महर्षिदयानंदकृत वेदभाष्य से उद्धृत विचार]:-*

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🍀 मनुष्यों को चाहिए कि सत्पुरुषों ही की सेवा और सुपात्रों ही को दान दिया करें । विद्वानों में उत्तम पदार्थों का दान करके जगत् में विद्या और अच्छी शिक्षा को बढ़ाकर विश्व को सुखी करें ।
🍀 वनवृक्षों की रक्षा से वर्षा की बहुलता और आरोग्य होता है ।
🍁 संतान भी माता-पिताओं को बुरे व्यवहारों से निरंतर बचावे । क्योंकि इस प्रकार किए बिना सब मनुष्य धर्मात्मा नहीं हो सकते ।
🍁 जब सत्य वा मिथ्या का निश्चय हो जावे, तब सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग कर देवें । ऐसे करने में कोई निंदा और कोई स्तुति करें तो भी सत्य को कभी न छोड़े और मिथ्या का ग्रहण कभी न करें । यही मनुष्यों लिए विशेष गुण है ।

∆∆• अ॒भि त्य॑ दे॒वँ०।।(यजु० ४-२५)

भावार्थः- मनुष्यों को सब जगत् के उत्पन्न करने वाले निराकार, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, सच्चिदानन्दादि लक्षणयुक्त परमेश्वर, धार्मिक सभापति और प्रजाजन समूह ही का सत्कार करना चाहिये उन से भिन्न और किसी का नहीं । विद्वान् मनुष्यों को योग्य है कि प्रजा-पुरुषों के सुख के लिये इस परमेश्वर की स्तुतिप्रार्थनोपासना और श्रेष्ठ सभापति तथा धार्मिक प्रजाजन के सत्कार का उपदेश नित्य करें जिससे सब मनुष्य उन की आज्ञा के अनुकूल सदा वर्त्तत्ते रहें और जैसे प्राण में सब जीवों की प्रीति होती है वैसे पूर्वोक्त परमेश्वर आदि में भी अत्यन्त प्रेम करें ॥ २५ ॥

(महर्षिदयानंदकृत यजुर्वेद भाष्य से उद्धृतत)

प्रस्तुति:- ध्रुवदेव, दर्शन योग महाविद्यालय, आर्यवन, रोजड

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