यह हमारे जीवन की सच्ची और हमेशा याद रखने वाली एक ऐसी घटना है , जिसके कुछ साक्षी हमारे कुछ मित्र आज भी मौजूद हैं , इस घटना के माध्यम से हम पाठकों को यह समझाना चाहते हैं कि इस्लाम सही जानकारी होने के कारण हमारे जो मित्र हमें मुसलमान बनाना चाहते थे ,किस तरह और किस कारन से हमें मुसलमान बनाने में पूरी तरह से असफल हो गए थे . यह सन 1977 -78 के बिच की बात है , उन दिनों हम पश्चिम रेलवे में इंश्योर्ड गार्ड के रूप में नियुक्त थे , इस से काफी पहले ही जब हम बारहवीं क्लास में झाँसी में पढ़ते थे उर्दू सीख ली थी और अरबी में पूरी कुरान पढ़ना सिख लिया था ,और किताबों के माध्यम से अरबी व्याकरण सीख रहे थे , और नौकरी लग जाने पर दारुल देवबंद से कुरान का “मुरासलाती कोर्स ( पत्राचार कोर्स ) कर रहे थे , चूँकि हमारा हेड क्वाटर मुंबई ही था , और हमेशा हमारी नाइट ड्यूटी ही रहती थी , इसलिए हम पूरे दिन फ्री रहते थे , उस समय ईरान में आर्यमेहर मुहम्मद रजा शाह पहलवी का शासन था , और मुंबई की चर्नीरोड स्टेशन ईस्ट में ईरान की एम्बेसी थी , जहाँ लोगों को फारसी भाषा सिखाई जाती थी , हमने वहां दीवाने हाफिज , गुलिस्तां , बोस्ताँ पढ़ ली थी , और मौलाना रूम मसनवी की पढाई चल रही थी ,साथ में अरबी कोर्स भी चालू था , चूँकि रेलवे में हमारी नियुक्ति 20 मई 1969 में हुई थी , इसलिए इतने बरसों में हमारी कई लोगों से बड़ी गहरी मित्रता हो गयी थी ,ऐसे मित्रों में कुछ मुस्लिम भी थे , जो जानते थे कि हम उर्दू ,अरबी और फारसी जानते हैं , ऐसे एक मित्र का नाम जफर अहमद खान था (Z.A.Khan) .जो अजमेर में स्टॉक वेरिफायर थे , और अक्सर महालक्ष्मी डिपो में ऑडिट के लिए आया करते थे , जहाँ पश्चिम रेलवे की डिपो है , तब हमारी शादी नहीं हुई थी , मुंबई सेन्ट्रल स्टेशन से कुछ दूर पर महाराष्ट्र वाहतूक भवन है , इसी से आगे पोस्ट ऑफिस के सामने “पटेल रेस्टोरेंट ” था , खान साहब अक्सर हमें और मित्रों के साथ उसी पटेल रेस्टोरेंट में चाय पिलाने के लिए ले जाते थे , क्योंकि वहां एक ऐसी मशीन लगी थी ,जिसमे दस पैसे का सिक्का डाल कर अपनी पसंद के गाने का रिकार्ड सुन सकते थे , हम चाय साथ गाने का भी आनंद लिया करते थे , उस समय हमें पता नहीं था कि ,रेस्टोरेंट का मालिक मुंबई के कुख्यात स्मगलर युसूफ पटेल का रिश्तेदार है ,
1-इस्लाम के लिए शादी का लालच
एक दिन खान साहब ने होटल के मालिक को मेरा परिचय देकर कहा कि यह जनाब बजाते हिन्दू बिरहमन हैं ,लेकिन उर्दू फारसी और कुरान शरीफ मायने के साथ समझते हैं , और रेलवे में गार्ड हैं ,होटल के मालिक ने हमसे पूछा कि यहाँ आपका और कौन है ? हमने कहा कोई नहीं . तब होटल वाले ने पूछा आपके परिवार कौन कौन हैं ,आपके पिता क्या करते है ? हमने कहा कि पिताजी तो गुजर गए है , हमारे गांव में हमारी मां और चार छोटे भाई हैं , तब होटल के मालिक ने पूछा की आपकी पगार ( PAY ) कितनी है , हमने कहा सब मिल कर करीब पांच हजार रुपया है , यह सुनते ही मालिक खान साहब से बोलै , इन शर्मा जी को लेकर मेरे होटल के ऊपर वाले कमरे में लेकर आइये , हम खान साहब के साथ उस कमरे में गए , उसने हमें बिठा कर कहा कि देखिये इतनी कम पगार में आपके इतने बड़े परिवार का खर्चा कैसे चलेगा ?हमने कहा क्या करें चलाना पड़ता है , तब होटल के मालिक ने कहा देखिये मेरी दो लड़कियां हैं , आपको जो पसंद हो ,उस से शादी कर लीजिये और मुसलमान बन जाइये , और इस होटल का गल्ला यानि जिम्मेदारी सम्भालिये , हमारे गुजरात में और भी होटल हैं , आप अपनी औरत के साथ आराम से रहिये और यह नौकरी छोड़ दीजिये ,खान साहब बोले इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है , लेकिन हमने यह बहाना किया हमारी शादी की बात गाओं में चल रही तब होटल वाला बोला तब तो अपनी पत्नी के साथ ही इस्लाम कबुल कर लेना , और खान साहब से बोलै यह आपकी जिम्मेदारी है , उस दिन हमने बड़ी मुश्किल से जान बचायी , लेकिन खान साहब जब भी मिलते तो मुसलमान होने पर जोर देते रहते थे और हम बात टाल दिया करते थे ,
2-मुसलमान बनने पर दवाब
इस घटना के बाद जब भी खान साहब अजमेर से मुंबई आते और हम से मिलते थे ,तो हमेशा इस्लाम अपनाने पर जोर दिया करते थे , एक बार वह अपने साथ चीफ कैशियर ए यू शैख़ को साथ में लाये ,जो चर्च गेट मे कैश ऑफिस में काम करते थे और हमारे पहले से ही परिचित थे ,खान साहब उनके साथ हमें मिर्ची गली स्थित जामा मस्जिद के काजी के पास ले गए , और काजी को हमारा परिचय दिया , काजी ने करीब एक घंटा हमें इस्लाम की खूबियां समझायीं और हम सुनते रहे ,आखिर हमने काजी से पूछा कि मुसलमान बनने के लिए हमें क्या करना होगा ? और हमने काजी से जो सवाल किये थे , और काजी ने जो जवाब दिए थे ,वह इस प्रकार हैं
3-काजी से सवाल जवाब
स -क्या गोश्त खाना पड़ेगा ?
ज – गोश्त हलाल जानवरों का खा सकते हो लेकिन यह फर्ज नहीं है , आपकी मर्जी है ,खाओ या नहीं खाओ .
स -क्या टोपी लगाना और कुरता पजामा पहिनना पड़ेगा ?
ज़ -कोई जरुरी नहीं , आप बिना टोपी और शर्ट पैंट पहिन सकते हो ,
स -क्या लम्बी दाढ़ी रखना पड़ेगी ?
ज – आपकी जितना दाढ़ी है वह ठीक है ( हमने कभी अपनी दाढ़ी क्लीन शेव नहीं की , आज भी थोड़ी दाढ़ी है .
इसके बाद हमने काजी से कहा की यह जगह दूर है , और अगर आप लोग हमें मुसलमान बना लोगे तो हमारे साथ हमारे तीन मित्र भी मुसलमान बन जाएंगे ,यह सुनते ही काजी बहुत खुश हुए , और शैख़ जी के द्वारा स्थान जगजीवन राम अस्पताल के आगे एक मस्जिद में कार्यक्रम तय कर दिया .
यह 16 जनवरी शुक्रवार 1984 की बात है , हमसे काजी ने कहा कि आप और आपके जो साथी मुसलमान बनना वह नहा कर साफ कपडे पहिंन कर दस बजे तक मस्जिद में आ जाएँ ,वहां मौलाना हाजी अहमद गुलाम मुहीउद्दीन रायबा कलमा पढ़ा कर मुस्लिम बनाएंगे .
4-मुसलमान बनाने वाला असफल हो गया
निर्धारित दिन और समय के अनुसार हम अपने साथ जिन मित्रों को लाये थे ,उनके नाम हैं , 1 -उमेश शर्मा , 2 -टी पी सिंह 3 किशोर जे पटेल। और खान साहब , ए यू शेख के साथ कैशियर बक्शी और अब्दुल रशीद टी सी भी थे , सबके आने पर मौलाना रायबा ने हमसे पूछा क्या आप कलमा पढ़ कर इस्लाम कबुल करने को तैयार हैं ? हमने कहा हम पढ़ने को तैयार हैं , दिखाइए हम पढ़ कर सबको सुना देंगे , काजी बोला सुनाने की बात नहीं है , मैं जैसा बोलूं आप वैसा ही बोलते रहना , तब हमने सबके सामने मौलवी से पूछा आपने तो कलमा पढ़ने की बात कही थी , आपतो बुलवा रहे हैं , आप कुरान से वह आयात दिखाइए जिसमे कलमा लिखा हो , हम पढ़ देंगे , हमें अरबी आती है , हम आपके कहने पर कलमा नहीं दुहराएँगे , पढ़ने की बात तय हुई थी , बोलने की नहीं , यह सुनते ही मौलवी का मुंह उतर गया , और हमारा दोस्त तारा चन्द जोर से बोल उठा ‘शर्मा जी की जय हो ! और हम दोस्तों के साथ तुरंत स्टेशन के लगेज ऑफिस में चले गए जहाँ चीफ जग्गू भाई पटेल थे ,क्यों ऐसा हमने सुरक्षा के लिए किया था , वही पास में रेलवे पुलिस का ऑफिस था ,हमने सोचा मुसलमान कोई फसाद न करें .’हम अपने दोस्तों के साथ मुसलमान इसलिए नहीं बन पाए क्योंकि हमें पता था कि कुरान में कलमा नहीं है ,
(भविष्य में हम अपने जीवन की ऐसी सच्ची घटनाएं देते रहेंगे ,कृपया आप लोग पूरा लेख ध्यान से पढ़ा करें यही अनुरोध है )
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बृजनंदन शर्मा
(लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखन के निजी विचार हैं)