"यदि आप अपने जीवन में सुख प्राप्त करना चाहते हैं, तो अपने मित्रों और शत्रुओं की पहचान करना सीखें।"
"आपके मिलने जुलने वाले लोगों में से कौन आपका मित्र है, और कौन शत्रु है, यह पहचान करना बहुत आवश्यक है।" "मित्रों के साथ मिल जुलकर रहें, और शत्रुओं से बचकर रहें। उनसे अपनी सुरक्षा करें।" "जो व्यक्ति इस प्रकार से अपने मित्रों और शत्रुओं की पहचान नहीं करता, वह जीवन में असफल एवं सदा दुखी रहता है।"
जो आपने मित्र पहचान लिए। वे यदि आप पर विश्वास करने लगे। "फिर उनमें से किसी को आप भोला या मूर्ख समझें, किसी भी प्रकार से उन्हें धोखा दें, या छल कपट करके उनका शोषण करें, तो ऐसा करना उचित नहीं है।" "क्योंकि दूसरे लोग भी इतने मूर्ख नहीं हैं, जितना आप उन्हें समझ रहे हैं। बुद्धि सबमें है।" "एक दो बार धोखा खाकर वे आपकी सच्चाई को समझ जाएंगे। और यदि आपके झूठ छल कपट धोखाधड़ी के व्यवहार से वे आपसे नाराज हो गए, तो आपको बहुत सी हानियां उठानी पड़ेंगी।"
"आप सर्वशक्तिमान नहीं हैं। सर्वज्ञ नहीं हैं।जब जब जीवन में कठिनाइयां आएंगी, तब तब आपको इन्हीं लोगों का आश्रय लेना होगा, जो आपके मित्र साथी सज्जन अच्छे लोग हैं।" "यदि आपने इन्हीं के साथ छल कपट धोखा करके इन्हें खो दिया, तब सोचिए आपत्तिकाल में आपकी सहायता कौन करेगा? तब आप की सहायता के लिए कोई आपके पास नहीं आएगा। तब आप एकांत में अकेले बैठकर रोते रहेंगे, और अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करेंगे।"
"अतः ऐसा दिन आपको न देखना पड़े। इसलिए अपने मित्रों और शत्रुओं की पहचान करें। मित्रों के साथ सभ्यता नम्रता अनुशासन पूर्वक व्यवहार करें। इसी में आपकी बुद्धिमत्ता और जीवन की सफलता सिद्ध होगी।"
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”