जिस समय तैमूर लंग ने भारत पर आक्रमण किया उस समय पंचायत के केसरिया झंडे के नीचे 80000 मल्ल योद्धा एकत्रित हुए। 40000 युवतियों और 20000 जवान लड़के तैयार हुए। दिल्ली से 100-100 कोश चारों ओर के योद्धा युद्ध के लिए इकट्ठे हो गए थे। इस सेना का सेनापतित्व योगराज बाल ब्रह्मचारी ने स्वीकार किया था। जो कि चौधरी बलवंत गुर्जर का पुत्र था। वह बहुत ही बहादुर योद्धा था। उसकी देशभक्ति के सामने सब नतमस्तक होते थे। वह हरिद्वार के पास एक गांव का रहने वाला था । पंचायती रिकॉर्ड से इसका जन्म ग्राम कैराणा और बालायन खाप की सीमा पर था। इसका गांव कुंजा सुनहरी सहारनपुर में बताया है। यतेंद्र जी ने इसे खूबड़ खाप में पवार गोत्र का लिखा है। इसका उप प्रधान सेनापति हिसार के पास के कोसी गांव के धूला को बनाया गया था । जो कि बाल्मीकि था। 52 लड़ाई लड़ने का उसका शानदार इतिहास था।
40000 वीरांगनाओं की सेना का सेनापतित्व उस समय रामप्यारी गुजरी ने किया था।
जब तैमूर दिल्ली को लूट रहा था और जनता को तलवारों से काट रहा था, तब पंचायती सेना के 20000 वीरों ने रात्रि में 3:00 बजे दिल्ली में तैमूर की 52000 की सेना पर अचानक हमला कर दिया था। 9000 शत्रु सैनिकों को गाजर मूली की तरह काटकर यमुना नदी में फेंक दिया था। जब तैमूर दिल्ली को छोड़कर मेरठ की ओर बढ़ा तो तीन दिन में दिल्ली में इसी प्रकार 15000 शत्रु हमारे लोगों ने काट डाले थे। अगला युद्ध तैमूर की भागती हुई सेना से मेरठ की पवित्र भूमि पर हुआ था। इसके बाद तैमूर सेना को हरिद्वार में भी हरवीर गुलिया जैसे नौजवान बलशाली वीर योद्धा के द्वारा चुनौती दी गई थी। उसने तैमूर की छाती में ऐसा भाला मारा कि तैमूर घोड़े से गिरने लगा। तभी उसके सरदार खिजर ने उसे संभाल कर घोड़े से अलग कर दिया। तब साठ भाले और पांच तलवारें हरवीर गुलिया पर एक साथ टूट पड़ी। पर वह घबराए नहीं । उस वीर योद्धा को 52 घाव हुए। उस समय गुलिया की 22 वर्ष की अवस्था थी। कहते हैं कि हरवीर गुलिया द्वारा दिए गए घाव से ही अंत में तैमूर की मृत्यु हो गई थी। इसी युद्ध में हमारा वीर योद्धा हरवीर भी बलिदान हो गया था।
मेरठ का नौचंदी का मेला और वीरांगना मधुचंडी
मेरठ का नौचंदी का मेला बड़ा प्रसिद्ध है। पहले यह नवरात्रि नवचंडी अर्थात नौ देवियों का उत्सव के नाम से नवरात्रों के समय भरता था। अब 15 दिन का भरता है । तैमूर के आक्रमण के समय संवत 1455 विक्रमी में एक वीरांगना मधुचंडी अपना बलिदान देकर अमर हो गई थी। उसी की स्मृति में यहां पर एक मेल मंदिर बनाया गया और प्रतिवर्ष मेला लगाने की परंपरा डाली गई थी। तैमूर लंग के ऊपर यहां हमारे पंचायती सैनिक झपट्टा मार युद्ध से हमला करते थे। जिससे दु:खी होकर तैमूर लंग एक दिन खाना छोड़ कर भाग लिया था।
रानी कर्मवती के समर्थन में हुमायूं को दिया सैन्य बल
जिस समय रानी कर्मवती ने कथित रूप से हुमायूं को राखी भेज कर सहायता की अपील की थी उस समय सर्वखाप पंचायत ने बड़ा निर्णय लेते हुए हुमायूं को सैन्य सहायता देने का वचन दिया था। पर उस समय पंचायत ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि यदि हुमायूं रानी की सहायता के लिए नहीं गया या उसने जानबूझकर देरी की तो खाप पंचायत उसके विरुद्ध भी लड़ाई लड़ेगी। जब हुमायूं ने 2 लाख की सेना लेकर गुजरात की ओर प्रस्थान किया तो पंचायती सेना के 52000 सैनिक शाही सेना में सम्मिलित हो गए थे। हुमायूं के ठीक समय पर न पहुंचने के कारण चित्तौड़ की रानी कर्णावती ( कर्मवती) अपनी सैकड़ो वीरांगना देवियों के साथ सती हो गई थी। रानी कर्णावती तो संसार से चली गई पर पंचायती सेना के एक जत्थे के 21000 मल्लों ने बहादुर शाह को राजस्थान में जाकर हराया। एक पंचायती पुस्तक का लेख है कि इस युद्ध में महेंद्र पाल जाट , गठवाला, राजकरण गुर्जर, गंगा प्रसाद ब्राह्मण और हरसुख रवा, वीरों ने अपूर्व वीरता दिखाई थी। इस युद्ध में 100 राजपूत , 200 गुर्जर, 250 जाट, 160 सैनी 210 रवे और 85 ब्राह्मण वीर अपने प्राणों की आहुति दे गए थे।
(पुस्तक पंचायती शराब खाप की संगठन शक्ति संवत 2007 विक्रमी सम्राट ग्रंथ प्रकाशन विभाग पहाड़ी धीरज दिल्ली 2007 से)
मुख्य संपादक, उगता भारत