श्री निहाल सिंह आर्य अध्यापक द्वारा लिखित ‘सर्वखाप पंचायत का राष्ट्रीय पराक्रम ( प्राचीन विशाल हरियाणा )’ नामक पुस्तक में विद्वान लेखक ने अनेक ऐसे ऐतिहासिक और छुपे हुए तथ्यों को स्पष्ट किया है जो आज की युवा पीढ़ी को विशेष रूप से जानने योग्य हैं। इस पुस्तक से हमको पता चलता है कि आज का हरियाणा कभी दिल्ली के चारों ओर दो – दो सौ कोस तक फैला हुआ था। यमुना नदी के पश्चिम में गंगानगर, फिरोजपुर, लुधियाना, कुरुक्षेत्र से लेकर गंगा नदी हरिद्वार, शुक्रताल, हस्तिनापुर ,गढ़मुक्तेश्वर तक का कुरु जांगल देश कहलाता था और गंगा नदी के पूर्व का भाग बरेली के आसपास का कुरू पांचाल देश कहलाता था।
इन क्षेत्रों में गणतंत्र या पंचायती व्यवस्था को नवीन पौराणिकों की योजना से गुप्त वंश के राजा ने क्षीण कर दिया। धीरे-धीरे इन पंचायतों का पुनर्गठन हुआ। जिन्हें आगे चलकर राजा हर्षवर्धन ने विशेष रूप से संरक्षित किया। इसी विशाल हरियाणा की थानेश्वर की भूमि पर हर्षवर्धन के द्वारा शासन की स्थापना की गई। इसी का प्रपौत्र आदित्यवर्धन था। उसका पुत्र प्रभाकर वर्धन था। जिसकी 662 वि0 में रोग से मृत्यु हो गई। राजा प्रभाकर वर्धन के साथ ही उनकी धर्मपत्नी यशोमती जलकर मर गई। राजा हर्ष यशोधर्मा का धेवता था।
तब हर्ष केवल 16 वर्ष का था। अपने बड़े भाई राज्यवर्धन की सहायता के लिए हूणों के विरुद्ध युद्ध में चल पड़ा था। जब उसे अपने भाई की मृत्यु की सूचना प्राप्त हुई तो उसे वैराग्य हो गया और राज्य कार्य को छोड़कर ईश्वर भक्ति के लिए जाने लगा। तब किसी विशेष त्यौहार के अवसर पर थानेश्वर कुरुक्षेत्र में सारे विशाल हरियाणा की161000 जनता इकट्ठी हुई। जिसमें लोगों ने राजा हर्षवर्धन को वन जाने से रोक कर स्वामी शांतानंद की अध्यक्षता में हुई सभा में अपना राजा घोषित किया। इस सभा में 5831 मल्ल और 561 पंचों ने विचार कर राजा हर्षवर्धन का राज्याभिषेक किया । 21 प्रमुख पंचों ने हर्षवर्धन को शासन भार सौंपा। राजा हर्ष को सभी खापों के सैनिक पूर्ण सहयोग देंगे ,ऐसा प्रस्ताव पारित किया गया। 16 से 75 वर्ष की आयु तक के सब पुरुष राजा की सेना के सैनिक होंगे ,ऐसा भी प्रस्ताव उस समय पारित किया गया । 15000 मल्ल और 2581 वीरांगनाओं की सेना ने तलवारों आदि से राजा हर्षवर्धन का अभिवादन किया। जगानंद भाट की पोथी से हमें इस प्रकार के और भी रोचक विवरण उपलब्ध होते हैं।
उस समय उत्तरी भारत के 90 राजाओं ने राजा हर्षवर्धन की अधीनता स्वीकार कर ली थी।
सिकंदर का वध एक वीरांगना के द्वारा हुआ था
चौधरी चेतराम आर्य पहलवान द्वारा लिखवाई गई “मेरी पोथी नंबर 7 इंस्पेक्टर 334 ईसा पूर्व ‘ के माध्यम से उपरोक्त पुस्तक के पृष्ठ संख्या 74 पर उल्लेखित किया गया है कि जब सिकंदर का आक्रमण भारत पर हुआ तो उस समय दो लाख की संख्या में मल्ल योद्धा अपने आप ही एकत्र हो गए। इन लोगों ने निश्चय किया कि हम सिकंदर को परास्त करेंगे। इनके पास 9000 हाथी, 8000 घोड़े, 5000 रथ दो लाख पैदल सैनिकों की सेना थी। इसमें बहुत ही सदाचारी, ब्रह्मचारी, महाबली ,विकट योद्धाओं को स्थान दिया गया था। जब सिकंदर की सेना को इस विशाल सेना की जानकारी हुई तो वह काँप उठी और उसने आगे बढ़ने से मना कर दिया था। उसने कह दिया था कि जब छोटे से राजा पुरु की सेना ने ही हमारे दांत खट्टे कर दिए हैं तो आगे बढ़ना किसी भी प्रकार खतरे से खाली नहीं है। उपरोक्त पुस्तक से हमें पता चलता है कि सिकंदर उस समय छोटे-मोटे राजाओं तथा पंचायती संगठनों से भिड़ कर मरते-मरते बच गया और भाग गया। इसी पुस्तक के द्वारा जानकारी होती है कि सिकंदर को एक वीरांगना लड़की ने नदी पार करते ही घोड़े पर छाती में जोर से भाला मारकर घायल कर दिया था। वह बगदाद में 22 दिन पड़ा रहा और अंत में मर गया। उसे हरदम वह वीरांगना भाला लिए दिखाई देने लग गई थी।’
दिल्लू की दिल्ली और राजा विक्रमादित्य
पुस्तक के लेखक ने स्पष्ट किया है कि राजा विक्रमादित्य के सेनापति राजा दिल्लू के नाम पर भारत की वर्तमान राजधानी दिल्ली का नाम रखा गया था । इस विषय की जानकारी देते हुए पृष्ठ 77 पर भगवती चरण भाट की पोथी का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया गया है कि महाराजा विक्रमादित्य के सेनापति दिलेराम ने एक युद्ध में शकों की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। यह राजा दिल्लू पहले भारत के कई प्रान्तों का राज्यपाल रह चुका था। इसका जन्म हरियाणा देश में थानेश्वर के पास एक गांव में हुआ था। जिस समय राजा विक्रमादित्य ने अपना संवत चलाया था उस समय यह दिलेराम उर्फ दिल्लू इंद्रप्रस्थ का राज्यपाल बनाया गया था। यह पांडवों के पुराने दुर्ग में रहा करता था। 21 वर्ष तक इंद्रप्रस्थ का राज्यपाल बना रहा था।
राजा विक्रमादित्य के बारे में आर्य शास्त्रार्थ महारथी पंडित लेखराम की खोज से पता चलता है कि वह बाल ब्रह्मचारी थे और उन्होंने ढाई सौ वर्ष तक का जीवन जिया था। मिश्र, अरब आदि देशों की प्रार्थना पर वहां का राज्य शासन भी चलाया था और तत्कालीन रोम के राजा अगस्त्य से भी पत्र व्यवहार किया था. 600 वर्ष तक इसका प्रचलित विक्रम संवत मालवे का शासक होने के कारण माली संवत कहलाता रहा। इसने 93 वर्ष तक शासन किया था।
डॉ राकेश कुमार आर्य