#original #history #with SUMAN & Rajasthan Diary
हेमचन्द का जन्म मेवात स्थित रिवाड़ी मे बेहद गरीब परिवार में हुआ था। हेमू का पारिवारिक पेशा पुरोहिताई का था परन्तु 12 वीं शताब्दी के बाद भारत में इस्लाम के स्थापित होने के होते ही मुस्लिम बादशाहों ने हिन्दुओं के धार्मिक आयोज़नो पर रोक लगा दी औऱ इससे पुरोहिताई से घर चलना बहुत मुश्किल हो गया था। तब हेमू ने शेरशाह सूरी के सेनाओं को खाना पहुँचाने का काम हाथ में लिया। लेकिन तेज़ तर्रार हेमू की कद काठी और योग्यता देख कर शेरशाह सूरी ने उसे अपनी सेना में रख लिया। वीर हेमू जल्दी ही अफ़ग़ान सेना का सेनापति बन गया। लेकिन इसी समय शेरशाह सूरी की असमय मृत्यु हो गई। शेरशाह की मृत्यु के बाद दिल्ली की सत्ता हेमू के हाथ में आ गयी। हेमू ने अपने जीवनकाल में लगातार २२ युद्ध में विजय हासिल की।
कहा जाता है जिस समय हेमू अपनी सेना के साथ निकलता था मुसलमान सरदार अपने किले छोड़कर भाग जाया करते थे ,
यहाँ तक की जब अकबर ने हेमू पर हमला करने की सोची तब सभी ने उसे जान बूझ कर मौत के मुह में न जाने की सलाह दी थी। हेमू ने १५५६ में अपना राज्याभिषेक करके अपना हेमचन्द्र विक्रमादित्य रखा।
“इसी बीच शेरशाह की मृत्यु के बाद भगोड़ा हुमायूं ने 1555 में शेरशाह के अधिकारियों को हराकर एक बार फिर दिल्ली-आगरा पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। लेकिन इसके अगले ही वर्ष लाइब्रेरी के सीढ़ियों से गिरकर हुमायूं की मृत्यु हो गई। तब सत्ता हुमायूं के बेटे अकबर को प्राप्त हुई।”
१५५६ में पानीपत के दूसरे युद्ध में अकबर की सेना पूरी तरह से युद्ध हार चुकी थी,
और स्वयं अकबर भी बैरम खान के साथ भागने की तैय्यारी में था। परन्तु कहा जाता है कि “- ना चा विद्या ना चा पौरुषम भाग्यम फलती सर्वदा ”
दुर्भाग्यवश तभी हेमू, आँख में तीर लगने से बेहोश होकर गिर गया। उसकी बेहोशी के बाद मुगलों द्वारा अफवाह फैला दी गई कि ‘हेमू मर गया है।’ यह सुनकर हेमू की सेना में भगदड़ मच गयी और सैनिक इधर से उधर भागने लगे। इस भगदड़ में हेमू के उच्च अधिकारी समेत लगभग 5 हज़ार सैनिकों ने अपने प्राण गंवा दिए। इसी मौके का फायदा उठा कर भारत के तथाकथित महान शासक अकबर ने बेहोशी की अवस्था में हेमू की हत्या कर दी थी।
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