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आचार्य विष्णु हरि
रंडी शब्द असभ्य है, अशिष्ट है और अकर्णप्रिय है। अगर इस शब्द का अस्तित्व है और किसी का चाल-चरित्र इस शब्द के प्रतीक है तो फिर उसका प्रयोग करना अति आवश्यक होता है। कहा जाता है कि जैसा को तैसा विवरण दीजिये, आलोचना कीजिये। यहां कसौटी सुब्रत रॉय है, जिसको रंडिया प्रबृति और भाड़ पत्रकार सहाराश्री कहते थे। सुब्रत रॉय की मौत के बाद उसके गुणगान में लोग शब्दों की भी इतिश्री कर दी, महानता से विभूषित करने के लिए सारे मापदंड तक तोड डाले गये। जबकि करोड़ों गरीब लोगों के जीवन भर की खून-पसीने की कमाई डूब गयी, हडप लिया, इस पर कोई चिंता नहीं व्यक्त की गयी। सच कड़वा होता है। सुब्रत राय का सच बहुत जहरीला था, धृणित था, खतरनाक था, लूटेरा था, ब्लैकमेलर का था, अमानवीय था। उसने न केवल रंडिया नचायी बल्कि पककारों को नचाया, नेताओं को नचाया, अफसरों को नचाया और विभिन्न क्षेत्रो के विशेषज्ञों को नचाया, बडी-बडी हस्तियों को रूपयों के बल पर पैरों के नीचे रख कर अपना जय-जयकार कराया। सुब्रत रॉय को भगवान इन्द्र जैसा दरबार सजाने का आनन्द था, प्रबृति थी।
सुब्रत राय को आईकॉन मानने वालो को प्रकृति ने सबक भी दिया है और आईना भी दिखाया है। भ्रष्ट और कुकर्म तथा गरीबों को लूटने की सजा भी खतरनाक होती है, जहरीली होती है, अकल्पनीय होती है। क्या आपने नहीं देखा कि प्रकृति ने सुब्रत रॉय को कैसी सजा दी है? ऐसी सजा कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सुब्रत राय को कैंसर सहित कई बीमारियां थी। डॉक्टरों ने मृत्यु की बात कह दी थी, डॉक्टरों ने कह दिया था कि छह मास से अधिक जिंदा नही रहेंगे? परिवार को मालूम था, सहारा इंडिया के टॉप अधिकारियों को मालूम था। लेकिन इस अंतिम समय में उनके साथ न तो उनकी पत्नी थी, न बेटे थे और न ही सहारा इंडिया के टॉप क्लास के अधिकारी। मुबंई फिल्मी दुनिया के जिन हीरो-हिरोइनों को वह नचाता था वे सभी झाकने तक नही गये। ऐसी भयंकर, कष्टकारी और लवारिश मौत अमानवीय व पाप से भरे लोगों की ही होती है।
कुछ तथ्य देख लीजिये। सुब्रत रॉय ने अपने बेटों की शादी में कोई एक-दो नहीं बल्कि पूरे पांच सौ करोड़ रूपये खर्च किये, ये पांच सौ करोड़ रूपये क्या उसके अपनी खून-पसीने से कमाई के थे, नहीं, ये सभी आम गरीब के पैसे थ,े जिन्हें अर्थशास्त्र की भाषा में निवेशक कहते हैं। सुब्रत राय ने आईपीलए की क्रिकेट टीम जो खरीदी थी, जिसमें पांच हजार करोड़ रूपये खर्च किये थे, स्वाहा किये थे वे सभी पैसे गरीब लोगो के थे। सुब्रत रॉय ने जो मोटर रेस की टीम खरीदी थी, उसका पैसा भी आम गरीबों का था। हवाई जहाज चलाने का उसने नाटक किया था वह पैसा भी आम गरीब का था। उसने फिल्मों बनाने पर सैकडों और हजारों करोड़ों रूपये जो स्वाहा किये, वे सभी आम गरीब के पैसे थे। लखनउ सहारा शहर में फिल्मी दुनिया की रंडियों और रंडों को जो वह नचाया करता था और उस पर पैसे स्वाहा किया करता था, वो पैसे भी आम गरीब के थे। अखबार निकाल कर और चैनल शुरू कर जो उसने पैसे स्वाहा किये वे सभी पैसे आम गरीब के थे। सेबी के अनुसार कई हजार करोड का उसने जो निवेशक घोटाला किया था वह पैसा भी आम गरीबों का था। सड़कों पर खाना बना कर बेचने वाले लोग, छोटे दुकानदार, मजदूर और मध्यम वर्ग को चुना लगाने में उसकी अपराधी मानसिकता अतुलनीय थी।
उसने ये सभी प्रंपच ठगी के लिए किये थे। उदाहरण के तौर पर उसने पैसा अमिताभ बच्चन पर खर्च क्यों किया? इसलिए किया कि अमिताभ बच्चन, कपिलदेव और राजबबर आदि के माध्यम से उसे अपनी छबि चमकानी थी, अपनी विश्वसनीयता चमकानी थी, चोर और भगौडा के ठप्पे से मुक्ति पाने का प्रपंच था। सहारा इंडिया वाले गरीबों को फंसाने के लिए कहते थे देखों हमारे सहारा श्री की महफिल में अमिताभ नाचता है, राजबबर नाचता है, जयप्रदा नाचती है, एश्वर्या रॉय नाचती है, करिश्मा कपूर नाचती है, फिल्मी दुनिया का कोई ऐसा हीरो और हिरोइन नहीं है जो सहारा श्री महफिल नहीं नाचती है?
सही भी यही था कि सुब्रत राय की रात की महफिल जब सजती थी तो फिल्मी दुनिया की थिरकन थमथी ही नहीं थी। अमिताभ बच्चन इस दंश को समझते हैं। अनुमान लगा सकते हैं कि अमिताभ बच्चन ने सुब्रत रॉय की मौत के बाद एक शब्द तक क्यों नहीं लिखा? इसलिए कि अतिताभ बच्चन को मालूम है कि उसकी छबि का सुब्रत रॉय और अमर सिंह ने कितना दुरूपयोग किया। अमिताभ ने एक साक्षात्कार में कहा था उसकी दुर्दिन में किसी ने मदद नहीं की थी। अमिताभ के बेटे अभिषेक बच्चन और करिश्मा कपूर की सगाई टूटने के पीछे भी सुब्रत राय और अमर सिंह की महफिल थी। राज बबर का उपयोग करने के बाद सुब्रत रॉय ने दुध की मक्खी की तरह निकाल बाहर कर दिया था। जब निजी प्रसंग पर राजबबर और अमर सिह के बीच झगडा हुआ तब सुब्रत राय ने अमर सिंह की महफिल के साथ खडा हो गया।
आईपीएल की टीम उसने क्या कमाई करने और निवेशकों को लाभ दिलाने के लिए खरीदी थी, क्या उसने हवाई जहाज, अखबार और चैनल आदि कमाई करने और निवेशकों की झोली भरने के लिए चलाया था? इसका उत्तर नहीं है। आखिर क्यों? ये प्रकल्प मौज-मस्ती के लिए, अपने अहंकार संतुष्ट करने और नामी लोगोें को अपने पैरों के नीचे रखने की मानिसकता से चलाया था। सुब्रत रॉय अगर दूरदर्शी था, विलक्षण प्रतिभा का धनी था तो फिर उसका हवाई जहाज का व्यापार क्यों डूब गया, आईपीएल क्रिकेट टीम का व्यापार क्यों डूब गया, फिल्मी दुनिया का कारोबार क्यों डूब गया, अखबार और चैनल क्यों नहीं दौड पाये? अस्पताल और हाउसिंग का कारोबार क्यों नहीं पनपे?
सच तो यह है कि उसने अपनी काली कमाई, ब्लैकमैलिंग और कालेधन की रकम को संरक्षित करने के लिए ये सभी हथकंडे अपनाये, इसमें पेशेवर गुण थे नहीं। अफसरों और नेताओं को खूब हवाई सैर करायी, परिचायिकाओ की सुुदरता और देह खूब देखायी- बेची, जिससे हवाई जहाज का डूब गया। इसी तरह आईपीएल की क्रिकेट टीम इसलिए धाराशायी हो गयी कि उसने फ्री टिकट खूब बांटे, पेशेवर दृष्टिकोण था नहीं।
रातें जब रंगीन होगी तो सीमाएं भी टूटेगी। रोज नयी-नयी सुंदरता के आशिक को एक न एक दिन दुष्परिणाम झेलना ही पडता है। हवा में यह बात तैरती थी कि ये मानसिकता हब्सी तक चली गयी। अफ्रीकी देशों से हब्सियां आने लगी। एकाएक तबीयत खराब हो गयी। लगभग दो साल तक सुब्रत रॉय सार्वजनिक जीवन से दूर हो गये थे। इसी दौरान एडस नामक बीमारी की हवा बही थी। लेकिन सूब्रत रॉय इससे बच निकले थे और फिर से सार्वजनिक जीवन में आये थे।
सर्वगुण संपन्न व्यक्ति की जल्द वाहावही होती है। रातोरात सुब्रत रॉय चमक गये, क्यों? उसने सीढियां हटायी, अपने शुरूआती दौर के सहयोगियों और हिस्सेदारों को निपटाया, राजनीतिज्ञों के कालाधन को अपना भाग्य विधाता बनाया। कहा जाता है कि वीर बहादुर सिंह के पैसे से इनकी किस्मत चमकी थी। वीरबहादुर सिंह के पैसे पचा गये। वीरबहादुर के बेटे ने पैतरेबाजी दिखायी तो फिर अमर सिंह ने कुछ रोटियां फेंककर मामला शांत कराया। सहारा ग्रुप के एक कर्मचारी के सबंध में चर्चा होती है कि उसे नौकरी से इसलिए निकाल बाहर कर दिया था कि उसने कमीशन मांग लिया था। उस समय में उस कर्मचारी ने गुजरात के एक एनआरआई से एक सौ करोड़ रूपये जमा कराये थे। गुजराती एनआरआई का एक सौ करोड रूपये डूब गये। उस कर्मचारी की नौकरी भी गयी और अपने परिचित एनआरआई की बददुआ भी मिली। ऐसे तमाम किस्से हवा में तैरते रहते हैं जो अधिकतर सत्य ही हैं।
पत्रकारिता में नौकर-मालिक, भाड़ पत्रकारिता, चरणपादुका वाली पत्रकारिता के साथ ही साथ उसने चिट-फंड की पत्रकारिता को जन्म दिया। पहले पत्रकारों और मालिकों के बीच में समानता का व्यवहार और संहिताएं थी। मालिकों को पैर क्षूने की हिम्मत कोई पत्रकार नहीं कर पाता था क्योंकि उसके सामने लोकलाज और पत्रकारिता की गरिमा,स्वतंत्रता सामने होती थी। सामूहिक तौर पर पत्रकार सुब्रत रॉय के पैर छूने की प्रतियोगिता में लगे रहते थे। पैर छूने की प्रतियोगिता में जो पत्रकार आगे होता वह आगे बैठता चला जाता था, उसकी किस्मत चमकती चली जाती थी। गोविन्द दीक्षित एक कार्टूननिस्ट था पर संपादक बन गया, एक कार्टूनिस्ट की टेढी-मेढी मानसिकता ने पत्रकारिता की नैया डूबोयी, कितनों की रोजी-रोटी छीनी, उपेन्द्र राय और रणविजय सिंह जैसे अधकचरी मानसिकता से पीडित लोग सुब्रत राय के आईकॉन बन गये।
सुब्रत राय के खडी की गयी चंगू-मंगू पत्रकारिता का एक उदाहरण देखाता हूं। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की भौड़सी आश्रम से संबंधित एक खबर छप गयी। खबर सही थी। फिर चन्द्रशेखर ही नही बल्कि राजनीतिज्ञों के पिछलगू और सुब्रत राय के चंगू-मंगू के रूप में कुख्यात अरूण पांडये व दिलीप चौबे ने प्रपंच खेल दिया, तत्कालीन संपादक विभांशु दिव्याल को डराने-धमकाने की कोई कसर नहीं छोडी गयी, चन्द्रशेखर की शिकायत पर सुब्रत रॉय द्वारा नौकरी से हटाने की चक्रव्यू रची गयी। विभांशु दिव्याल सज्जन प्रबृति के आदमी हैं, उनके सामने परिवार के भरण भोषण की नैतिक जिम्मेदारी थी फिर मैनेज करने के लिए विभांशु दिव्याल ने एक एंकर खबर लिखी थी, खबर की शीर्षक थी ‘ एक खबर की शवयात्रा ‘। एक खबर की शवयात्रा नहीं थी बल्कि सच की पत्रकारिता की शवयात्रा थी, क्योंकि खबर तो सही थी। फिर एक खबर की शवयात्रा के रूप में चन्द्रशेखर के पक्ष में छपी उस खबर को चन्द्रशेखर के पास प्रस्तुत कर चंगू-मंगू यानी अरूण पांडेय और दिलीप चौबे ने खूब प्रशंसा बटोरी थी, रामबहादुर राय की तरह अरूण पांडेय और दिलीप चौबे भी चन्द्रशेखर मंडली की प्रमुख हस्ती बन गये। इस प्रकार के कारनामे बहुत थे।
सुब्रत रॉय कितना फ्रॉड था उसका एक अन्य उदाहरण भी देख लीजिये। उसने राष्टीय सहारा के तत्कालीन स्थानीय संपादक निशीथ जोशी और संयुक्त संपादक राजीव सक्सेना सहित कई मीडियाकर्मियों और सहाराकर्मियों के नाम से फर्जी संपतियां बनायी थी, निवेशकों के पैसे का गबन कर निजी नामों से संपत्तियां बनायी थी। निशीथ जोशी के नाम पर भी कुछ बेनामी संपत्तियां थी। सुब्रत रॉय ने अमर उजाला प्रबंधन की सहायता लेते हुए संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए दांव-पेंच शुरू किया था। राष्टीय सहारा से हटने के बाद निशीथ जोशी अमर उजाला में कार्यरत थे। निशीथ जोशी न ईमानदारी का पाठ पढाया और कह दिया कि मुझे अवैध संपत्तियां नहीं चाहिए, आपने जैसे मेरे नाम पर संपत्तियां बनायी है वैसे आप उसका निपटारा कर लीजिये। फिर क्या हुआ, यह निशीथ जोशी को भी मालूम नहीं है। एक पत्रकार को उसने जेल की हवा भी खिलायी थी, झूठे मुकदमें तभी उठाये जब उसने अपने नाम की सारी अवैध संपत्तियों को सुब्रत रॉय के भ्रष्ट जाल में समाहित किया था। उसने न जाने कितने पत्रकारों को मिनटों-मिनट में इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया।
पत्रकारों और कर्मचारियों की पिटाई करने और इस्तीफा लेने का काम भी होता था। पत्रकारों और कर्मचारियों को बंधक बना कर कई-कई दिनों तक रखे जाते थे, कमरे में बंद रख कर पिटाई होती थी, किसी को जानकारी तक नहीं होती थी, पुलिस अधिकारियों के साथ मिलीभगत होती थी। इसलिए परिवार वालों की शिकायत पर कार्रवाई भी नहीं होती थी। नोएडा स्थित राष्टीय सहारा कपंलेक्स में सहारा इंडिया के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ ही साथ राष्टीय सहारा के प्रबंधक क्षेत्र के अधिकारियों और कर्मचारियों की कमरे में बंद कर पिटाई करने और सादे कागज पर हस्ताक्षर लेने की बात हमेशा सुनने को मिलती थी। इसने कर्मचारियों की संख्या पर झूठ फैलाया। सुबंत रॉय पांच लाख कर्मचारियों को काम देने की बात करता था पर सहारा इंडिया के सभी कंपनियों में दस हजार से भी कम मानव संख्या थी। इसने पैसा जमा कराने वाले एजेंटों को भी अपना स्टाफ कहा करता था जो बाद में स्टाफ होने की बात को नकार गया। सुब्रत रॉय ने झूठ फैलाया कि सहारा इंडिया एक परिवार है, यहां पर सेनानिवृति नहीं है, प्रारंभ काल में सभी की उम्र कम थी। पर बाद में साठ साल की उम्र पार करने से पूर्व में सेवानिवृति दी जाने लगी। सुब्रत रॉय को महान कहने वाले पत्रकार और समुदाय इस झूठ पर क्या कहेंगे।
ज्योति बसु ने इसे सिखाया था सबक और दुत्कार कर भगाया था, बाद में इसने ज्योति बसु से अपने संबंध किसी तरह ठीक किये थे। बात यह थी कि ज्योति बसु के सामने सुब्रत रॉय अपनी आदत के अनुसार लंबा-लंबा हाक रहा था, यह भी कह दिया कि मैं भारत का भाग्य बदल दूंगा…। इस पर हमेशा शांत रहने वाले ज्योति बसु ने कह दिया कि क्या तुम दूसरे ब्रमांड का आदमी हो, तुम्हारा व्यापार क्या है, तुम्हारा उद्योग क्या है, हो तो चिट-फड का ही आदमी, इतना हांकते क्यों है, तुम्ही अपनी औकात नहीं मालूम है, सीधे यहां से जाओ। बंगालीवाद का बहुत बडा सबक सुब्रत राय को मिल गया था। इसने सहारा कर्मियों से लखनड में फर्जी मतदान भी कराये थे। वाजपेयी सरकार में इनकम टैक्स की नोटिस मिलने पर सुबंत राय को बचाने वाले निशीज जोशी और राजीव सक्सेना की टीम थी। कुछ मदद राजनाथ सिंह भी की थी। सहारा की दुनिया में राजनाथ सिंह को अपना आदमी का दर्जा प्राप्त था। इसने भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट को भी चुनौती दी थी, आंख दिखाने की कोशिश की थी। दुष्परिणाम यह हुआ कि जेल भेजकर सुब्रत राय की हेकडी सुप्रीम कोर्ट ने तोडी थी।
आज कई करोड़ गरीब निवेशक परेशान हैं, अपने जीवन की खून-पसीने की कमाई सहारा इंउिया में जमा कर पचता रहे हैं, उनकी अपनी उम्मीदी बेकार साबित हुई है। अब तो पैसे वापस होने की कोई उम्मीद नहीं है। मेरी सहानुभूति गरीब निवेशकों के प्रति हैं, जो अनपढ और अज्ञानी होने के कारण सहारा इंडिया और सुब्रत रॉय के भ्रष्टजाल में फंस गये थे।
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