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परीक्षा पाँच प्रकार से होती है |
१) जो जो ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव और वेदों से अनुकूल हो, वह सत्य और जो उससे विरुद्ध है, वह असत्य है |
२) जो जो सृष्टिक्रम के अनुकूल है, वह सत्य है और जो सृष्टिक्रम से विरुद्ध है, वह सब असत्य है | जैसे कोई कहे कि माता पिता के संयोग के बिना ही लड़का उत्पन्न हो गया, ऐसा कथन सृष्टिक्रम के विरुद्ध होने से सर्वथा असत्य है |
३) आप्त अर्थात जो धार्मिक, विद्वान, सत्यवादी, निष्कपटियों का संग उपदेश के अनुकूल है और वह ग्रहण करने योग्य है, जो जो विरुद्ध है वह अग्राह्य है |
४) अपने आत्मा की पवित्रता विद्या के अनुकूल अर्थात जैसा अपने को सुख प्रिय और दुःख अप्रिय है, वैसे ही सर्वत्र समझ लेना कि मैं भी किसी को दुःख वा सुख दूंगा तो वह भी अप्रसन्न और प्रसन्न होगा |
५) पांचवीं परीक्षा यह है कि कोई भी विषय या बात आठों प्रमाणों पर खरी है या नहीं, आठों प्रमाण- प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, ऐतिह्य, अर्थापत्ति, संभव और अभाव |
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