दुनिया में हर आदमी ही अपने आप को बुद्धिमान समझता है
हर व्यक्ति अपने मन में स्वयं को बहुत बुद्धिमान मानता है। "परन्तु उसके व्यवहारों से ऐसा दिखता नहीं है, कि वह बहुत बुद्धिमान है।" क्योंकि "अधिकांश लोग सारा जीवन पशुओं की तरह दिन रात काम रहते हैं। धन कमाने के चक्कर में ही पड़े रहते हैं। प्रतिदिन 12-12 घंटे धंधा व्यापार करते हैं। खूब मेहनत कर करके पैसा इकट्ठा करते हैं। बंगला बनाते हैं। कार खरीदते हैं।"
"परंतु परिवार के साथ बहुत कम समय बिताते हैं। परिवार पर पूरा ध्यान नहीं देते। मित्रों के साथ कहीं घूमने फिरने सैर सपाटे पर बहुत कम लोग जाते हैं। थोड़ा बहुत कभी जाते भी हैं, तो साल में एक आध बार।" "बाकी सारी शक्ति पैसे कमाने और इधर-उधर भाग दौड़ में ही खर्च कर देते हैं। जीवन का जो असली आनंद है, उसे प्राप्त करने में समय नहीं लगाते, शक्ति नहीं लगाते।"
"अपने माता-पिता आदि बड़ों के साथ बैठना, उनकी बात सुनना, उनके संदेश निर्देश पर आचरण करना, उनका आदर सम्मान करना उनकी सेवा करना, अपने बच्चों के साथ समय बिताना, उनको अच्छे संस्कार देना, ईश्वर का ध्यान करना, प्रतिदिन अपने घर में हवन करना, कभी-कभी सत्संग में भी जाना, कुछ समाज सेवा भी करना, उत्तम कार्यों में कुछ दान भी देना, गौ घोड़े कुत्ते आदि प्राणियों की रक्षा के लिए भी प्रयत्न करना इत्यादि, ये सब आनन्द देने वाले कार्य हैं।" "इनमें व्यक्ति कोई विशेष समय शक्ति या धन नहीं लगाता। केवल धन जमा कर करके अंत में यहीं छोड़ जाता है। मुझे तो इसमें कोई विशेष बुद्धिमत्ता नहीं दिखती।"
"सारा जीवन व्यक्ति तनाव या टेंशन में जीता है, बहुत सारी तो व्यर्थ की मेहनत करता है। 40/50 वर्ष की आयु के बाद शरीर में अनेक रोग लग जाते हैं। आगे जीवन भर उनका कष्ट सहता है, और बिना कुछ विशेष पुण्य कमाए यूं ही इतना मूल्यवान मनुष्य जीवन खो देता है। और जीवन का वास्तविक आनंद नहीं ले पाता। यह बुद्धिमत्ता नहीं कहलाती।"
"अतः वास्तविक बुद्धिमान बनें। ऊपर बताए पुण्य कर्मों का अनुष्ठान करें। अमूल्य मनुष्य जीवन का आनन्द लेवें।" स्मरण रखें, "मनुष्य जीवन बहुत कठिनाई से मिलता है, इसे व्यर्थ यूं ही खो देने में बुद्धिमत्ता नहीं है।"
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”