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महत्वपूर्ण लेख संपादकीय

गरीबी, भुखमरी के बीच देश में बढ़ती जनसंख्या

संयुक्त राष्ट्र की बढ़ती जनसंख्या के कारण भूखमरी से संबंधित रिपोर्ट के आंकड़े बहुत ही चौंकाने वाले हैं । जिसके अनुसार इस भूमंडल पर इस समय लगभग 85 करोड़ 30 लाख लोग ऐसे हैं जो भुखमरी का शिकार है । रिपोर्ट के अनुसार भुखमरी की अवस्था में जीवन यापन कर रहे इन लोगों में सबसे अधिक भारतीय हैं । जिनकी संख्या करीब 19.58 करोड़ है । यदि भारत की इस जनसंख्या पर विचार किया जाए तो ऐसे कई देश इस जनसंख्या में आ जाएंगे जिनकी कुल जनसंख्या एक डेढ़ करोड़ तक ही है । अकेले भारत में भुखमरी की यातना सह रही लोगों की इतनी बड़ी जनसंख्या का होना निश्चय ही हमारे लिए दुखद है । 76 वर्ष की आजादी की यात्रा के समय के लंबे काल में हम लगभग 20 करोड़ लोगों को तो यह आभास भी नहीं करा पाए हैं कि देश आज स्वतंत्र है । उन्हें नहीं पता कि आजादी क्या होती है ? -और गुलामी क्या होती है ? आजादी का सूर्य वे आज तक देख नहीं पाए या कहिए कि आजादी का सूर्य कैसा होता है वह इसे 76 वर्ष पश्चात भी समझ नहीं पाए हैं ? – देश में भुखमरी के शिकार इन लोगों की जनसंख्या में थोड़ी और जनसंख्या जोड़ दें तो यह जनसंख्या लगभग उतनी ही है जितनी भारत की आजादी के समय इस देश की कुल जनसंख्या थी। इसके उपरांत भी न केवल भारत में अपितु संसार के अन्य देशों में भी लोग अपने साथ या अपने इर्द-गिर्द रहने वाले भुखमरी के शिकार लोगों को देखकर पिघलते नहीं। लगता है कि लोगों की संवेदनाएं मर चुकी हैं और किसी को किसी की चिंता इस भागदौड़ भरे,मारामारी और आपाधापी के काल में नहीं है।सभी को अपने – अपने स्वार्थों की चिंता है ।ऐसी मानसिकता को देख कर नहीं लगता कि हम लोकतांत्रिक विश्व में जी रहे हैं , अपितु यही कहा जा सकता है कि हम व्यक्तिवादी मानसिकता से प्रेरित पूंजीवादी लोकतंत्र में जी रहे हैं। 

आज हमें समय को समझना होगा। उठ खड़े होकर राजनीति और समाज की दिशा को बदलने का संकल्प लेना होगा। तभी हम अपने देश के भविष्य को बचा पाएंगे। जनसंख्या बढ़ाने के काम में लगे हुए वर्ग, समुदाय, संप्रदाय या व्यक्तियों को कानून के माध्यम से सही रास्ते पर लाना समय की आवश्यकता है।
जनसंख्या की भयावहता को प्रकट करने वाली एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गत वर्ष विश्व में भूखे लोगों की संख्या जहां 81 करोड़ 85 लाख थी , वहीं इस वर्ष तीन करोड़ 80 लाख की इसमें वृद्धि हुई है और अब यह संख्या बढ़कर ₹85 करोड़ 30 लाख है। इसका अभिप्राय है कि भूखमरी को समाप्त करने के वैश्विक स्तर पर होने वाले तत्संबंधी समारोहों या आयोजनों में वैश्विक नेताओं के द्वारा गला फाड़ फाड़कर की जाने वाली घोषणाएं केवल घोषणा मात्र हैं । इन पर कुछ भी व्यावहारिक रूप से किया नहीं गया है। मानवता के प्रति अपराध करते हुए वैश्विक मंच सजाए जाते हैं और उन पर बड़े बड़े शाही खर्चे वाले समारोह आयोजित किए जाते हैं। जिनके परिणाम केवल यह निकलते हैं कि जिनके लिए कुछ किया जाना होता है उनके लिए कुछ भी नहीं किया जाता। इसके विपरीत उनके नाम पर भव्य समारोहों का आनंद उठाने का कुछ लोगों को अवसर उपलब्ध हो जाता है। कुछ लोगों की दृष्टि में इस वैश्विक भुखमरी के लिए प्राकृतिक प्रकोप ही उत्तरदायी हैं । कुछ लोग इसी दृष्टिकोण के चलते अपने भाषणों में जलवायु परिवर्तन और विश्व के अनेकों भागों में हो रहे हिंसक संघर्ष को केंद्रित कर इन्हीं कारणों को भुखमरी के लिए उत्तरदायी ठहरा देते हैं , परंतु ऐसा नहीं है । अधिकतर उन धनी और सम्पन्न लोगों ने भी देश में भुखमरी को फैलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है , जो गरीबों के अधिकारों का शोषण करते हैं। उनका दलन और दमन करते हैं और उनके हिस्से के धन को डकार जाते हैं ।यदि इस विषय पर थोड़ा सा गंभीरता से हम विचार करें तो वर्तमान में विश्व में जो चिकित्सा प्रणाली काम कर रही हैं यह ऐसी चिकित्सा प्रणाली है जो अधिकतर लोगों को कंगाल कर चुकी हैं।
ध्यान रखिए ! भारत में जिस प्रकार जनसंख्या को बढ़ाने पर कुछ लोग विशेष ध्यान दे रहे हैं, वे देश की जनसंख्या के आंकड़ों को गड़बड़ाकर देश, धर्म और संस्कृति के विनाश के कार्य में लगे हुए हैं। इससे भुखमरी तो फेल ही रही है देश का भविष्य की चौपट हो रहा है। इसलिए अपने नेताओं को समय रहते जगाइए और देश बचाने के अपने धर्म को पहचानिए।
(मेरा यह लेख पूर्व प्रकाशित हो चुका है )

डॉ राकेश कुमार आर्य

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