चौधरी चेतराम आर्य पहलवान द्वारा लिखवाई गई “मेरी पोथी नंबर 7 इंस्पेक्टर 334 ईसा पूर्व ‘ के माध्यम से उपरोक्त पुस्तक के पृष्ठ संख्या 74 पर उल्लेखित किया गया है कि जब सिकंदर का आक्रमण भारत पर हुआ तो उस समय दो लाख की संख्या में मल्ल योद्धा अपने आप ही एकत्र हो गए। इन लोगों ने निश्चय किया कि हम सिकंदर को परास्त करेंगे। इनके पास 9000 हाथी, 8000 घोड़े, 5000 रथ दो लाख पैदल सैनिकों की सेना थी। इसमें बहुत ही सदाचारी, ब्रह्मचारी, महाबली ,विकट योद्धाओं को स्थान दिया गया था। जब सिकंदर की सेना को इस विशाल सेना की जानकारी हुई तो वह काँप उठी और उसने आगे बढ़ने से मना कर दिया था। उसने कह दिया था कि जब छोटे से राजा पुरु की सेना ने ही हमारे दांत खट्टे कर दिए हैं तो आगे बढ़ना किसी भी प्रकार खतरे से खाली नहीं है। उपरोक्त पुस्तक से हमें पता चलता है कि सिकंदर उस समय छोटे-मोटे राजाओं तथा पंचायती संगठनों से भिड़ कर मरते-मरते बच गया और भाग गया। इसी पुस्तक के द्वारा जानकारी होती है कि सिकंदर को एक वीरांगना लड़की ने नदी पार करते ही घोड़े पर छाती में जोर से भाला मारकर घायल कर दिया था। वह बगदाद में 22 दिन पड़ा रहा और अंत में मर गया। उसे हरदम वह वीरांगना भाला लिए दिखाई देने लग गई थी।’
दिल्लू की दिल्ली और राजा विक्रमादित्य
पुस्तक के लेखक ने स्पष्ट किया है कि राजा विक्रमादित्य के सेनापति राजा दिल्लू के नाम पर भारत की वर्तमान राजधानी दिल्ली का नाम रखा गया था । इस विषय की जानकारी देते हुए पृष्ठ 77 पर भगवती चरण भाट की पोथी का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया गया है कि महाराजा विक्रमादित्य के सेनापति दिलेराम ने एक युद्ध में शकों की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। यह राजा दिल्लू पहले भारत के कई प्रान्तों का राज्यपाल रह चुका था। इसका जन्म हरियाणा देश में थानेश्वर के पास एक गांव में हुआ था। जिस समय राजा विक्रमादित्य ने अपना संवत चलाया था उस समय यह दिलेराम उर्फ दिल्लू इंद्रप्रस्थ का राज्यपाल बनाया गया था। यह पांडवों के पुराने दुर्ग में रहा करता था। 21 वर्ष तक इंद्रप्रस्थ का राज्यपाल बना रहा था।
राजा विक्रमादित्य के बारे में आर्य शास्त्रार्थ महारथी पंडित लेखराम की खोज से पता चलता है कि वह बाल ब्रह्मचारी थे और उन्होंने ढाई सौ वर्ष तक का जीवन जिया था। मिश्र, अरब आदि देशों की प्रार्थना पर वहां का राज्य शासन भी चलाया था और तत्कालीन रोम के राजा अगस्त्य से भी पत्र व्यवहार किया था. 600 वर्ष तक इसका प्रचलित विक्रम संवत मालवे का शासक होने के कारण माली संवत कहलाता रहा। इसने 93 वर्ष तक शासन किया था।
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत