25 जुलाई 2012 को 13 वें राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी ने शपथ ग्रहण की। वह एक विचारशील राजनीतिज्ञ थे। उनको देश की समस्याओं का गहरा ज्ञान था और 1984 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या की गई थी तो उस समय प्रणब मुखर्जी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की भी चर्चा चली थी। वह उस समय प्रधानमंत्री पद के गंभीर प्रत्याशी थे। परंतु देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गांधी को उस समय देश का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। अनेक मंत्रालयों में सफलतापूर्वक काम करने का अनुभव रखने वाले प्रणब मुखर्जी जिस किसी मंत्रालय में भी रहे, वहीं उन्होंने अपनी निराली छाप छोड़ी । उनमें राजनीति की गहरी समझ थी और अपने निर्णय पर अडिग रहने की उनकी प्रबल इच्छा शक्ति के सामने सबको झुकना पड़ता था। अनेक लोगों की यह मान्यता रही कि वह राष्ट्रपति बनने की नहीं, प्रधानमंत्री बनने की क्षमता और योग्यता रखते थे। जुलाई 2012 में प्रणब मुखर्जी पी.ए. संगमा को 70% वोटों से हराकर राष्ट्रपति पद पर विराजमान हुए। ये पहले बंगाली थे जो राष्ट्रपति बने थे। प्रणब मुखर्जी ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह जैसे कई प्रधानमंत्रियों के साथ रहकर कार्य किया और विभिन्न मंत्रालयों में अपनी योग्यता की छाप छोड़ी। 2017 तक वह देश के राष्ट्रपति रहे। इस दौरान कांग्रेस की मनमोहन सरकार के स्थान पर भाजपा की मोदी सरकार सत्ता में आई, तब भी उन्होंने नई सरकार की नई सोच के साथ समन्वय स्थापित करने में अपनी राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया। उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने कार्यकाल में भारत रत्न देकर भी सम्मानित किया।
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत