ऋषि परंपरा वाहक अभाविप का सत्तरवां सोपान
यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक परिवार है तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का छात्र समूह इस परिवार का युवावर्ग है। इस युववर्ग के आदर्श स्वामी विवेकानंद हैं। संघ ने अपने परिवार के इस युवा सदस्य को जो सिखाया है, उसका मूल यही है –
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥
कौवे की तरह जानने की चेष्टा वाला, बगुले की तरह ध्यान लगाने वाले, कुत्ते की तरह जागृत अवस्था में सोने वाला व अल्पाहारी होकर आवश्यकतानुसार खाने वाला और गृह-त्यागी यही विद्यार्थी के पंच लक्षण हैं। निश्चित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की विगत उनहत्तर 69 वर्षों की अनथक यात्रा इन पांच लक्षणों के साथ ही हुई है। इतना यश, कीर्ति, पराक्रम, संयम, गौरव, पुण्य, उपलब्धि, वितान, विस्तार, उड़ान, गहनता, बहाव, उठाव, परिपक्वता, अल्हड़ता और सबसे बड़ी बात किसी सुंदर सी गीतिका जैसा स्वरूप किसी संगठन को यूं ही नहीं मिल जाता है। अभाविप ने यह सब गुण अपने उन पांच मूल गुणों से ही प्राप्त किए हैं जो उसने अपने मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सीखे हैं।
8,9,10 दिसंबर को अपना 69 वां अधिवेशन आयोजित कर रहे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जिसे संक्षेप में एबीवीपी अभाविप के नाम से भी पुकारा जाता है, भारत का ही नहीं अपितु विश्व का सर्वाधिक विशाल विद्यार्थी संगठन है। जिस विद्यार्थी परिषद की स्थापना 9 जुलाई, 1949 को हुई थी, आज वह अद्भुत यौवन व षोडस वय की ऊर्जा के साथ अपना उनहत्तरवां राष्ट्रीय अधिवेशन आहूत करने को तत्पर व उद्धृत खड़ा हुआ है। इस अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में देश के गृह मंत्री अमित जी शाह एवं समापन में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पधार रहे हैं।
ज्ञान, शील और एकता इन शब्दों या मंत्र के साथ आगे बढ़ता हुआ यह विद्यार्थी संगठन अपने जीवन में अनेकानेक उपलब्धियों को प्राप्त करके अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहा है। अनेक लक्ष्यों वाले इस संगठन के मूल में एकमेव लक्ष्य है - भारत माता को परम वैभव के शिखर पर आसीन कराना। बांग्लादेशी अवैध घुसपैठ, कश्मीर से अनुच्छेद 370 का उन्मूलन, श्रीराम जन्मभूमि, बांग्लादेश को तीन बीघा भूमि देने के विरुद्ध सत्याग्रह, तुष्टिकरण, शिक्षा का भारतीयकरण, नई शिक्षा पद्धति, आतंकवाद का विरोध, शिक्षण संस्थानों में शुचिता-अनुशासन-गरिमा, शिक्षण संस्थानों के व्यवसायीकरण का विरोध, ग्रामीण क्षेत्र के चप्पे चप्पे में शिक्षा की व्याप्ति, आदि आदि जैसे न जाने कितने ही इस प्रकार के लक्ष्यों व आंदोलनों को करके यहां तक पहुंचा यह संगठन अब एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है।
अपनी 69 वर्षीय अनथक, अहर्निश, अद्भुत यात्रा में विद्यार्थी परिषद ने जो प्राप्त किया है वह दो ध्रुवों के मध्य सेतु बनने जैसा है। एक ध्रुव पर यह संगठन भारत की मूल ज्ञान परंपरा को अपने विवेक शिखर पर स्थापित कर रहा है तो दूसरी ओर यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय स्तर व वैश्विक शिक्षा पद्धतियों को अपने में आत्मसात् भी कर रहा है। यद्दपि भारतीय ज्ञान परंपरा व वैश्विक आधुनिक शिक्षा के एकात्म हो जाने का कार्य अभी पूर्ण नहीं हो पाया है किंतु नई शिक्षा नीति के माध्यम से विद्यार्थी परिषद ने इस कार्य को बहुत आगे तक तो ले ही आया है। भारतीय शिक्षा पद्धति में कई सुधारों की आवश्यकता को लेकर जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चिंतित व मननशील था तो विद्यार्थी परिषद संघ की इस चिंता को अनुकूलता में बदलने का एक बड़ा माध्यम भी सिद्ध हुआ है। संघ के नई शिक्षा नीति के लक्ष्य को विद्यार्थी परिषद ने ही प्राप्त करना प्रारंभ किया है। इस संगठन में केवल विद्यार्थियों का ही नहीं अपितु गुरुओं का भी सतत जुड़े रहना नई शिक्षा नीति को लागू करने के लक्ष्य में सहायक सिद्ध हुआ है।
किसी भी राष्ट्र की मूल पहचान उसकी शिक्षा पद्धति से ही निर्धारित होती है। संघ की यह अटल मान्यता रही है व विद्यार्थी परिषद का समूचा संगठन इस मान्यता का वाहक, संवाहक रहा है। स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा के बारे में कहा है कि “Manifestation of perfection already in a man!” इसे ही आगे बढ़ाते हुए, नर को नारायण करने की क्षमता शिक्षा में है, यही संघ परिवार की मान्यता रही है। संघ की इस विचार पद्धति को कोठारी आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में प्रतिबिंबित किया है - “राष्ट्र का भाग्य कक्षाओं में आकार लेता है” (“Destiny of the nation is shaped in classes”)। इस राष्ट्र की रक्त कोशिकाओं और धमनियों में भीतर तक घुस और धंस गये अंग्रेज मैकॉले को पिछले एक दशक में यूं ही बाहर नहीं किया गया है। इसके पीछे विद्यार्थी परिषद की, संघ परिवार की, सौ वर्षीय तपस्या का अमूल्य योगदान है।
नरेंद्र मोदी सरकार की जो उपलब्धियां आगामी शताब्दियों तक चमकती व राष्ट्र को चमत्कृत करती रहेंगी उनमें से एक सर्वाधिक प्रमुख “नई शिक्षा नीति” है। इस नई शिक्षा नीति के निर्धारण में विद्यार्थी परिषद का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। नई शिक्षा पद्धति के प्रारूप को तैयार कर रही के. कस्तूरीरंगन कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में इस योगदान हेतु अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का उल्लेख करते हुए इसके प्रति अपना धन्यवाद ज्ञापित किया है।
समूचे भारत के सभी राज्यों में अपने अस्तित्व को विस्तारित करने वाली विद्यार्थी परिषद ने छात्र संगठन के अपने मूल कार्य को वैसे ही सिद्ध किया है जैसे श्रीराम ने आगे बढ़ते हुए अपनी वानर सेना बनाई थी और रावण का वध किया था। आज देश के सभी प्रतिष्ठित, विशाल व गणनीय शिक्षण संस्थानों में छात्र संगठन के पदों पर विद्यार्थी परिषद की ध्वजा विराजित है तो यह इसके पुण्यकार्यों का ही द्योतक है।
नई शिक्षा पद्धति में दिये अपने योगदान में अभाविप चंद्रयान अभियान और स्वामी विवेकानंद से लेकर भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय ऋषि परंपरा, गुरुकुल परंपरा, आचार्य चाणक्य, वैदिक तत्व, पौराणिक आख्यानों को व अब आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तक को समाहित करके उसे समग्र बनाने का प्रयास किया है।
अपनी 69 वर्षीय यात्रा में परिषद ने न जाने कितने, अनगिनत अभियानों, आंदोलनों, आव्हानों को अभिमंत्रित करके हमारे समाज को व राष्ट्र को सिद्ध करने का कार्य किया है। इन सबकी सूची बनेगी तो संभवतः समुद्र भर की स्याही व धरती भर का कागज भी कम पड़ जाएगा, किंतु, फिर भी यदि हमें विद्यार्थी परिषद की इस विस्तृत यात्रा को तीन शब्दों में समझना हो तो उसके लिए इस संगठन के यह तीन शब्द ही पर्याप्त हैं - ज्ञान, शील और एकता!!
विद्यार्थी परिषद नवीन परिवर्तनों की वाहक बनी है, सामाजिक समरसता को तो जैसे यह पर्याय बन गई है, समस्याओं के निवारण का यह अचूक मंत्र है, पर्यावरण सरंक्षण का यह यंत्र है, रचनात्मकता का यह स्रोत है इन सब गुणों के साथ आगे बढ़ती अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 69 वें राष्ट्रीय अधिवेशन को आहूत करने को उद्धृत व तत्पर विद्यार्थी परिषद का हार्दिक अभिनंदन व इसे प्रणाम!!
विद्यार्थी परिषद प्रतिवर्ष अपना एक नया वार्षिक गीत निर्धारित करता है। इसके, विगत वर्ष के गीत के इस मुखड़े को पढ़कर हमें इस संगठन के अंतर्तत्व का पता चलता है -
हम छात्र शक्ति के प्रखर पुंज , हम देव भूमि के हैं साधक,
हम छात्र शक्ति से राष्ट्रशक्ति , गढने वाले है आराधक!
हम तरुणाई में संस्कारों का अलख जगायेंगे ,
विश्वगुरु भारत का ध्वज लेकर जायेंगे !!