प्रायः लोगों के मन में ऐसी धारणा बनी हुई है, कि "यह व्यक्ति तो अब 60 वर्ष का हो गया। बूढ़ा हो गया। सरकार ने भी इसे रिटायर कर दिया। अब यह किसी काम का नहीं रहा। अब यह फालतू आदमी है, बेकार है।"
परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि "जो कुछ पढ़ा लिखा व्यक्ति है। उसने 60 वर्ष की आयु तक अपना, समाज और देश का कुछ कार्य किया है। उसके पास जीवन भर का अनुभव है। इतने सारे कारणों से वह व्यक्ति 'व्यर्थ नहीं हो गया.' बल्कि 'समर्थ हो गया.' किस काम में समर्थ हो गया?" "दूसरों को अपने अनुभव से ज्ञान और सुख देने में समर्थ हो गया।"
संसार में ज्ञान ही तो सबसे उत्तम वस्तु है। ज्ञान से ही सुख प्राप्त होता है। "इसलिए अब वह ज्ञान देने में भी समर्थ है, और उस ज्ञान से सुख देने में भी समर्थ है।" "छोटी आयु अर्थात 25/30 वर्ष की आयु वाले लोग इस रहस्य को प्रायः नहीं जानते। जब वे स्वयं 55/60 वर्ष की आयु में पहुंचते हैं, तब उन्हें पता चलता है, कि 60/ 65/ 70 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति में कितना ज्ञान और अनुभव होता है!"
अब उसे अपने ज्ञान और अनुभव से, 'ठीक ढंग से कैसे जीवन जीना चाहिए,' यह समझ में आ जाता है। और वह उस ज्ञान और अनुभव के कारण प्रसन्नता से जीवन जीता है। और यह चाहता है कि "दूसरे लोग भी उसके ज्ञान और अनुभव से लाभ उठाएं। परंतु प्रायः युवक लोग उसके ज्ञान और अनुभव का मूल्य नहीं समझते। और उसके ज्ञान से लाभ नहीं उठाते। यह दुर्भाग्य की बात है।"
यह ठीक है, कि "इस उम्र में बहुत सा ज्ञान और अनुभव प्राप्त हो जाने के कारण, वह बहुत कुछ कार्य करना चाहता है। परंतु उसकी शक्ति घट जाने से वह उतना कार्य नहीं कर पाता, जितना कि वह करना चाहता है। फिर भी यथाशक्ति वह अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर बहुत सुखी रहता है, तथा दूसरों को भी सुख देता है।"
"इसलिए जो वरिष्ठ नागरिक है, 60/65 या इससे भी अधिक वर्ष की आयु का सीनियर सिटीजन है, उसे 'व्यर्थ' न समझें, बल्कि ज्ञान और सुख देने में 'समर्थ' समझें।" वह कहावत भी आपने अवश्य ही सुनी होगी, "ओल्ड इस गोल्ड, Old is Gold. अर्थात पुरानी वस्तु अधिक मूल्यवान होती है।"
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”