गुरुमुखी व्यक्ति – इन्हें आन्तरिक अध्यात्मिक ज्ञान होता है ये संसार में सगुण रूप से गुरु को परमात्मा के रुप में मानकर अहंकार मुक्त होते हैं तथा खुद सेवक बनकर संसार के सही कल्याण के लिए ही जीते हैं और खुद को सेवक मानकर जीवन जीते हैं। जैसे – सन्त कबीर साहेब जी , सन्त रैदास साहेब जी ,जैसे सन्त तुलसीदास जी महराज जी, आदि लोग केवल खुद ही दास(सेवक) बनकर जिए। ये आनंद स्वरूप जागृत चेतन होते हैं ये सात्विक प्रकृति के होते हैं।*
मनमुखी व्यक्ति – इन्हें सांसारिक ज्ञान और केवल पोथियों का अहंकार होता है तथा ये अपने ज्ञान व विवेक को सबसे उत्तम मानते हैं और अहंकार इनमें ज्यादा होता है। इसलिए ये लोग संसार में खुद को स्थापित करना चाहते हैं जबकि इसे जो शरीर मिली है वो भी इस मनमुखी व्यक्ति की नहीं है। ये लोग अहंकार में लिप्त जड़ होते हैं तथा तामसी प्रकृति के होते हैं।*
अज्ञात
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