विदेशों में लड़के और लड़कियां आपस में मित्रता करते हैं। अब उन्हीं की नकल भारतीय युवक युवतियां भी करने लगे हैं। यह विदेशी परंपरा है, भारतीय नहीं। यह परंपरा सुखदायक नहीं, बल्कि दुखदायक है। "भारत में वैदिक काल में कहीं भी ऐसा देखने को नहीं मिलता, कि पुरुषों और स्त्रियों की आपस में मित्रता होती थी। बल्कि पुरुषों की पुरुषों के साथ, और स्त्रियों की स्त्रियों के साथ ही मित्रता होती थी।"
प्राचीन काल में तो वैदिक शिक्षा पद्धति थी। और उसके अनुसार गुरुकुल ही होते थे, स्कूल कॉलेज तो थे ही नहीं। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रंथों में वैदिक विधान बतलाया है, कि "स्त्रियों और पुरुषों के गुरुकुल दूर-दूर होने चाहिएं। पुरुषों के गुरुकुल में 5 वर्ष से अधिक आयु की कन्या का प्रवेश भी न होने पाए। और स्त्रियों के गुरुकुल में 5 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष बालक का प्रवेश न होने पाए। जिससे कि पुरुषों और स्त्रियों का चरित्र उत्तम हो, और वे अपनी पूरी शक्ति पठन पाठन एवं चरित्र निर्माण कार्य में लगाकर उत्तम विद्वान तथा विदुषी बन सकें। एक अच्छे धार्मिक विद्वान देशभक्त नागरिक बनकर अपना और सबका कल्याण कर सकें।" इतना ही नहीं, "बल्कि गुरुकुल में वैदिक शिक्षा प्राप्त करके अपने उत्तम चरित्र एवं योगाभ्यास के माध्यम से जन्म मरण से छूटकर मोक्ष को भी प्राप्त कर सकें। वैदिक शिक्षा पद्धति का अंतिम उद्देश्य तो मनुष्य को या आत्मा को मोक्ष तक पहुंचाना था और आज भी है।"
"जब गुरुकुल में उनकी पढ़ाई या शिक्षा पूरी हो जावे, तब यदि किसी स्त्री या पुरुष का विचार आजीवन ब्रह्मचारी रहने का हो, और संन्यास ले कर मोक्ष प्राप्त करने का हो, तो वहीं गुरुकुल में रहकर वह तपस्या करे, और सीधा संन्यासी बनकर मोक्ष में जाए।"
"जिन स्त्री पुरुषों का विचार विवाह करने का हो, तब स्त्रियों और पुरुषों की शिक्षा पूरी होने के बाद उनका आपस में संवाद कराकर, उनके गुण कर्म स्वभाव मिला कर उनका विवाह कराया जाए, और तब वे गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करें।उससे पहले स्त्री पुरुषों का मेल नहीं होना चाहिए।" "ऐसी स्थिति में स्त्री पुरुषों की मित्रता की बात तो बहुत दूर, एक दूसरे से मिलना जुलना भी संभव नहीं था।"
अब वेदों का विधान तो यही है, कि "मनुष्य जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है, न कि भौतिक भोगों को भोगना।" इसलिए प्राचीन काल में हमारे सारे विधान मोक्ष को सामने रखकर बनाए जाते थे, परिणाम यह था कि समस्याएं बहुत कम थी, और जीवन में सुख-शांति अधिक थी। तथा उसी वैदिक विधान के अनुसार उत्तम आचरण करके कितने ही लोग मोक्ष को भी प्राप्त कर लेते थे।"
आजकल पश्चिमी देश वेदों को पढ़ते नहीं। इसलिए उन्हें मनुष्य जीवन का यह लक्ष्य पता ही नहीं है। वे तो केवल इतना ही जानते हैं, कि "डिग्री प्राप्त करो, पैसे कमाओ खाओ पियो और रूप रस गन्ध स्पर्श आदि भौतिक विषयों को भोगो।" परन्तु वे लोग आज भी यह बात नहीं जान पाए कि *"इन भोगों को कितना भी भोग लो, फिर भी शान्ति नहीं मिलेगी।" और "जब जीवन के अंत तक उन्हें शान्ति नहीं मिलती, तो वे सुसाइड नोट लिखकर आत्महत्या कर लेते हैं। कितने ही विदेशी लोग इस प्रकार से आत्महत्या कर के अपने जीवन का विनाश कर चुके हैं। उन्हीं की नकल सारी दुनिया वाले लोग कर रहे हैं, जो कि अत्यंत ही दुर्भाग्य की बात है।"
"आजकल जो बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड की यह विदेशी परंपरा भारत और अन्य देशों में फैल रही है, यह चरित्र की विनाशक है। जीवन में गंभीर समस्याओं को उत्पन्न करने वाली है। इससे व्यक्ति का शारीरिक मानसिक बौद्धिक आत्मिक सब प्रकार का ह्रास होता है।" इसके परिणाम अमेरिका आदि पश्चिमी देशों में आप देख सकते हैं। "और वैसे ही परिणाम अब भारत और अन्य देशों में भी देखने को मिल रहे हैं। इसी प्रकार से समलैंगिक संबंध बनाना, बिना विवाह किए स्त्री-पुरुष दोनों का एक साथ रहना इत्यादि भी विदेशी एवं अत्यंत ही हानिकारक परंपराएं हैं। इसलिए ऐसी 'सर्व विनाशकारी एवं मूर्खता की परंपराओं को छोड़ देना' ही बुद्धिमत्ता है। क्योंकि ऐसी अवैदिक परंपराओं से मानव जाति का सुख कम होता है, और दुख बहुत अधिक बढ़ता है।"
मेरी यह बात पढ़कर कृपया आप गुस्सा न करें, मेरे साथ झगड़ा न करें, बल्कि अपने दिल पर हाथ रख कर ठंडे दिमाग से सोचें, "क्या आप अपनी युवा बेटी बहन या पत्नी को दूसरे पुरुषों के साथ मित्रता करने की छूट देंगे? यदि नहीं देंगे, तो आप दूसरी युवा स्त्रियों के साथ मित्रता क्यों करना चाहते हैं? इस से आपकी अस्वस्थ मानसिकता का पता चलता है, कि "आप स्वयं तो भ्रष्टाचार करना चाहते हैं, परंतु अपने परिवार की स्त्रियों को उससे रोकते हैं।" "क्योंकि यही वास्तविकता है। यही वैदिक विधान है। यही भारतीय संस्कार है। यही सुखदायक है, जो आपको ऐसा करने से रोकता है।" "यदि अपने परिवार की स्त्रियों को ऐसे भ्रष्टाचार करने से रोकना उचित एवं आवश्यक है, तो आपको भी दूसरी युवा स्त्रियों के साथ मित्रता करने रूपी भ्रष्टाचार से रुकना उचित एवं आवश्यक है।"
आज मैंने जो यह विषय प्रस्तुत किया है, मुझे मालूम है, कि इससे आपके मन में अवश्य ही उथल पुथल मचेगी, खलबली मचेगी। हो सकता है, कुछ लोगों को मुझ पर बहुत अधिक गुस्सा भी आएगा, क्योंकि यह कड़वा सत्य है। फिर भी दोनों हाथ जोड़कर 🙏 मेरा आपसे विनम्र निवेदन है, कि "आप मुझ पर गुस्सा नहीं करेंगे, बल्कि अपने मन को शांत करने के लिए कृपया स्वस्थ मन से विचार करेंगे, तथा अपने परिवार समाज राष्ट्र और विश्व की चरित्र संबंधी एवं शारीरिक मानसिक बौद्धिक तथा आत्मिक विकास संबंधी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करेंगे।"
"जैसा व्यवहार आप स्वयं दूसरों के साथ करना चाहते हैं, वैसा ही दूसरों को भी अपने साथ करने की छूट देनी चाहिए।" और "जैसा व्यवहार आप दूसरों से अपने लिए नहीं चाहते, वही व्यवहार आपको भी दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।" "इसी का नाम धर्म है। इसी से सबकी उन्नति एवं रक्षा होती है। और इसी से सबका दुख कम होता है, और सुख बढ़ता है।"
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात।”