है। बाह्य त्वक में यह टेनिन त्तठा अंतरत्क में इसमें तिक्त तत्व मार्गोसिक एसिड भी होता है, जो प्रबल कीटाणु नाशक होता है, इसलिए औषधीय कार्यों में अंतर छाल का प्रयोग क्वाथ बनाने में किया जाता है।
पत्तों उक्त तिक्त द्रव्य न्यून मात्रा में होता है, किंतु यह द्रव्य जल में अधिक सरलता से घुल सकता है। इसलिए इसके पत्ते व छाल विषम ज्वर, कुष्ठ आदि रोगों में कीटाणुनाशक गुण के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
पत्तों में विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा में होता है, तथा प्रोटीन, कैल्शियम एवं लोह तत्व होने की वजह से ये चौलाई, पालक आदि शाकों की अपेक्षा श्रेष्ठ है। बंगाल और बिहार में चैत्र मास में इनके पत्तों को सब्जी में मिला कर खाया। जाता है।
बीजों में 31 से 40 प्रतिशत एक गहरे पीत वर्ण का तिक्त, कटु एवं दुर्गंधयुक्त तेल होता है, जिसमें ओलिक एसिड (Oleic acid) आदि कई तत्व रहते हैं। इसमें गंधक भी कुछ अंश में पाया जाता है। यह तेल अत्यंत कड़वा व जल में घुलनशील (sodium margosate) एक लवण भी पाया जाता है। इस वृक्ष के पंचांग औषधि में प्रयोग होते हैं।
नीम के गुण व वैज्ञानिक महत्व
सदियों से यह वृक्ष अपने औषधीय व कीटनाशी गुणों के कारण भारतीय जनमानस में आदर का पात्र रहा है। चिकित्सा की आयुर्वेद व यूनानी पद्धतियों में औषधियाँ तैयार करने के लिए इस वृक्ष के विभिन्न भागों का उपयोग किया जाता है। शायद ही कोई ऐसा रोग हो जिसके उपचार में नीम का उल्लेख न हुआ हो ।
सदियों पुरानी प्रथा रही है कि भंडारित गेहूँ, चावल व अन्य अनाजों में भृंगों, कीटों व अन्य नाशक जीवों से बचाव के लिए नीम की पत्तियों को कपड़े में लपेट कर रखा जाता है।
वर्तमान में, कृषि में कीट नियंत्रण के एजेंट के रूप में नीम की सशक्त भूमिका को स्वीकार किया गया है। नीम के तेल की खली किटाणु नाशक होती है और इसको खाद के साथ मिलने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है।
नीम का सरल औषधीय उपयोग
नीम के वृक्ष को यदि नीम-हाकिम कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि अकेले नीम, सैकड़ों रोगों की दवा है। नीम का अंग-प्रत्यंग जैसे पत्तियाँ, छाल, लकड़ी, फूल, फल सभी उपयोगी और औषधी युक्त होता है। आयुर्वेद के मतानुसार नीम कफ, वमन, कृमि, सूजन आदि का नाश करने वाला, पित्तदोष और हृदय के दाह को शांत करने वाला है। साथ ही यह वात, कुष्ठ, विष, खाँसी, ज्वर, रूधिर विकार आदि को दूर करने में सहायक और केशों के लिए भी हितकारी है।
नीम का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों के निवारण में सहायक है।
- नीम की दातुन करने से दाँत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं।
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नीम की पत्तियाँ चबाने से रक्त शोधन होता और कांतिवान होती है। और त्वचा विकार रहित
३. नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं और ये खासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
- नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। 5. नीम के फल (निंबोली) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल
से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है। 6. नीम के द्वारा बनाया गया लेप बालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं। और कम झड़ते हैं।
- नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2.1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फायदा होता है।
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नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फायदा होता है।
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अन्य वृक्ष आदि पर चढ़ी हुई गिलोय की अपेक्षा नीम वृक्ष के गिलोय विशेष लाभकारी होती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि नीम केवल हमारे ही नहीं बल्कि समस्त पर्यावरण के लिए वैज्ञानिकता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे पूर्वज इनकी उपयोगिताओं से भली-भाँति परिचित थे। प्रत्येक जगह इसकी अनिवार्यता स्थापित करने के लिए इसके पूजन-प्रक्रिया को बढ़ावा दिया गया। कालान्तर में यही ‘नीम-पूजन’ के रूप में प्रचलित हुआ।