मुस्लिम शासनकाल में गुलाम वंश के पश्चात खिलजी वंश का शासन 1290 से 1320 ई0 तक रहा था। इस वंश का अंतिम बादशाह मुबारक शाह 1316 ई0 से 1320 ई0 तक शासन करता रहा। इसके शासनकाल में वर्तमान मेरठ मंडल के अंदर बागपत नगर से उत्तर दिशा की ओर कुताना कस्बा यमुना नदी पर है। उपरोक्त पुस्तक ( पेज नंबर 126) से हमें जानकारी मिलती है कि मुबारिक शाह खिलजी के समय कुताणा का अधिकारी जाफर अली था। सं० 1374 वि० में वैशाख मास की अमावस्या के दिन घाट पर सूर्योदय के समय 262 आर्य देवियां यमुना नदी में स्नान कर रही थीं। तब नीच जाफर अली मुस्लिम सरदार ने अपने कुछ सैनिकों को साथ ले जाकर उन विरागंनाओं को अचानक जा घेरा। वे देवियां जाट, राजपूत, क्षत्रिय और ब्राह्मण घरों की थीं । नीच जाफर अली एक जाट घर की लड़की को चाहता था । उन्हें आते हुए देख कर सब देवियां सावधान हो गई और झट से वस्त्र पहन- कर अपने शस्त्र संभाल लिए। उनमें से कुछ लड़कियों को कामी जाफर अली की विलासी मनोवृत्ति का पता था । उन देवियों में से एक लड़की ने उस सदार से कहा-
“तुम एक बार हमारी बहन की बात सुन लो ।” वह बेशर्म लम्पट विषयी सरदार घोड़े से उतर कर उनके पास जा पहुंचा और उस लड़की को बीबी बनने के लिए कहा । ये शब्द कान में पड़ते ही उस धर्मप्रिय सती क्षत्राणी विरागंना ने नराधम पिशाच जाफरअली का सिर एक दम काट कर गिरा दिया। सरदार के मरते ही उन आर्य देवियों और विधर्मी पिशाचों में तलवारें चलने लगीं। शीघ्र ही 262 आर्य देवियां धर्म की बलि पर प्राणों की आहुति दे गईं पर धर्म पर आंच नहीं आने दी। एक भी नरपिशाच का हाथ अपने पवित्र शरीर पर नहीं पड़ने दिया ।
सर्वखाप पंचायत की ओर से इस जघन्य कांड की निन्दा की गई। जब बादशाह को इस घृणित घटना की सूचना मिली तो उसने पापी मण्डली के बचे हुए सैनिकों को कठोर दण्ड दिया और पश्चात्ताप पूर्वक से सर्वखाप पंचायत से माफी मांगी।
यह बलिदान गाथा सर्वखाप पंचायत सौरम के रिकार्ड से तथा साप्ताहिक ‘सम्राट्’ पत्र और मेरी पोथी अल्पना संख्या 13, जुन 1980 ई० से तथा गुरुकुल झज्जर के सुधारक बलिदान अंक अप्रैल 1256 ई० में पृष्ट 150-151 पर सिद्धान्ती जी के लेख से लिखा । यह सं० 1374 वि० की घटना है। गलती से बलिदान अंक में सं 1404 वि० छपा है। इन सभी अमर वीरागंनाओं को हम बार- बार शीश झुकाते हैं।
हत्यारे फिरोजशाह तुगलक ने 210 पंचायती नेता जलाए
(सं० 1400 वि०, 1352 ई०)
तुगलक वंश मुस्लिम शासन का तीसरा वंश था। इसके दूसरे बादशाह फिरोजशाह तुगलक ने सन् 1351 से 1388 ई० तक शासन किया। इसने सिंहासन पर बैठने से अगले वर्ष सन् 1352 ई०, सं० 1406 वि० में साम्प्रदायिक मतभेद के आधार पर जनता के धार्मिक कार्यों पर प्रतिबन्ध लगा दिया और उसे मनवाने के लिए अत्याचार किए तब सर्वखाप पंचायत हरियाणा के नेताओं ने इन शाही अत्याचारों को दूर करवाने के लिए एक बलिदान दल बनाया और हरियाणा के स्वयं सेवक योद्धा वीरों को छांट कर बादशाह के दरवार में दिल्ली भेजा । सर्वखाप पंचायत में सम्प्रदाय और जाति बिरादरी के भेद-भाव के बिना सम्मिलित । इस समय के वर्तमान जाति भेद के आधार पर 210 बलिदानियों की अलग-अलग संख्या ये थी :-
जाट = 66, ब्राह्मण = 25 अहीर = 15, गूजर= 15· राजपूत = 15, वैश्य = 10, हरिजन = 6, जुलाहे = 5, तेली = 5, कुम्हार= 4, धोबी = 3, नाई= 2 , बढ़ई = 12,खटीक = 4,जोगी = 2
लुहार = 6,सैनी = 5,रोड़ = 4,रवे = 3,गोसाई =2 कलाल – 2।
इन वीरों ने सर्वखाप पंचायत के नेताओं से आशीर्वाद लिया
और घर से चल पड़े। अपने विश्वास के अनुसार कार्तिक • पर लगाये गये थे। मांगे को गढ़ मुक्तेन्वर में गंगा में स्नान करके दिल्ली को प्रस्थान किया इसके साथ डेढ़ सौ ( 150) अन्य व्यक्ति भी चल पड़े जो दिल्ली के समाचार पंचायत के नेताओं तक पहुँचाने मैं इस बलिदाता वीर दल को देख कर जनता में जोश और रोश बढ़ जाता था। यह जत्था जन्मभूमि की जय बोलता हुआ मार्ग शीर्ष कृष्णासुदी सं० 1406 वि० को दिल्ली के शाही दरबार में पहुंच गया। वहाँ इन वीरों ने सबसे पूर्व बलि देने के लिए 5 अमर योद्धा छांटे। उनके नाम ये थे :-
1. सदाराम ब्राह्मण, 2. हर भजन जाट, 3. रूणामल वैश्य, 4. अन्तराम गुजर और 5. बाबरा भंगी । ये पांचों वीर दरबार के भीतर चले गये और शेष 205 वीर बाहर खड़े हुए जन्म भूमि के जयकारे लगाने लगे ।
बादशाह ने इनके जयनाद को सुना और पांचों वीरों को देख कर कहा – “क्यों शोर मचाते हो ?”
वीर हर भजन जाट – ‘जजिया कर हटाया जाए, मन्दिर और तोर्थों पर कर न लगाया जाये तथा धार्मिक कार्यों में जबरदस्ती न करो !
बादशाह ने काजी मुइउद्दीन—“तुम स्लाल कबूल कर ?” हर भजन जाट — ‘धर्म का सम्बन्ध आत्मा से है इसमें दबाव नहीं
दिया जा सकता।’
काजी- ‘क्या तुम धर्म पर प्राणों का बलिदान कर दोगे ? सब वीर एक साथ—हां हमारे लिए धर्म प्राणों से प्यारा है।
दों’। तब उन पांचों वीरों ने धर्म का जयघोष किया और एक पीछे एक दूसरा अग्नि में कूद कर धर्म की रक्षा के लिए अपने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। निर्दयी काजी ने उन 205 वीरों को भी बरता से अग्नि में धकेल दिया । वहां तुरन्त अग्नि जलवादी गई और काजी ने कहा- ‘सबूत दो’
उसी समय एक मुसलमान फकीर ने खुले शब्दों में उस हत्यारे काजी की निन्दा की और कहा – ‘बादशाह का हुकुम देश पर
चलता है धर्म पर नहीं । धर्म का सम्बन्ध खुदा से है, तुमने अन्याय किया है, बादशाहत नष्ट हो जायेगी । इस पर मुल्लाओं ने बड़ा और मचाया और फकीर को काफिर कह कह कर अग्नि में फेंक दिया। उस फकीर का नाम बुल्ला शाह था ।
जोनपुर वासी एक बहादुर पठान मुन्नू खाँ युसुफ जई नामक फिरके का था । वह इस अन्याय को सह न सका और हत्यारे काजी का सिर काट दिया और स्वयं भी पेट में छुरा घोंपकर बलिदान दे गया।
यह अमर बलिदान गाथा आर्य नेता पं० जगदेव सिद्धान्ती शास्त्री ने भी सुधारक पत्र के पुराने बलिदान अंक के पृष्ठ 252 पर तथा नए बलिदान अंक अप्रैल 1986 ई० के पृष्ठ 151 पर लिखा है, परन्तु उनके लेख में इस जघन्य हत्याकांड का काल 1300 वि० छपा है जो गलत है ,वास्तव में सं० 1406 वि० 1352 ई० ही था।
( लेखक – सर्वखाप पंचायत के रिकार्ड से )
डॉ राकेश कुमार आर्य