ओ३म् आ दे॒वाना॒मपि॒ पन्था॑मगन्म॒ यच्छ॒क्नवा॑म॒ तदनु॒ प्रवो॑ळ्हुम् ।
अ॒ग्निर्वि॒द्वान्त्स य॑जा॒त्सेदु॒ होता॒ सो अ॑ध्व॒रान्त्स ऋ॒तून्क॑ल्पयाति ॥
ऋग्वेद 10/2/3
यज्ञ के तन्तु से बन्धे ही रहना
देवों का मार्ग है प्यारा
देखो यह सूर्य चन्द्र, अग्नि, पृथ्वी
सम्वत्सर कर रहे यज्ञ उजियारा
आओ देवों का यह मार्ग सदा
रखें हम उघारा
यज्ञ के तन्तु से बन्धे ही रहना
इन सारे देवों के यज्ञ-पालन में
होता नहीं है व्यतिक्रम
ऐसे ही मन बुद्धि प्राणेन्द्रियों में
करें देव यज्ञ का शिव सङ्गठन
देवों का देव परमात्मा महादेव
करता ब्रह्माण्ड यज्ञ सारा
यज्ञ के तन्तु से बन्धे ही रहना
देवों का मार्ग है प्यारा
इस मार्ग पर यदि चलने का
मन है शक्ति को अपनी तोलो
इस पर भी यदि तुम स्थिर रह सकोगे
तब मार्ग चलने की सोचो
आत्मा है अग्रणी तेजपुंज ‘अध्वरी’
यज्ञ बिन ना उसका गुजारा
यज्ञ के तन्तु से बन्धे ही रहना
देवों का मार्ग है प्यारा
विद्वान् आत्मा है देव मार्ग-राही
ज्ञाता है सारे यज्ञों का
यज्ञ निष्पादन में उसकी कुशलता
उसको बना देती ‘होता’
भद्र जनों को ना हानि पहुँचाता
ऐसा अहिन्सक वो न्यारा
यज्ञ के तन्तु से बन्धे ही रहना
देवों का मार्ग है प्यारा
अध्वर यज्ञ रचाये शिवात्मा
हर ऋतु में कालानुसार
काल-अकाल विचारित यज्ञ ही
होता है भली प्रकार
आओ बने पथिप्रज्ञ इस यज्ञ के
जीवन सफल हो यज्ञ द्वारा
यज्ञ के तन्तु से बन्धे ही रहना
देवों का मार्ग है प्यारा
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :- ५.१२.२००९ २३.१५ pm
राग :- सूर मल्हार
गायन समय मध्यान्ह, ताल दादरा 6 मात्रा
शीर्षक :- आओ देवों के मार्ग पर चलें
*तर्ज :- *
00127-727
तन्तु = बुनने वाला धागा (वंश परम्परागत)
उघारा = खुला हुआ
व्यतिक्रम = उल्टापुल्टा अव्यवस्थित
शिव = कल्याणकारी
अग्रणी = आगे ले जाने वाला
अध्वर = हिंसा रहित यज्ञ
निष्पादन = प्रस्तुत करना
‘होता’ = यजमान, यज्ञ करने वाला
शिवात्मा = कल्याणकारी आत्मा
पथिप्रज्ञ = विद्वता के मार्ग पर चलने वाला
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :– 👇👇
आओ देवों के मार्ग पर चलें
आओ हम देवों के मार्ग पर चलें। यज्ञ के तन्तु(बुनने का धागा) से बंधे रहना ही देवों का मार्ग है। देखो यह सूर्य, चंद्र, अग्नि पृथ्वी, ऋतु,संवत्सर आदि देव कैसे यज्ञ के मार्ग पर चल रहे हैं। कभी उनके यज्ञ पालन में व्यतिक्रम (उलटफेर) नहीं होता। शरीर में भी मन बुद्धि प्राण इन्द्रिय आदि देव कैसे संगठित हो देवयान का अवलम्बन कर शरीर यज्ञ को चला रहे हैं। समाज में भी ‘देव’ पदवी को पाए हुए महापुरुष यज्ञ के ही पथ पर चल रहे हैं। और सबसे बड़ा देवों का देव परमात्मा भी निरन्तर देव मार्ग पर चलता हुआ इस ब्रह्माण्ड यज्ञ का संपादन कर रहा है। कुछ तो हम चाहते हैं कि हम भी इस देव मार्ग के पथिक बनें।क्या तुम कहते हो कि इस मार्ग पर चलना अति कठिन है?तलवार की धार पर चलने के समान है अतः पहले अपनी शक्ति को तो तोलो कि तुम इस पर स्थिर रह भी सकोगे या कि नहीं, उसके पश्चात इस मार्ग पर पग बढ़ाना
सुनो हमने अपने सामर्थ्य को भली-भांति परख लिया है। हमारा आत्मा अग्नि है, अग्रणी है, तेज का पुञ्ज है, ज्योतियों की ज्योति है ।वह विद्वान है देवों की राह पर चलना और चलाना जानता है।अतः हमें देव-प्रदर्शित यज्ञ-मार्ग से भटक जाने का कोई भय नहीं है। कुछ तो हम निश्चिंत होकर उसके हाथों में अपनी यज्ञ की पतवार सौंप रहे हैं। वह ‘होता’ है यज्ञ- निष्पादन में कुशल है, संस्कृत हवि का होम करने में निष्णात है। वह जानता है
कि यज्ञ को अध्वर अर्थात् हिंसा-रहित ही होना चाहिए।भद्र जनों को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया यज्ञ, यज्ञ नहीं है। हमारा आत्मा ‘अध्वर’यज्ञों को रचाए और वही यह भी देखे कि किस यज्ञ के लिए कौन सी ऋतु? कौन सा समय उपयुक्त है। क्योंकि काल-अकाल का विचार किए बिना प्रारम्भ किया गया यज्ञ सफल नहीं होता। आओ हम देव-पथ के पथिक बनें।