क्या है राजा इंद्र और कृष्णा जी के युद्ध का सच
इन्द्र और कृष्ण का युद्ध*
पारिजात-हरण का उल्लेख
“भागवत पुराण”, दशम स्कन्ध, उ०, अध्याय ५९,
“विष्णुपुराण”, ५।३०
में है |
जब नरकासुर को मारकर कृष्ण सत्यभामा के साथ द्वारिका लौट रहे थे तो स्वर्ग के नन्दनकानन में खिले पारिजात वृक्ष को देखकर और उसे पाने के लिए लालायित हुई । कृष्ण ने भी अपनी प्रियतमा की इच्छा पूरी करने के लिए उसे उखाड़ लिया । कृष्ण की इस धृष्टता को देखकर क्रुद्ध नंदन-कानन के स्वामी इन्द्र देवताओं की स्वत्व-रक्षा के निमित्त कृष्ण से युद्ध किये । इन्द्र पराजित होकर पारिजात वृक्ष कृष्ण को दे दिया । कृष्ण उसे अपने नगर में ले गये |
कृष्ण की बात मान ब्रजवासी गोवर्धन की पूजा करने लगे, जिससे इंद्र क्रोध में आकर ब्रज में भरी वर्षा करने लगे । आंधी तूफान का कहर मचने लगा । उसी वक्त कृष्ण ने अपने छोटी अंगुली पे गोवर्धन पर्वत को उठाया और ब्रजवासियों की मदद की । भगवान कृष्ण की इस लीला ने इंद्र का घमंड तोड़ कर रख दिया ।
पुराणों की इस कहानी पर तर्कपूर्ण विचार :-
१, इन्द्र और कृष्ण के युद्ध से क्या शिक्षा मिली ?
२, परिजात का वृक्ष स्वर्ग में कैसे छूट गया, जबकि सभी औषधीय पौधे ईश्वर ने धरती पर पैदा किये । दुसरा उसको लेने में युद्ध की अवसर क्यों आ गया ।
३, स्वर्ग नाम का कोई ग्रह अंतरिक्ष वैज्ञानिक नहीं ढूँढ पाये |
४, जब भगवान लोग ही छोटी छोटी बातों पर लड़ने लगेगें, तो सधारण लोग क्या शिक्षा लेगें ?
५, गोवर्धन पर्वत को उँगली पर उठाना भी हास्यप्रद है ।
६, श्रीकृष्ण की एक ही पत्नी रूकमणी थी, वे योगी पुरुष थे, और उन्होंने जीवन में कोई पाप नहीं किया | फिर सत्यभामा से कृष्ण को जोड़ना, उनको कई पत्नियों का पति बताना, उन्हें व्यभिचारी के समकक्ष बताना है । यह अत्यंत निन्दनीय है ।
७, पुराणों के कृष्ण और महाभारत के कृष्ण दो अलग व्यक्तित्व हैं, और उनके चरित्र आपस में मेल नहीं खाते ।
अत: पुराण छोड़ें, वेदों से जुड़ें ।