बाल अपराधियों की बढ़ती संख्या चिंताजनक
पवन कुमार वर्मा – विनायक फीचर्स
एक बड़ा महानगर और वहां के सबसे अधिक भीड़ भाड़ के इलाके का खूबसूरत बाजार है। एक नव दंपत्ति बाजार की सैर कर रहे हैं, अचानक महिला (पत्नी) एक दुकान पर बड़े गौर में कुछ देखने में मशगूल हो जाती है। पति-पत्नी दोनों किसी खूबसूरत चीज दुकान पर देखकर बातचीत में मशगूल है, इसी बीच एक लड़का आता है और महिला के गले से सोने की चेन खींच ले जाता है। पति-पत्नी चिल्लाते हैं और लोग दौड़ पड़ते हैं बच्चे को पकडऩे के लिए आखिर वह बच्चा पकड़ा भी जाता है, उसकी उम्र ज्यादा से ज्यादा तेरह वर्ष है। उसे डराने धमकाने पर वह बताता है कि वो यह काम पिछले तीन वर्षों से कर रहा है, एक कुख्यात गुंडे के इशारे पर बाल अपराधी कैसे बनते हैं, इनके द्वारा किस तरह की वारदातें होती हैं जिनमें मुख्य अपराधी बच्चे ही होते हैं। यह एक जटिल समस्या है जो इस देश में ही नहीं अपितु दूसरे देशों में भी मुंह बाएं खड़ी है।
अपराधी बनने के कारण
बच्चे जन्म से अपराधी नहीं होते, बल्कि तनावों, अभावों, सामाजिक विसंगतियों, अस्वस्थ मनोरंजन, अनुचित दिशा निर्देशन और सोशल मीडिया के कुप्रभावों के कारण अपराधी हो जाते हैं। गरीबी, अशिक्षा पर्याप्त मनोरंजन न होना या माता-पिता का बच्चों से उदासीन रहना जैसी स्थितियां भी बाल अपराध की उत्पत्ति करती हैं। बच्चों में परिवर्तनशील उम्र में सात वर्ष पार करने के बाद उनकी सूझ-बूझ, सोचने-समझने और विचार करने की शक्ति बढ़ती हैं, वहीं उनके समक्ष दो रास्ते भी होते हैं। एक सोच-समझ और धैर्य का रास्ता जहां सही शिक्षा सही देखभाल आवश्यक है तो दूसरा अपराध का। यह निसंदेह सामाजिक परिवेश और वातावरण के अनुसार बच्चे की मानसिक मनोदशा को परिवर्तित करते हैं।
आज का सामाजिक परिवेश बड़ी दीन-हीन और दयनीय दशा में है, कारण जो भी हो, सच्चाई को छिपाया नहीं जा सकता। हमारे देश में हुए कुछ सर्वेक्षणों के आधार पर बाल अपराधियों में सबसे अधिक प्रतिशत उन बच्चों का है, जिनके माता-पिता मुश्किल से पढऩा जानते हैं। बड़े परिवार भी बच्चे की अपराधी प्रवृत्ति को जन्मते हैं। अभिभावक बच्चों पर समुचित ध्यान नहीं दे पाते और न ही उनकी आवश्यकताओं को पूरा कर पाते। ऐसी स्थिति में बच्चे में बुरी आदतें पैदा हो जाती है। अत: यह दोष पूर्णत: मां-बाप को जाता है। एक बाल विशेषज्ञ के मतानुसार बच्चे अपने आसपास के वातावरण से भी प्रभावित होकर अपराध करना शुरू कर देते हैं। अनेक सर्वेक्षण के दौरान इस बात की पुष्टि भी हुई है कि बाल अपराधियों में अधिक प्रतिशत उनका है जिनके माता-पिता उचित संरक्षण एवं निर्देशन नहीं दे पाते, फलस्वरूप बच्चे छुट-पुट अपराधों की तरफ बढ़ जाते हैं। एक और सर्वे के आधार पर इस बात की भी पुष्टि हुई है कि इनमें अधिकतम बच्चे गरीब वर्ग के होते हैं और ये चोरी, जेबकतरी, आदि छुटपुट आरोपों में पकड़े जाते हैं।
गरीब घरों के बच्चे
इसके प्रमुख कारण पर हम गौर करें तो गरीबी की वजह से इनके माता-पिता उन्हें भरपेट दो टाइम की रोटी मुश्किल से उपलब्ध करा पाता हैं, बच्चे स्कूल नहीं जााते आरंभिक शिक्षा और सुविधाओं के अभाव, में जब वह दूसरे बच्चों से अपनी तुलना करते हैं तो उनके हृदय में हीन भावना जनमती है और वे अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए गलत रास्तों पर भटक जाते हैं, भटके हुए बच्चों पर कुछ पेशेवर अपराधी नजर रखते हैं और वे इन्हें अपने चंगुल में फंसाने के लिए आर्थिक संरक्षण के साथ-साथ पुलिस और कानून से तब तक बचाकर संरक्षण प्रदान करते हैं, जब तक कि वह पूर्ण कुशल अपराधी नहीं बन जाते। इनमें कुछ अपराधी, बच्चे घर से भागे, कुछ परीक्षा में अनुत्तीर्ण छात्र होते हैं तो कुछ मां-बाप से रूष्ट बच्चे भी।
एक सनसनी खेज बात यह भी है कि बाल अपराधियों में बड़ा प्रतिशत अपहृत बच्चों का है, जिन्हें व्यावसायिक अपराधी अपना शिकार बनाते हैं, इनमें संपन्न वर्ग के घरों से लेकर झुग्गी-झोपड़ी वाले बच्चे भी शामिल हैं। संपन्न वर्ग के बच्चों को फिरौती लेकर छोड़ देते हैं और निम्न वर्ग के बच्चों से भीख मंगवाते हैं या उन्हें अपराधी प्रवृत्ति में ढकेल देते हैं, जिसका लाभ बाद में अपहरणकर्ता उठाते हैं।
विदेशों में हुए अध्ययनों से यह बात स्पष्ट हुई है कि बच्चों पर जन माध्यम (फिल्म सिनेमा, सोशल मीडिया) आदि का भी प्रभाव पड़ता है। जिससे अपराधी प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।
अत: बच्चों के लिए अधिक से अधिक शिक्षाप्रद बाल फिल्में बनायी जानी चाहिए। आजकल बाल कानून के अंतर्गत हमारी पुलिस आवारा और संदेहात्मक बच्चों बाल सुधार गृह में भेजती है। यदि कोई विशेष बात न हो तो छानबीन करने के बाद इन्हें इनके माता-पिता को सौंप देती हैं या फिर इन्हें केंद्र या राज्य सरकार के बाल गृह निकेतन में भेजकर सुधारने का प्रयास किया जाता है। विशेष स्थितियों में इन्हें सजा दी जाती है।
आज बाल अदालतें है, बाल सुधार गृह है लेकिन इनके साथ समाज और मां बाप की भी जिम्मेदारी है कि वे छोटे संपन्न परिवार रखे और बच्चों पर प्रेम, सहानुभूति शिक्षा और चरित्र निर्माण में अपनी भूमिका निभायें तभी इस दिशा में सही प्रगति हो सकेगी। (विनायक फीचर्स)