संसार में होते हैं कई प्रकार के लोग : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक
संसार में अनेक प्रकार के लोग मिलते हैं। "कुछ अच्छे लोग मिलते हैं, जो बुद्धिमान धार्मिक सदाचारी धनवान परोपकारी होते हैं। वे आपके गुणों को भी समझते हैं। आप से प्रेम करते हैं। आपके साथ रहना उठना बैठना बातचीत करना चाहते हैं। ऐसे लोगों से आप भी मित्रता रखें। उनसे सहयोग लें भी, और उन्हें सहयोग दें भी। उनके साथ आनन्द से अपना जीवन बिताएं।"
"दूसरे प्रकार के कुछ कमजोर व्यक्ति भी आपको संसार में मिलेंगे, जो धन बल विद्या बुद्धि शारीरिक सामर्थ्य आदि कम होने से आपसे कुछ सहयोग लेना चाहते हैं, परंतु हैं अच्छे। ईमानदार हैं। धार्मिक हैं। परंतु अपने किन्हीं पूर्व कर्मों के फलस्वरूप वर्तमान में कमजोर हैं। रोगी हैं। विकलांग हैं। या वृद्ध हो गए हैं। ऐसे लोग आपसे सहायता प्राप्त करना चाहते हैं। तो उनकी सहायता करें।"
कुछ तीसरे प्रकार के लोग आपको ऐसे भी मिलेंगे, जो दुष्ट स्वभाव के होंगे। "जिनकी नीयत खराब होगी। अथवा उनकी आदत खराब होगी। उन्होंने जीवन में पहले अच्छे कार्य अधिक नहीं किए होंगे, इस कारण से उनके संस्कार बिगड़ गए होंगे। अब अपने बिगड़े हुए संस्कारों के कारण वे आपको बार-बार दुख देंगे, परेशान करेंगे। अनेक बार जानबूझकर भी आपको तंग करेंगे। जब ऐसे दुष्टों की पहचान हो जावे, तब झगड़ा तो उनसे भी न करें। उनसे दूर रहें और अपना बचाव करें। अब तक जो उन्होंने आपकी हानियां कर दी हैं, उनको ईश्वर के न्याय पर छोड़ दें।"
"ईश्वर सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक पक्षपात रहित पूर्ण न्यायकारी है। वह संसार की सब घटनाओं को पूरे ध्यान से देखता है। आपके साथ हुए अन्याय को भी उसने देखा है। तो उन घटनाओं को ईश्वर पर छोड़कर निश्चिंत हो जाएं," और ऐसा सोचें कि "ईश्वर सही समय आने पर अवश्य ही इन दुष्टों को दंडित करेगा, और जो मेरी हानि हुई है, उसकी पूर्ति भी अवश्य ही करेगा।"
"ईश्वर न्यायकारी है। न्याय के यही दोनों पक्ष होते हैं। दुष्ट को दंडित करना और अन्यायग्रस्त व्यक्ति की क्षतिपूर्ति करना।" "ऐसा सोच कर उस दुष्ट व्यक्ति के साथ हुई भूतकाल की दुखदायक घटनाओं के विषय में सोचना ही बंद कर दें। उनको बार बार याद न करें। और अन्य शुभ कर्मों में अपना मन लगाते हुए और उन शुभ कर्मों का आचरण करते हुए आप अपना जीवन आनन्द से जीएं।" "भविष्य में वह आपकी हानि न कर पाए, ऐसा प्रबंध अवश्य कर लें।"
"यदि आप ऐसा सोच कर अपना जीवन जीएंगे, तो निश्चित रूप से आपका जीवन सुखमय एवं सफल होगा।"
—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”