#डॉविवेकआर्य
अतीत पर:
1. अतीत को देखते रहना व्यर्थ है, जबतक उस अतीत पर गर्व करने योग्य भविष्य के निर्माण के लिये कार्य न किया जाय.
अधिकार पर:
2. व्यक्ति को सोचने का पूरा अधिकार है, पर उसे सोचे हुए को भाषा में या कार्यरूप में व्यक्त करने की बात हो तो वह अधिकार शर्तों और सीमाओं में बंध जाता है. नैतिक पहलू से तो वह अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर जोर देना उत्तम है. जो कर्तव्यों से अधिक अधिकारों पर जोर देते हैं, वे स्वार्थी, दम्भी और आत्मकेन्द्रित हो जाते हैं.
अनुशासन पर:
3. सार्वजनिक जीवन में अनुशासन को बनाये रखना और उसका पालन करना बहुत आवश्यक है, अन्यथा प्रगति के मार्ग में बाधा खड़ी हो जायेगी.
असफलता पर:
4. असफलता और पराजय कभी- कभी विजय की ओर आवश्यक कदम होते हैं.
अस्पृश्यता पर:
5. अस्पृश्यता पूर्णरूपेण अमानवीय और जंगली संस्था है जो हिन्दू धर्म और हिन्दुओं के सर्वथा अयोग्य है. हिन्दू शास्त्रों में कहीं भी अस्पृश्यता नहीं मिलती.
अहिंसा पर:
6. पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ शांतिपूर्ण साधनों से उद्धेश्य पूरा करने के प्रयास को ही अहिंसा कहते हैं.
आत्मविश्वास पर:
7. दूसरों पर विश्वास न रखकर स्वयं पर विश्वास रखो. आप अपने ही प्रयत्नों से सफल हो सकते हैं, क्योंकि राष्ट्रों का निर्माण अपने ही बलबूते पर होता है.
ईश्वर पर:
8. एक निर्गुण, निराकर, न्यायकर्ता, दयालु और सर्वबुद्धिमान ईश्वर की बात की जाती है, पर आज प्राप्त होनेवाली शिक्षा यह सिखाती है कि स्वर्ण और सम्पदा ही ईश्वर है जिसकी आराधना, उपासना और इच्छा की जानी चाहिए.
उन्नति पर:
9. त्रुटियों का संशोधन का नाम ही उन्नति है.
कर्तव्य पर:
10. जब तक कोई देशवासी पुलिस या सेना में सेवारत है, वह न तो शपथ भंग करे और न ही अपने कर्त्तव्य से विमुख हो. यदि उसे अपने अधिकारी के किसी आदेश से लगे कि यह धर्म और देश के प्रति घातक है तो बेहतर है कि वह अपने पद से त्यागपत्र दे दे.
शहीद भगतसिंह के ऐेतिहासिक बयान
कष्ट पर:
11. कष्ट उठाना तो हमारी जाति का लक्षण है, पर मनोवैज्ञानिक क्षण में और सत्य की खातिर कष्टों से बचना कायरता है.
जीवन पर:
12. जीवन वास्तविक है, मूल्यवान है, कर्मण्य है और अमूल्य है. इसका आदर हो, इसे दीर्घ बनाये रखना चाहिए और इससे आनंद उठाना चाहिए.
देशसेवा – देशभक्ति पर:
13. देशभक्ति का निर्माण सत्य और न्याय की दृढ़ चट्टान पर ही किया जा सकता है.
धर्म पर:
14. धर्म का अर्थ है – आत्म की ब्रह्म स्वरुपता को जान लेना, उसका प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त कर लेना और तद्रूप हो जाना. यह धर्म कही बाहर से नहीं आता, बल्कि यक्ति के अभ्यंतर से ही उदित होता है. आध्यात्मिक और विश्वव्यापी धरातल पर आते ही धर्म यथार्थ हो उठता है, सजीव हो उठता है, जीवन का अंग बन जाता है. और धर्म तो वाही है जो इहलोक और परलोक में सुखभोग की प्रवृति दे. मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति ही तो धर्म है.
स्त्री/ नारी पर विचार:
15. एक हिन्दू के लिये नारी लक्ष्मी, सरस्वती और शक्ति का मिला -जुला रूप होती है अर्थात वह उस सबका आधार है जो सुन्दर, वांछनीय और शक्ति की ओर उन्मुखकारक है.
नेता पर:
16. नेता वह है जिसका नेतृत्व संतोषप्रद और प्रभावशाली हो, जो अपने अनुयायियों से सदैव आगे रहता हो, जो निर्भीक और साहसी हो और उसकी निःस्वार्थता संदेह से परे हो.
परतंत्रता पर विचार:
17. परतंत्रता की दिशा में बढ़ने का अर्थ है ह्रास की ओर बढ़ना.
प्रगति पर विचार:
18. प्रगति का अर्थ है – बैचेनी, शांति में कुछ कमी, वर्तमान स्थितियों में कुछ अव्यवस्था. इसका मार्ग मृत विचारधाराओं और मृत आदर्शों से अवरुद्ध है और मरणासन्न सिद्धांतों और विश्वासों की लाशों से पटा है.
भारत /देश पर विचार:
19. भारत एक विशाल देश है जिसके पास असीमित साधन और शक्तियां हैं और जिसमें पूरी मानव जाति का बहुत बड़ा भाग रहता है. यह सभी कर्जनो, सिडेनहमों और मोर्निंग पोस्ट जैसे अख़बारों के चले जाने और विस्मृत किये जाने के बाद भी हमेशा रहेगा. इसमें सभी प्रकार के अच्छे -बुरे, उदासीन -हितैषी तथा अत्याचारी शासक आये और चले गए. उनकी अच्छी बुरी, उदासीन स्मृतियों उनके कार्यों में निहित है. यही अंग्रेजी शासन के साथ भी होगा.
मृत्यु पर विचार:
20. एक सम्मानजनक मृत्यु निश्चय ही एक अपमानजनक जीवन से उत्तम है, पर सम्मान सहित जीया गया जीवन क्षणिक आवेश के कारण प्राप्त मृत्यु से असीमित रूप से श्रेष्ठतर है.
मोक्ष/मुक्ति पर विचार:
21. वास्तविक मुक्ति दुखों से, निर्धनता से, बीमारी से, हर प्रकार की अज्ञानता से और दासता से स्वतंत्रता प्राप्त करने में निहित है.
राजनीति पर विचार:
22. राजनीति की सीढ़ी का पहला चरण है – सच्ची राजनीतिक विचारधारा में लोगों को शिक्षित करना, उन्हें राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता और एकता की आस्थावान, सच्ची देशभक्ति के धर्म में दीक्षित करना ताकि वे ह्रदय की सारी निष्ठा और भक्ति के साथ उसमें विश्वास करें.
सत्य पर विचार:
23. सत्य की उपासना करते हुए सांसारिक लाभ हानि की चिंता किये बिना ईमानदार और साहसी होना चाहिए.
समाज पर विचार:
24. वह समाज कदापि नहीं टिक सकता जो आज की प्रतियोगिता और शिक्षा के समय में अपने सदस्यों को प्रगति का पूरा पूरा अवसर प्रदान नहीं करता.
स्वतंत्रता पर विचार:
25. स्वतंत्रता का मार्ग लम्बा और कष्टपूर्ण है.
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