वाल्मीकि रामायण महापुरुष श्री रामचन्द्र जी का प्रेरणादायक एवं मार्गदर्शक जीवन चरित्र है। सदियों से विश्व के जनमानस को रामायण से जीवन में आचरण, परिवार में सम्बन्ध, राज्य व्यवस्था, त्याग, तपस्या, भातृप्रेम, पति-पत्नि व्रता, न्याय व्यवस्था आदि महत्वपूर्ण विषयों पर मानव सीखता आया हैं। इसी कड़ी में रामायण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष उसकी आध्यात्मिकता भी है। रामायण में सभी मुख्य पात्र वैदिक धर्म के मूल आधार संध्या (ईश्वर की स्तुति प्रार्थना और उपासना), हवन, प्राणायाम (चित साधना) एवं वेद अध्ययन का पालन करते हैं। यही उनकी आध्यात्मिक उन्नति, सदाचार, उत्तम व्यवहार एवं न्यायप्रियता का मुख्य कारण था। पुरुष के समान महिलाएं भी वेद मन्त्रों से अपनी आत्मा की उन्नति करती थी।
श्री राम
श्री राम वेद-वेदांग के तत्ववेत्ता थे।- वाल्मीकि रामायण बाल कांड 1/14
राम सर्व विद्याव्रत स्नातक तथा यथावत अंगों सहित वेद के जानने वाले थे।- वाल्मीकि रामायण अयोध्या कांड 1/20
सीता के शोक से ग्रस्त राम ने लक्ष्मण द्वारा आश्वस्त होने पर संध्या की। – वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड 6/23
राम-लक्ष्मण ने प्रात:काल उठ, स्नान आदि से शुद्ध होकर, संध्या कर,परब्रह्मा का ध्यान कर, अग्निहोत्र कर बैठे हुए विश्वामित्र का ध्यान किया।- वाल्मीकि रामायण युद्ध कांड 29/31-32
पुरोहित के जाने के पश्चात राम ने स्नान कर पत्नी सहित नित्य ईश्वर की उपासना की। वाल्मीकि रामायण अयोध्या कांड 6/1
माता कौशलया
माता कौशलया ने प्राणायाम के साथ परमात्मा का ध्यान किया।- वाल्मीकि रामायण अयोध्या कांड 4/33
रेशमी वस्त्र पहने हुए कौशलया नित्य व्रतपरायण मंत्र सहित हवन करती थी।- वाल्मीकि रामायण अयोध्या कांड
इस प्रकार से वाल्मीकि रामायण में जीवन में आध्यात्मिक उन्नति करने हेतु वेद अध्ययन, संध्या, प्राणायाम एवं ईश्वर उपासना के अनेक उदहारण मिलते हैं।
वाल्मीकि रामायण के महान चरित्रों के समान जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए संध्या पथ के गामी बने इसी प्रण के साथ की वह नित्य संध्या, हवन एवं वेद अध्ययन का संकल्प लेंगे।
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