उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग: हादसे पर हौंसले की जीत,
उनकी दीवाली आज
-राजेश बैरागी-
जंगल में आग लग जाने पर कौन बचता है?महात्मा विदुर के इस प्रश्न के लिए पांडवों का उत्तर था,-चूहा। उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग हादसे पर अंदर फंसे 41 श्रमिकों, राहत और बचाव कार्य करने वाले कर्मचारियों तथा विशेषज्ञों, सेना,आसपास के लोगों और राज्य व केंद्र सरकार के हौंसले ने 17 दिन बाद जीत हासिल कर ली। ये लोग ठीक दीवाली के दिन सुरंग में काम करते हुए फंस गए थे। उनकी दीवाली आज मानी जानी चाहिए।मुझे लगता था कि अंदर कुछ बचा नहीं है। कुछ राज्यों में चुनाव चल रहा है इसलिए भाजपानीत केंद्र और राज्य सरकार अपनी विफलता की घोषणा नहीं कर रहे हैं। पहाड़, झील, नदी, समुद्र जितने लाभकारी हैं, उतने ही बड़ी समस्या भी हैं। पहाड़ में सुरंग बनाना आज भी मजाक नहीं है।ऐसी निर्माणाधीन सुरंग में एक साथ इकतालीस श्रमिक फंस जाएं तो आम आदमी तो छोड़िए, सरकार के भी हाथ पांव फूल सकते हैं। ऐसे समय में ही सरकारों की असल परीक्षा होती है। सरकारों की अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा और संवेदनशीलता का पता भी ऐसे ही लगता है। इस हादसे की परीक्षा में सरकारें हर स्तर पर पास हो गईं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, और स्वयं प्रधानमंत्री का निरंतर घटनास्थल से अपडेट लेना, सफलता का कारण बन गया। मैं रैट माइनर्स की टीम के कार्य से बेहद प्रभावित हूं जो महाभारत काल से आज तक, लाक्षागृह से पांडवों को सकुशल निकालने से लेकर सिलक्यारा सुरंग से 41 श्रमिकों के जीवन बचाने तक अपनी महती भूमिका सिद्ध करते आ रहे हैं। एक महत्वपूर्ण व्यक्ति का जिक्र और। केंद्रीय सड़क एवं परिवहन राज्यमंत्री वी के सिंह की भी इस घटना में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।वे एक हफ्ते से वहीं जमे हुए थे।वी के सिंह गाजियाबाद से सांसद हैं। उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा से तीसरी बार टिकट मिलने की कोई संभावना नहीं है। इस हादसे पर सफलता में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका से उनके किसी राज्य का राज्यपाल बनने की संभावना पक्की हो गई है।
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