ऋषि के मंतव्य दो टूक में।
जो पक्षपातरहित,न्यायाचरण,सत्य भाषणादियुक्त, ईश्व राज्ञा, वेदों से अविरुद्ध है उसको,धर्म, और जो पक्षपात रहित हि न्यायाचरण,मिथ्या भाषण आदि,ईश्वर आज्ञाभंग,वेद विरुद्ध है उसको अधर्म मानता हूं ।
जो इच्छा,द्वेष,सुख, दुःख,और ज्ञानादि गुणयुक्त,अल्पज्ञ,नित्य है उसी को जीव मानता हूं ।
जीव और ईश्वर स्वरूप और वैधमार्य से भिन्न और व्याप्य व्यापक और साधर्म से अभिन्न है अर्थात जैसे आकाश से मूर्तिमान द्रव्य कभी भिन्न न था न है न होगा और न कभी एक था न है न होगा इसी प्रकार परमेश्वरऔर जीव को व्याप्य व्यापक, उपास्य उपासक और पिता पुत्रवत संबंधयुक्त मानता हूं ।
इस प्रकार ऋषि ने ईश्वर, धर्म और जीवात्मा को भली प्रकार समझा दिया,इसके बाद भी अगर ईश्वराज्ञा को न माने, तथा ईश्वर और जीव के अलग अलग गुणों को न मान कर इनमें एक दूसरों के अंग या भाग माने तो यह सर्वथा अज्ञानी है ।
ऋषि ने बड़ा स्पष्ट लिखा यह दोनों के गुणों में भिन्नता है।
एक सर्वज्ञ है, दूसरा अल्पज्ञ है, एक पिता है दूसरा पुत्र है, एक नारायण है, दूसरा नर है ।
एक ज्ञान से परिपूर्ण है,दूसरे में ज्ञान और अज्ञान दोनो है । ईश्वर में अज्ञान लेश मात्र भी नहीं, एक सर्वज्ञ है, दूसरा अल्पज्ञ है ।
इसके बाद भी दोनो को एक दूसरे का हिस्सा मानना यही तो अज्ञानता की बातें है ।
इस पर वक्तव्य देने वाले लोगों को दुनिया वालों ने सराखों पर बिठाया है सत्य असत्य को जानने का भी प्रायस नहीं किया, आज उनकी संख्या ज्यादा है क्यों कि कहने वाले शंकराचार्य जो ठहरे ।
कहने वाले तुलसी जो ठहरे, कहने वाले स्वामी विवेकानन्द जो ठहरे ।
सत्य क्या है कौनसा सत्य है इसे जानने समझने की चेष्टा ही नहीं की इन आलसी और प्रमादियों ने।
जो बातें आसानी से समझने वाली थी, उसे कठिन बता दिया गया ।
खुद समझे बिना ही वेद विरुद्ध विचारों से जन मानस को दिक भ्रमित किया ।
परमात्मा के नाता जोड़ने के बजाय परमात्मा से ही दूरी बना ली ।
कारण जुड़े तो तब, जब वे यह जाने की किसको किसके साथ जोड़ना है ?
तार अगर गलत जुड़े तो सम्पूर्ण लाइन ही फूंक जाती है। और हुआ भी ठीक यही है इन गुरु कहलाने वालों ने मानव समाज को आसानी के बजाय मुश्किल में धकेल दिया ।
न ईश्वर को वह खुद जानें और न औरों को जानकारी सत्य का दे सके।
इधर को जान कर समझ कर जो सत्य का उजागर किया उसे दुनिया से ही हटा दिया गया। यह है सत्य असत्य की जानकारी बहुत ही कम लिखा लम्बा प्रकरण है जिन्दगी खतम हो जायेगी परन्तु इसे लिख कर समाप्त किया जाना सम्भव नहीं । आज यहीं तक आगे फिर कभी लिखेंगे । धन्यवाद के साथ महेंद्र पाल आर्य 17/11/2023