15 नवंबर / पुण्यतिथि
शिक्षाधर्मी महात्मा हंसराज
डीएवी शिक्षण संस्थान ने देश भर में एक अलग पहचान बनाई है इसका पूरा श्रेय महात्मा हंसराज को जाता है, जिनका योगदान भारतीय समाज में अमूल्य है। इन्होंने शिक्षा और दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए हैं।
विलक्षण प्रतिभा के धनी लाला हंसराज की आरंभिक शिक्षा गांव बजवाड़ा के स्थानीय विद्यालय में हुई थी।
तत्पश्चात राजकीय कॉलेज “लाहौर” से उन्होंने बैचलर ऑफ आर्ट्स की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की थी।
वर्ष 1885 में जब वे अपने बड़े भाई मुल्क राज के यहां रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। तब उन्हीं दिनों लाहौर में स्वामी दयानंद सरस्वती से जुड़ी सत्संग में भाग लेने का मौका मिला। उस सत्संग के दौरान लाला हंसराज के जीवन पर स्वामी दयानंद के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। तत्पश्चात युवा लाला हंसराज ने अपना जीवन सदा के लिए समाज सेवा में समर्पित करने का फैसला किया।
महात्मा हंसराज द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य
महात्मा हंसराज ने 1885 ई• में एंग्लो दयानंद वैदिक (DAV) कॉलेज ट्रस्ट एवं मैनेजमेंट सोसायटी की स्थापना की।
उन्होंने एक जून 1886 ई• को लाहौर में पहला डीएवी महाविद्यालय की स्थापना किया।
राजस्थान के बीकानेर में वर्ष 1895 ई• में आए भीषण अकाल में उन्होंने लोगों की मदद की तथा ईसाई मिशनरियों के द्वारा धर्म परिवर्तन को भी रोकने में सफलता पाई।
वे जोधपुर में भी आये अकाल में लोगों की सहायता की तथा हजारों अनाथ बच्चों को आर्य समाज के आश्रम में लाकर पालन पोषण का दायित्व लिया।
तत्पश्चात उन्होंने वर्ष 1905 में गुजरात के कांगड़ा में वर्ष 1935 में तत्कालीन पाकिस्तान के क्वेटा तथा वर्ष 1934 में बिहार में पीड़ितों की सेवा और सहायता में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
इस प्रकार महात्मा हंसराज ने अपने जीवन काल में प्राकृतिक आपदाओं जैसे अकाल, प्लेग, मलेरिया, भूकंप, बाढ़ आदि के क्षेत्रों में पीड़ितों की सेवा करते रहे।
महात्मा हंसराज पंजाब ही नहीं देश के प्रसिद्ध आर्य समाज के अग्रणी नेता, समाज सुधारक तथा शिक्षा शास्त्री के रूप में जाने जाते हैं।
1883 ई• में स्वामी दयानंद सरस्वती के निधन के पश्चात उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर श्रद्धांजलि स्वरुप 1985 ई• में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसायटी की स्थापना की, तत्पश्चात डीएवी सोसाइटी ने 1 जून 1886 ई• को लाहौर में डीएवी महाविद्यालय की स्थापना किया।
लगभग 25 वर्षों, अर्थात् 2011 तक वे इस पद पर बिना वेतन के कार्य करते रहे।
1913 में उन्हें डीएवी कॉलेज कमेटी का प्रधान चुना गया।
उनके इन्हीं समर्पण के लिए लाला हंसराज को महात्मा हंसराज के नाम से जाना गया।
उन्हीं के प्रयासों से आज देशभर में 750 से अधिक डीएवी विद्यालय तथा महाविद्यालयों द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जा रही है।
महात्मा हंसराज 15 नवंबर 1938 ई• को चिरनिंद्रा में लीन हो गए।
शत् शत् नमन् एवम् विनम्र श्रद्धांजलि