क्या द्रोपदी के सचमुच पांच पति थे ?
द्रौपदी के पांच पति, प्रचारित झूठ का खण्डन*
हमारे धार्मिक ग्रन्थों यथा मनुस्मृति, रामायण, महाभारत में भयानक प्रक्षेपण हुआ है, जिससे उनके महापुरुषों के चरित्र और कथा को भ्रष्ट किया गया ।
अब बिन्दुवार अध्ययन करें |
विवाह के विवाद
१) अर्जुन ने द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था । उससे विवाह तो स्वयंवर की घोषणा के अनुरुप ही होता ।
२) परन्तु इस विवाह के लिए कुन्ती कतई तैयार नहीं थी ।
३) अर्जुन ने भी इस विवाह को अस्वीकार कर दिया | “बड़े भाई से पहले छोटे का विवाह हो जाए यह तो अधर्म है ।”
४) कुन्ती मां थी। यदि अर्जुन का विवाह भी हो जाता, भीम का तो पहले ही हिडम्बा से (हिडम्बा की ही चाहना के कारण) हो गया था । तो यह बात स्वतः प्रसिद्ध हो जाती कि निश्चय ही युधिष्ठिर में ऐसा कोई दोष है, जिसके कारण उसका विवाह नहीं हो सकता ।
५) कुन्ती की इस सोच में क्या भूल है ? इसलिए माता कुन्ती और सारे पाण्डव भी यही चाहते थे कि विवाह युधिष्ठिर से हो जाये ।
द्रौपदी को युधिष्ठिर की पत्नी बताया गया
१) द्रौपदी को कीचक ने परेशान कर दिया तो दुःखी द्रौपदी भीम के पास आई । भीम द्वारा कुशल पूछने पर द्रौपदी बोली जिस स्त्री का पति राजा युधिष्ठिर हो, वह बिना शोक के रहे, यह कैसे सम्भव है ?
“आशोच्यत्वं कुतस्यस्य यस्य भर्ता युधिष्ठिरः ।
जानन् सर्वाणि दुःखानि कि मां त्वं परिपृच्छसि ।।”
(विराट १८/१)
द्रौपदी स्वयं को मात्र युधिष्ठिर की पत्नि बता रही है ।
२) वह भीम से कहती है- जिसके बहुत से भाई, श्वसुर और पुत्र हों, जो इन सबसे घिरी हो तथा सब प्रकार अभ्युदयशील हो, ऐसी स्थिति में मेरे सिवा और दूसरी कौन सी स्त्री दुःख भोगने के लिए विवश हुई होगी ?
“भ्रातृभिः श्वसुरैः पुत्रैर्बहुभिः परिवारिता ।
एवं सुमुदिता नारी का त्वन्या दुःखिता भवेत् ।।”
(विराट २०-१३)
द्रौपदी स्वयं कहती है उसके बहुत से भाई, श्वसुर, पुत्र हैं, फिर भी वह दुःखी है । यदि बहुत से पति होते तो सबसे पहले यही कहती कि जिसके पाँच-पाँच पति हैं, फिर भी वह दुःखी है ।
३) जब भीम कीचक को मार-मारकर माँस का लोथड़ा बना रहा था, तब मरते हुए कीचक को कहा, “जो सैरन्ध्री के लिए कण्टक था, जिसने मेरे भाई की पत्नी का अपहरण करने की चेष्टा की थी, उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं अनृण हो जाऊंगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी ।”
“अद्याहमनृणो भूत्वा भ्रातुर्भार्यापहारिणम् ।
शांति लब्धास्मि परमां हत्वा सैरन्ध्रीकण्टकम् ।।”
(विराट २२-७९)
इस पर भी कोई भीम को द्रौपदी का पति कहता हो तो क्या करें ?
४) द्रौपदी को दांव पर लगाकर हार जाने पर जब दुर्योधन ने उसे सभा में लाने को दूत भेजा तो द्रौपदी ने आने से अस्वीकार कर दिया । उसने कहा जब राजा युधिष्ठिर पहले स्वयं अपने को दांव पर लगाकर हार चुका था, तो वह हारा हुआ मुझे कैसे दांव पर लगा सकता है ? महात्मा विदुर ने भी यह प्रश्न भरी सभा में उठाया ।
यदि द्रौपदी पाँच की पत्नी होती तो वह पूछती, “जब मैं पाँच की पत्नी थी तो किसी एक को मुझे हारने का क्या अधिकार था ? विदुर भी यह प्रश्न उठा सकते थे |
५) द्रौपदी कहती है, “कौरवो ! मैं धर्मराज युधिष्ठिर की धर्मपत्नि हूंँ । तथा उनके ही समान वर्ण वाली हूँ । आप बतावें मैं दासी हूँ या अदासी ?
“तमिमांधर्मराजस्य भार्यां सदृशवर्णनाम् ।
ब्रूत दासीमदासीम् वा तत् करिष्यामि कौरवैः ।।”
(६९-११-९०७)
यहाँ द्रौपदी स्वयं को युधिष्ठिर की पत्नी बता रही है ।
६) पाण्डव वनवास में थे, दुर्योधन का बहनोई सिंधुराज जयद्रथ द्रौपदी को देखकर पूछती है, “तुम कुशल तो हो ?”
द्रौपदी बोली, “सकुशल हूंँ । मेरे पति कुरु कुल-रत्न कुन्तीकुमार राजा युधिष्ठिर भी सकुशल हैं । मैं और उनके चारों भाई तथा अन्य जिन लोगों के विषय में आप पूछना चाह रहे हैं, वे सब भी कुशल से हैं ।
“कौरव्यः कुशली राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः |
अहं च भ्राताश्चास्य यांश्चा न्यान् परिपृच्छसि ||”
(१२-२६७-१६९४)
द्रौपदी भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव को अपना पति नहीं बताती, उन्हें पति का भाई बताती है ।
और आगे युधिष्ठिर की ओर संकेत करके जयद्रथ को बताती है,
“एतं कुरुश्रेष्ठतमम् वदन्ति युधिष्ठिरं धर्मसुतं पतिं मे ।”
(२७०-७-१७०१)
“कुरू कुल के इन श्रेष्ठतम पुरुष को ही, धर्मनन्दन युधिष्ठिर कहते हैं । ये मेरे पति हैं ।”
७) कृष्ण संधि कराने गये तो दुर्योधन को धिक्कारते हुए कहने लगे, “दुर्योधन ! तेरे सिवाय और ऐसा अधम कौन है, जो बड़े भाई की पत्नी को सभा में लाकर उसके साथ वैसा अनुचित बर्ताव करे, जैसा तूने किया ।
“कश्चान्यो भ्रातृभार्यां वै विप्रकर्तुं तथार्हति ।
आनीय च सभां व्यक्तं यथोक्ता द्रौपदीम् त्वया ।।”
(२८-८-२३८२)
कृष्ण भी द्रौपदी को दुर्योधन के बड़े भाई की पत्नी मानते हैं ।
इस प्रकार द्रौपदी का मात्र एक ही पति था – “युधिष्ठिर” ।
उनका नाम पांचाली इसलिए था, क्योकि वो पांचाल नरेश की पुत्री थी, न की पाँच भाइयों की पत्नी । इसके अन्य प्रमाण भी महाभारत में हैं ।
अब सत्य को ग्रहण करें और द्रौपदी के पवित्र चरित्र का सम्मान करें । ईश्वर ने जो बुद्धि, विवेक दिया है, उसका प्रयोग करें ।
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