गाय का मांस खाने से होती है पागलपन की बीमारी
पवन कुमार वर्मा – विनायक फीचर्स
भारतीय समाज में गाय को पवित्र पशु माना जाता है। प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गाय की पूजा की जाती है। इसके अलावा लाखों घरों में प्रतिदिन पहली रोटी गाय को खिलाने की परम्परा भी सदियों से चली आ रही है। लेकिन इसी देश में कई जगह गाय का मांस भी खाया जाता है, साथ ही विदेशों को निर्यात भी किया जाता है।
गौवध निषेध का महत्व बताते हुए यह बात हिन्दू धर्म के किसी भी ग्रंथ में नहीं लिखी गई है, कि गाय का मांस खाने वाला पागल हो सकता है। न यह बात राम या कृष्ण ने रामायण और गीता में कही है। पर यह सच है कि गाय का मांस खाने वाला पागल भी हो सकता है। इस रोग को वैज्ञानिकों द्वारा ‘मैड़ काऊ’ का नाम दिया जा चुका है। यह रोग पागल गाय के मांस का सेवन करने से होता है।
कुछ वर्ष पूर्व इस रोग से पीडि़त ब्रिटेन की एक करोड़ बीस लाख गायों में से अधिकांश गायों का कत्ल कर दिया गया था। ब्रिटेन सरकार का इस निर्णय के पीछे तर्क यह था कि पागल गाय का मांस खाने वाले ‘क्रेयुट्जफेल्ट जेकब डिसीज’ नामक पागलपन के रोग का शिकार हो गए थे।
ब्रिटेन और यूरोपीय देशों में इस रोग के फैलने का एक मात्र कारण यह माना जाता है कि यहां शाकाहारी गाय का मांस आहार माना जाता है और विविध व्यंजनों के रूप में इसे इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में गाय का मांस बूचडखानों से मंगाया जाता है, जहां यह मांस खुला रखा जाता है जो संदूषित हो जाता है। साथ ही गाय का वध करते समय यह भी जांच नहीं होती कि गाय रोग ग्रस्त या पागल तो नहीं है।
यद्यपि इस रोग की उत्पत्ति यूरोपीय देशों से हुई है लेकिन यह रोग कभी भी और कहीं भी भयावह रूप ले सकता है। गाय को एक शाकाहारी जानवर माना जाता है। गाय से अधिक दूध प्राप्त करने की चाह में वहां के लोगों ने अपनी-अपनी गायों का वजन बढ़ाने और अधिक दूध प्राप्त करने के लालच में इसे मांसाहारी बना दिया। इस चाह के कारण दूसरे जानवरों की हडिï्डयां पीसकर गायों को खिलाई जाने लगी।
जानवरों की हडि्डयों के पावडर को खाने से गायों को ‘स्कर्बी’ नामक रोग होने लगा। इस अप्राकृतिक पशु आहार के दुष्परिणामों के बारे में ब्रिटेन के कुछ वैज्ञानिकों ने जानकारी दी थी। उस समय ब्रिटेन में कुछ गायों को लडख़ड़ाते और मुंह से झाग छोड़ते हुए देखा गया था। ब्रिटेन में ऐसी गायों की संख्या 1,58,882 थी। ये गायें पागल हो चुकी थीं। उनका अपने शरीर पर नियंत्रण पूरी तरह से समाप्त हो चुका था। ऐसी रोगी मृत गायों के मस्तिष्क के स्थान पर लिजलिजा सा मांस पिंड बन गया था। इस रोग का नाम ‘बोवाइन स्पोजीफार्म इन सिफेलोपेथी’ बी.एस.ई.एस. रखा गया था। बाद में इसी रोग को आम भाषा में ‘मैड काऊ’ रोग कहा जाने लगा। भारतीय मूल के विषाणु विज्ञानी डॅा. हर्ष नारंग और ब्रिटेन तंत्रिका रोग विज्ञानी डॉ. राबर्ट पेरी, पशुओं की अनेक जातिओं पर परीक्षण करके तथा बी.एस.ई.एस. रोग से पीडि़त गायों का गहन अध्ययन करके इस नतीजे पर पहुंचे कि गायों के पागलपन का मनुष्यों के क्रेयुटनफेल्ट जेकब रोग से सीधा संबंध हो सकता है। इसका आशय यह है कि बी.एस.इएस.रोग से पीडि़त गायों का मांस खाने वाले मनुष्य ‘क्रेयुटनफेल्ट जेकब डिजीज’ (पागलपन) से पीडि़त हो सकते हैं। इसी वर्ष मांस आधारित पशु आहार पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन इस रोक पर सख्ती से पालन नहीं हुआ और लोग निरंतर बी.एस.ई.एस.पीडि़त गायों का मांस और उससे बने व्यंजन खाते रहे। ब्रिटेन में बी.एस.ई.एस. के लाखों मामले प्रकाश में आ चुके थे।
डॉ. हर्ष नारंग ने गायों के मूत्र और रक्त परीक्षण के आधार पर इस रोग का उपचार खोजने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। वैज्ञानिक गायों के पागलपन रोग के सभी कारणों का पता लगाने में जुटे हुए हैं। मनुष्य के के.जे.डी. रोग से पीडि़त होने पर मस्तिष्क में उपस्थित प्रायन नामक एक विकृत प्रोटीन स्वस्थ प्रोटीन अणुओं को अपनी ही तरह विकृत कर देता है। प्रायन प्रोटीन के अणु स्वस्थ प्रोटीन का आकार बदलने लगते हैं। जिन प्रोटीन अणुओं का आकार बदल जाता है वे भी दूसरे स्वस्थ प्रोटीन अणुओं का आकार बदलने में लगे रहते हैं। उसमें सुराख हो जाते हैं। गाय और मनुष्य दोनों में इस रोग का प्रकोप होने पर उनका मस्तिष्क ऐसे ही सुराखों वाला मांस पिंड बन जाता है।
ऐसा मस्तिष्क शरीर पर नियंत्रण नहीं रख पाता । यह बीमारी पहले तो मनुष्य को पागल बना देती हैै और अंतत: यह रोगी की जान ही ले लेती है। गौमांस से होने वाले इस रोग को देखते हुए यह आवश्यक है कि न केवल गौवध पर प्रतिबंध लगे बल्कि गौ मांस बेचने पर एवं बूचडख़ानों पर भी पूर्णत: प्रतिबंध लगे ताकि न केवल गायें बल्कि मनुष्य भी इस तरह की अमानवीय यातनाओं से बच सके। (विनायक फीचर्स)
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