क्या है वृक्षों की पूजा का महत्व
सुनीता बापना / कुसुम अग्रवाल
भारतीय ग्रंथों में यज्ञों में समिधा के निमित्त पीपल, बरगद और आम के वृक्षों की काष्ठ को पवित्र माना गया है और कहा गया है ये वृक्ष सूर्य की रश्मियों के घर हैं। इनमें पीपल सबसे पवित्र माना जाता है। इसकी सर्वाधिक पूजा होती है क्योंकि इसके जड़ से लेकर पत्र तक में अनेक औषधीय गुण हैं। इसीलिए हमारे पूर्वज ऋषियों ने उन गुणों को पहचान कर सर्वसाधारण को समझाने के लिए उन्हीं की भाषा में कहा था इन वृक्षों में देवताओं का वास है तथा इन्हें देववृक्ष यानी देवताओं का वृक्ष मानना चाहिए।
धरती के दो छोर हैं-एक उत्तरी ध्रुव और दूसरा दक्षिणी ध्रुव । वृक्ष इन दोनों ध्रुवों से जुड़े रहकर धरती और आकाश के बीच ऊर्जा का एक सकारात्मक वर्तुल बनाते हैं। वृक्ष का संबंध या जुड़ाव जितना धरती से होता है उससे कई गुना ज्यादा आकाश से होता है।
वैज्ञानिक शोधों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि धरती के वृक्ष ऊँचे आसमान में स्थित बादलों को आकर्षित करते हैं, जिस क्षेत्र में जितने ज्यादा वृक्ष होंगे, वहाँ वर्षा उतनी ज्यादा होगी। धरती से वनों के समाप्त होते जाने से धरती पर वर्षा ऋतु का संतुलन भी बिगड़ने लगा है जिसके चलते कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ के नजारे देखने को मिलते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि वृक्षों का संबंध आकाश से है।
जीवन की दृष्टि से पर्यावरण मानव के लिए सर्वोच्च जरूरत है। जल, जंगल और जमीन तीनों उसके प्रमुख आधार हैं। भौतिक विकास की प्रक्रिया में जीवन के इन तीनों आधारों को प्रदूषण ने लील लिया है।
पेड़-पौधे ही पर्यावरण के रक्षक हैं। इनके बिना धरती पर जीवन संभव नहीं है। पर्यावरण संतुलन के लिए लोगों को अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। विकास की अंधी दौड़ लोग पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पैदा हो गई है। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने लगा है। गर्मी में अधिक गर्मी तो सर्दी में अधिक सर्दी पड़ती है। असामयिक वर्षा का कारण भी यही है।
वृक्ष हमारे जीवन और धरती के पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वृक्ष से एक ओर जहाँ ऑक्सीजन का उत्पादन होता है तो दूसरी ओर यही वृक्ष धरती के प्रदूषण को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दरअसल, यह धरती के पारिस्थितिकी तंत्र (Eco-System) को संतुलन प्रदान करते हैं।
वृक्ष के आसपास रहने से जीवन में मानसिक संतुष्टि और संतुलन मिलता है। वृक्ष हमारे जीवन के संतापों को समाप्त करने की शक्ति रखते हैं। माना कि वृक्ष देवता नहीं होते लेकिन यह अंधविश्वास या आडंबर नहीं, उनमें देवताओं जैसी ही ऊर्जा होती है। हाल ही में हुए शोधों से पता चला है कि नीम के नीचे प्रतिदिन आधा घंटा बैठने से किसी भी प्रकार का चर्म रोग नहीं होता। तुलसी और नीम के पत्ते खाने से किसी भी प्रकार का कैंसर नहीं होता। इसी तरह वृक्ष से सैकड़ों शारीरिक और मानसिक लाभ मिलते हैं।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण संरक्षण हेतु वृक्ष से संबंधित अनेक मान्यताओं और परम्पराओं को हमारे दैनिक जीवन में शामिल किया।
यह सर्वविदित सत्य है कि हर जीवित प्राणी श्वसन करता है। श्वसन की क्रिया में हम फेफड़ों से ऑक्सीजन भीतर लेते हैं और कार्बन-डाई ऑक्साइड बाहर छोड़ते हैं। जो हवा हम श्वास द्वारा भीतर लेते हैं उसमें करीब 78-79 प्रतिशत नाइट्रोजन, 20 प्रतिशत ऑक्सीजन और 1 प्रतिशत अन्य गैसें (जिसमें 103 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड भी होती है), व वाष्प होती है। श्वसन क्रिया में जब ऑक्सीजन भीतर जाती है तो उसकी मदद से खाना ऑक्सीडाइस्ड होता है तो खाना सुपाच्य ग्लूकोज में बदल जाता है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा बनती है जिससे हमारे जीवन के कार्य-कलाप चलते हैं। पर हमने कभी ये सोचा है कि अगर लगातार चौबीस घंटे कार्बन डाई ऑक्साइड प्रश्वास में निकलती रहे तो हमारे वातावरण का क्या हाल होगा ?
वृक्ष और पौधों को हम उत्पादक एवं स्वपोषक भी कहते हैं। इसका कारण यह है कि वे अपने आसपास की चीजों जैसे सूरज की रोशनी, ऑक्सीजन आदि खाना स्वयं बना लेते हैं। प्रकृति की देन, पेड़-पौधे दिन में सूर्य के प्रकाश, पर्यावरण में व्याप्त कार्बन डाई ऑक्साइड और पानी से ग्लूकोज और ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं (Photo Synthesis) । प्रकाश संश्लेषण के कारण ही समस्त प्राणियों के लिए पौधे जीवन का आधार बन पाते हैं। श्वसन की क्रिया में जो कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है, वह पत्तियों के अन्दर ही खाली स्थानों में पहुँचती है। इन्हीं पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया भी होती है। इसके लिए हवा में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग किया जाता है और श्वसन क्रिया में उत्पन्न कार्बन डाईऑक्साइड भी इसी में खप जाती है।
पेड़ हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये वायु प्रदूषण कम करने में हमारी सहायता कर पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं। जितने अधिक पेड़ होंगे पर्यावरण भी उतना ही शुद्ध रहेगा।
वृक्ष की उपयोगिता
• वे कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। भोजन और संरक्षण देते हैं।
• वे मिट्टी के कटाव को भी रोकते हैं। भूमि की उर्वरक शक्ति बनाए रखते हैं।
भूस्खलन सूखा, भूकंप जैसे प्राकृतिक विपदाओं को रोकने में भी सहायक होते हैं।
फल-फूल, खाद्य-पदार्थ, लकड़ी, कपास आदि अनेक महत्वपूर्ण वस्तुएँ हमें पेड़ों की बदौलत मिलती हैं।
प्राकृतिक सौन्दर्य बढ़ाते हैं और आँखों तथा मन को शांति देते हैं।
भारतीय संस्कृति में वृक्षों की पूजा का वैज्ञानिक आधार
यदि हम किसी प्राचीन या ऊर्जा से भरपूर वृक्षों के झुंड के पास खड़े होकर कोई मन्नत माँगते हैं तो वहाँ आकर्षण का नियम तेजी से काम करने लगता है। वृक्ष आपके संदेश को ब्रह्मांड तक फैलाने की क्षमता रखते हैं और एक दिन ऐसा होता है कि ब्रह्मांड में गया सपना हकीकत बनकर लौटता है।
वैज्ञानिक कहते हैं, मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग 60 हजार विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचारों का पलड़ा भारी है तो फिर भविष्य भी वैसा ही होगा और यदि मिश्रित विचार हैं तो मिश्रित भविष्य होगा। जो भी विचार निरंतर आ रहा है वह धारणा का रूप धर लेता है। ब्रह्मांड में इस रूप की तस्वीर पहुँच जाती है फिर जब वह पुनः आपके पास लौटती है तो उस तस्वीर अनुसार आपके आसपास वैसे घटनाक्रम निर्मित हो जाते हैं अर्थात योगानुसार विचार ही वस्तु बन जाते हैं। यदि आप निरंतर वृक्षों की सकारात्मक ऊर्जा के वर्तुल रहते हैं तो आपके सोचे सपने सच होने लगते हैं इसीलिए वृक्षों को कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गई है।
कुछ ऐसे विशेष पेड़-पौधे भी हैं जिनकी पूजा से हमारे सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हमारे परम ज्ञानी मनीषीयों ने पेड़ों की पूजा करने के विधान, उनके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए किया था।