वीर सावरकर –
मुझे शासन ने कोई उपाधि प्रदान नहीं की, मेरा जब्त किया हुआ मकान वापस नही किया इसलिए कुछ व्यक्ति दुखी हैं किन्तु मुझे कभी किसी उपाधि की अभिलाषा नहीं रही, तीन चतुर्थांश भारत स्वतंत्र हुआ देखकर ही हमने सबकुछ पा लिया।
क्रांति की उपासना जिस समय पागलपन समझी जाती थी उस समय उसकी उपासना हम क्रांतिकारियों ने समर्पण बुद्धि से की, सैकड़ों युवक फांसी पर लटक गए, उन्हें किसी भी चीज की अभिलाषा न थी, वे लोग स्वतंत्रता आन्दोलन के वास्तविक महान सैनिक थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कोई मुझे मंत्री बनाएगा, कोटा – परमिट व जागीर देगा, यह कल्पना तक उन सब के मन में नही आई। जीवित रहकर स्वाधीनता का उपभोग करने की अभिलाषा भी उन्हें न थी। तुलना की जाये तो कहना पड़ेगा कि वे निरे देशभक्त थे, आजादी की नींव के वास्तविक पत्थर थे। उस समय उनके मन में यही अभिलाषा थी कि मैं मरूँगा तो मेरे पीछे से विजय का ध्वज लिए आ रही सेना का मार्ग निष्कंटक करूँगा। केवल देशभक्ति की भावना के ऐसे मस्तानों से भरे जहाज अंडमान की काल कोठरी में गए।
मुझे घानी खींचने का काम देकर तेल निकालने लगाया गया। मैं मन ही मन कहता कि मेरे इन कष्टों का क्या उपयोग? मैं तेल निकालता हूँ और ये प्रतिदिन उसे खा जाते हैं, परन्तु नहीं.. उस तेल की प्रत्येक बूंद से हिन्दुस्थान में क्रान्ति की अग्नि ज्वालायें धधक उठी थीं, अंडमान में अनेक फांसी चढ़े, कष्ट सहते रहे किन्तु अपने पथ से विचलित न हुए। स्वातंत्र्य युद्ध में बलिदान होने वाले हुतात्माओं के त्याग के फलस्वरूप ही आज कुछ लोग मंत्री हो गए, अध्यक्ष हो गए, कुछ सत्ता पर अधिकार जमाकर बैठ गए।
किन्तु हम तो संतुष्ट हैं क्योंकि….
“हमने पदों और कुर्सियों के स्वार्थ के लिए संघर्ष थोड़े ही किया था।”
-वीर सावरकर