स्वामी श्रद्धानंद जी का बलिदान एवं अन्तिम संदेश
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स्वामी श्रद्धानंद , इस नाम का स्मरण होते ही मस्तिष्क में ऊँचा कद, चेहरे पर गंभीरता, वाणी में दृढ़ता लिए एक महामानव का नाम स्मरण हो जाता हैं जिन्हें जाति निर्माता कहूँ या फिर अमर शहीद कहूँ या फिर त्याग और तपस्या की मूर्ति कहूँ या मार्ग दर्शक कहूँ या फिर दलितौद्धारक कहूँ। स्वामी जी का विशाल जीवन कदम-कदम पर प्रेरणा देता हैं। उन महामानव के जीवन के कई ऐसे मोती हैं जो जीवन की अविचल धारा में लुप्त से हो गये हैं। पर हर बहुमूल्य मोती एक महाधन से कम नहीं हैं, उनकी प्रेरणा से न जाने कितनो के जीवन बदले हैं और न जाने कितनो के बदल सकते हैं।
क्या आप जानते हैं कि शुद्धि व्यवस्था जिसे आजकल हम घर-वापसी कहते हैं, को आंदोलन बनाने की शुरुआत आर्यसमाज के विद्वान् संन्यासी स्वामी श्रद्धानंद ने की थी। भारत में जब ईसाई और मुसलमानों की कपटी और क्रूरता भरी नीति ने लाखों हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन कर डाला था, तो उस दौर में स्वामी श्रद्धानंद जी ने लाखों की तादाद में ईसाई और मुसलमान बन चुके हिंदू भाइयों और माताओं की शुद्धि करके हिंदू समाज की रक्षा की। वास्तव में, स्वामी दयानंद की आर्यसमाज रूपी क्रांति ने हिंदू समाज को जीना सीखा दिया।
आर्यजाति के इस भयंकर धर्मसंकट को देखकर एक तेजस्वी और महात्मा का आर्यजाति में प्रादुर्भाव हुआ। जिसका ध्यान सहसा इस दुर्दशा की ओर आकर्षित हुआ और उसने अपनी तपस्या, विद्वत्ता तथा तेज आर्यजाति की सेवा के लिये अर्पण कर उसे बचाने के लिये श्रुति-स्मृति से विमुख ‘किं कर्तव्य विमूंढ़’ जाति के लिये “शुद्धि = ब्रह्माण्ड” के द्वारा आर्यजाति की रक्षा हो सकती है। ऐसा निश्चय करके उसके सामने रक्षा का उद्देश्य रख दिया। परन्तु रूढ़ियों को छुड़ाने और पार्शक्य पन की ग्रन्थियों को खोलने के लिये भीषण प्रयास और बड़े बलिदान की आवश्यकता हुआ करती है उसको भी उसने पूरा किया। उस प्रादुर्भूत स्वामी श्रद्धानंद के अनथक प्रयास से जहाँ स्वकीय समाज अप्रसन्न सा था, वहाँ विधर्मियों का समाज भी उससे कुछ कम क्षुब्ध और कुपित नहीं था, परिणाम स्वरूप महान स्वामी श्रद्धानंद जी मुसलमानों, इसाईयों और कुछ अदूरदर्शी अपने लोगों की आँखों में खटकते रहे, और उनका अन्तिम जीवनोत्सर्ग भी बुराईयों के प्रतिकार में हुआ।
शुद्धि से ही श्री श्रद्धेय स्वामी श्रद्धानन्द जी मुसलमानों की द्वेष की अग्नि भड़कती है जिसने अन्त में अपना यह पैशाचिक रूप प्रगट कर ही दिया, भारत के उद्धार और हिन्दू मुस्लिम ऐक्य के लिये सिर को हथेली पर रखने वाले, दिल्ली की सब से बड़ी उस जामामस्जिद के भंवर पर जहाँ कभी कोई हिंदू नहीं बैठा था, वहीं से बैठकर हिंदू मुसलिम दोनों ही को उपदेश करने वाले स्वामी जी इसलिये मुल्ला मौलवियों और पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ मुसलमानों की आँखों में चुभने लगे और उनके शत्रु हो गये, क्योंकि स्वामी ने शुद्धि का झण्डा ऊँचा उठाकर आर्यजाति को मरने से बचाने का संकल्प किया था, किन्तु अन्य मुसलमान-इसाईयों की भाँति आर्य्यतर धर्मान्याईयों को अपने में मिलाने का नहीं किन्तु अपने ही चिरकालीन बिछुड़े हुये भाइयों को वापस लेने का कार्य आरम्भ किया था
स्वामी जी पर मुसलमानी अखबारों ने, मुसलमान मुल्ला मौलवियों ने, पढ़े लिखे मज़हबी मुसलमानों ने गवर्नमेन्ट का पक्ष लेने वाले सर रहीम से लेकर राष्ट्रीयता का दम भरने वाले मौ० मोहम्मद अली, मौ० शौकत अली, किचलू तथा इस्लामी मज़हब के नाम पर आग भड़का कर पैसा कमाने वाले हसन निजामी आदि अनेक मुस्लिम नेताओं ने लेखों और अपने भाषणों द्वारा निरन्तर विषोदगार और प्रहार उनके अन्तिम समय तक प्रचलित रखा।
धर्मवीर स्वामी श्रद्धानंद जी ने 13 फरवरी 1923 ई० को शुद्धि का झंडा उठाकर सारे आर्यजगत में हलचल और नई चेतना पैदा कर दी। परिणाम स्वरूप लाखों धर्म विचलित हिन्दू फिर से आर्यजाति में सम्मलित हुये, करोड़ों हिन्दुओं के पैर फिसलते फिसलते बच गये और सोई हुई आर्यजाति जग पड़ी और फिर से उठकर बैठ गई। तीन वर्ष, दस मास और आठ दिन के भीतर इस तपस्वी आर्य पुंगव सन्यासी आर्य कुल शिरोमणि ने दिखला दिया कि सोये हुये सिंह जागते हैं तो किस प्रकार शृगालों के झुंड में अविलंब अपना प्रभुत्व स्थापित कर बैठते हैं ऐसा कर्मवीर निर्भय महापुरुष भला कब नीच शत्रुओं की आखों में न खटकता शुद्धि का कार्य आरम्भ करते करते भी आततायी हत्यारों की छुरियों का संकेत पहुंचा, परन्तु अमर आत्मा क्या कुंठित छुरियों और पत्थरों से भयभीय होने वाला था, जिस वीर योद्धा ने गोरखों की अनेक संगीनों के सामने अपनी छाती खोल दी थी, क्या वह नीच हत्यारे छिप छिप कर धोके से घात करने वाले मज़हबी कायरों छुरियों से भय खा सकता था? कदापि नहीं।
ऐ हिन्दुओ! मत समझो कि स्वामी जी मर गये। उनकी आत्मा हमारे में शामिल है। और उनके अग्नि द्वारा भस्म किये त्वचा, अस्थियों और मज्जा की राख से जमना के तीर दिल्ली नगर में विशाल वृक्ष उत्पन्न होगा जिसकी जड़ें पाताल में पहुँच कर नये नये वीर उत्पन्न करेंगी। जमना का पवित्र जल शुद्धि के उस वृक्ष को सींच कर दृढ़ और स्थिर बनायेगा और उस शुद्धि के वृक्ष की शाखायें भारतवर्ष से बाहर समस्त देशों में फैल कर आदर्श की स्थापना करेगा और विक्षुब्ध, अज्ञानान्धकार, आत्माओं की आर्य ज्योति से जगमगायेगा।
आर्य वीरों! उठो और इस सन्देश को सुनो और अपने कर्तव्य को समझ कर कार्य क्षेत्र में कूद पड़ो। देश धर्म के रक्षक वीरों आज का मेरा यही शुभ सन्देश है।
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