परमाणु वाले जड़ पदार्थों की पहचान

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      "परमाणु वाले जड़ पदार्थों की पहचान यह होती है, कि उनमें रूप रस गन्ध स्पर्श भार आदि गुण होते हैं। जैसे  पृथ्वी जल अग्नि वायु आदि। ये सब परमाणु वाले जड़ पदार्थ हैं। इनमें रूप रस गन्ध स्पर्श भार आदि गुण होते हैं।"
     "चेतन पदार्थ की पहचान यह होती है, कि उसमें इच्छा ज्ञान आदि गुण होते हैं। जैसे आत्मा।" आत्मा को जब ईश्वर शरीर प्रदान करता है, तो यह मनुष्य पशु पक्षी आदि प्राणी के रूप में जाना जाता है।" "शरीर धारण करने पर आत्मा के इच्छा ज्ञान आदि गुण प्रकट होते हैं। शरीर के बिना नहीं।"
      इस प्रकार से हमारे आसपास जो पृथ्वी जल अग्नि वायु आदि जड़ पदार्थ हैं, तथा मनुष्य पशु पक्षी इत्यादि प्राणियों के रूप में जो आत्मा आदि चेतन पदार्थ हैं, इनमें अपने-अपने गुण होते हैं। "इन पदार्थों के विशिष्ट गुणों को देखकर हम इनसे बहुत कुछ शिक्षाएं प्राप्त कर सकते हैं।"
    उदाहरण के लिए 'जल' को लेते हैं। जल एक द्रव पदार्थ है। "इसे जैसे बर्तन में डालेंगे, यह वैसा ही स्वरूप धारण कर लेगा। गिलास में डालेंगे, तो वैसे आकार वाला हो जाएगा। कटोरे में डालेंगे, तो वैसा हो जाएगा। पतीले में डालेंगे, तो वैसा हो जाएगा।" 
   तो जल नामक जड़ पदार्थ से हम यह सीख सकते हैं, कि "हमें अपने जीवन में जहां जैसी परिस्थितियां मिलें, उनके अनुसार अपने आप को वैसा ढाल लेना चाहिए। यदि हम इस प्रकार से परिस्थितियों के अनुकूल अपने आप को ढाल लेंगे, तो बहुत से दुखों और समस्याओं से बच जाएंगे।" "जो लोग परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना नहीं जानते, या नहीं सीखते, वे सदा परिस्थितियों को कोसते रहते हैं। दूसरों के साथ झगड़े करते हैं, और जीवन में सदा दुखी रहते हैं।"
      इसी प्रकार से एक और जड़ पदार्थ 'अग्नि' है। "अग्नि सदा ऊपर को उठती है। अग्नि की ज्वाला कभी भी नीचे की दिशा में नहीं जाती। आप माचिस की तीली को जलाकर उसे भूमि की ओर नीचे झुकाएं, तब भी वह नीचे भूमि की ओर नहीं जाती, सदा ऊपर को ही उठती है, आकाश की तरफ ही जाती है।" "इस प्रकार से अग्नि तत्त्व से भी हमें कितनी अच्छी शिक्षा मिलती है, कि हमें जीवन में सदा उन्नति की ओर ही जाना चाहिए, पतन की ओर नहीं।" 
     "अतः इन जल, अग्नि आदि जड़ पदार्थों से भी हम आप बहुत सी शिक्षा लेकर यदि अपने जीवन को उत्तम बनावें, बुराइयों से बचें, अच्छे काम करें, तो सदा हमारी उन्नति होगी। हमारा और आपका जीवन सदा सुखमय एवं सफल होगा।"

—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”

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