शारदीय नवसस्येष्टि (दीपावली) के पञ्चदिवसीय पर्व एवं महर्षि दयानन्द सरस्वती के निर्वाण दिवस के अवसर पर सभी भारतीय बन्धुओं व बहनों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
समस्त वैदिक सत्य सनातन धर्मप्रेमी मित्रजनो! महर्षि दयानन्द जी ने कहा था कि किसान राजाओं का राजा है और यह पर्व किसानों का ही है, जो खरीफ की फसल आने और रबी की फसल बोने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसकी प्रसन्नता में घर-घर यज्ञ करने, घृत व तेल के दीपक जलाने की परम्परा रही है, जिससे ऋतु परिवर्तन के कारण होने वाले रोगों से बचाव हो सके। दुर्भाग्य से कालान्तर में यह पर्व प्रदूषण व रोग-निवारक होने के स्थान पर पटाखों, मोमबत्तियों के प्रदूषणों व इनके कारण नाना प्रकार के रोग बढ़ाने का पर्व होकर रह गया। धीरे-धीरे हम यज्ञ की सुगन्धि के स्थान पर वायुमण्डल में विष घोलने को ही अपनी सनातन संस्कृति मानने लग गये। कोई यह नहीं सोचता कि रोग व प्रदूषण फैलाना पुण्यकारी नहीं, बल्कि पाप कर्म है, तब इसे अपनी सनातन परम्परा कैसे मान सकते हैं? हमारी संस्कृति तो ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:’ की रही है, इसे हम क्यों भुला बैठे हैं?
आज किसान की प्रासंगिकता व महत्ता कहाँ बची है? राजाओं का राजा किसान क्यों दीन-हीन व कंगाल बन गया है? इन विषयों पर मैं सभी सज्जनों व देवियों से आग्रह करता हूँ—
१. पटाखों व मोमबत्तियों का प्रयोग कदापि नहीं करें। इनके स्थान पर गोघृत अथवा जो भी उपलब्ध हो सके, उस घृत से हवन करें। इतना न कर सकें, तो घृत, कपूर, गुग्गुल व गुड़ जलाकर घरों में सुगन्ध करें। सोचें कि आपके पटाखों के पैसे कौन ले रहा है और उस पैसे का वे क्या करते हैं?
२. मिट्टी के दीपक (तेल अथवा घृत) जलाएँ।
३. शुद्ध मिठाइयाँ, सम्भव हो तो घर की बनी हुई ही प्रयोग करें।
४. प्रत्येक प्रकार के भेद-भाव, ऊँच-नीच को भुलाकर सबसे प्रीतिपूर्वक मिलें।
५. मांस, मछली, अण्डा जैसे अभक्ष्य पदार्थों एवं सभी प्रकार के नशीले पदार्थों का पूर्ण परित्याग करें और दूसरों से करायें। जूआ खेलने जैसे पापों से बचें।
किसान बन्धु सरकारों के आगे न्यूनतम समर्थन मूल्य आदि के लिए गिड़गिड़ाना छोड़ें और अपने गौरव को पहचानें। आप सबके अन्नदाता हैं। कोई भी मनुष्य आपके बिना जीवित नहीं रह सकता, फिर भी आप विवश व दु:खी क्यों हैं? क्या आपने कभी इस पर विचार किया है?
आयें और यह भी करके देखें—
१. अपनी कृषि का आधार गाय व बैल को ही बनायें। इसके लिए उन किसानों से प्रेरणा लें, जो गौ आधारित उन्नत कृषि कर रहे हैं। शुद्ध व स्वावलम्बी कृषि का आधार बैल व गाय ही हैं।
२. ट्रैक्टर, रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक पदार्थ आपकी भूमि को विषैला व बंजर बना देंगे, तब आपकी पीढिय़ों के लिए आप क्या छोड़ कर जा रहे हैं? आप कम्पनियों के मायाजाल से निकलें। इनके कारण भूमिगत जल का स्तर निरन्तर कम होता जा रहा है।
३. अपने देशी बीज ही बोयें, हाईब्रीड, जी.एम. आदि नये-नये बीजों का पूर्णत: बहिष्कार करें। ये बीज कैंसर, नपुंसकता, बाँझपन आदि नाना प्रकार के रोगों को उत्पन्न करने वाले हैं।
४. यथासम्भव अपने खेत में सभी आवश्यक फसलें बोयें। जैसे- गेहूँ, जौ, बाजरा, मक्का, चावल, दाल, गन्ना, मसाले, फल व शाक। इससे आपकी बाजार पर निर्भरता बहुत कम होगी। इसके साथ आप गाय-भैंस, बकरी, ऊँट आदि पालकर दूध, घृत, छाछ, दही के स्वामी होंगे और सामान्य माल परिवहन (कम दूरी) भी पशुओं द्वारा करके डीजल, पैट्रोल की बचत करके स्वावलम्बी बन सकेंगे और पर्यावरण को भी बचाने में भी सहायक होंगे।
५. आप अपने खेतों में वर्षा का जल अवश्य रोकें, इससे भूमिगत जल का स्तर निरन्तर बढ़ता जायेगा।
६. जब सभी खाद्य पदार्थ व कपास आदि आपके पास होंगे और आप विलासिता की सामग्री का बहिष्कार करके सादा जीवन जीने लगेंगे, तब आपको किसी के सामने गिड़गिड़ाना नहीं पड़ेगा। जिस किसान के खेत में सभी फसलें न हो सकें, वे दूसरे किसानों से विनिमय करें और मुद्रा का प्रयोग यथासम्भव कम से कम करें।
७. जब आप ऐसा करने लगेंगे, तब आपको अनाज व दूध बेचने की बहुत आवश्यकता नहीं रहेगी। तब जो आपको गंवार, मूर्ख व दास समझते हैं, को दिन में तारे दिखाई देने लगेंगे और वे उसी प्रकार आपके पास अन्न, शाक, दूध व फल व मसाले खरीदने लाइन लगाकर आयेंगे, जैसे अब आप बाजार में खरीदने वा बैंक से अपना ही पैसा लेने के लिए लाइन में लगते हैं। तब अन्न, दूध, फल आदि का मूल्य आप तय करेंगे, वे नहीं।
प्रारम्भ में आपको यह करने में कठिनाई हो सकती है। सादा जीवन जीने, बैल से हल चलाने में कष्ट होगा, परन्तु धीरे-धीरे आप देखेंगे कि आपका तन व मन स्वस्थ होता चला जायेगा। आपका सम्मान बढ़ता चला जायेगा, तब आपकी दीपावली होगी। यदि आप अपनी पीढ़ी को बचाना चाहते हैं, पर्यावरण तथा सम्पूर्ण धरती को बचाना चाहते हैं, तो स्वयं बदलें और दूसरों को भी प्रेरित करें। इसके साथ ही आप सबको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं ऋषि दयानन्द निर्वाण दिवस पर उन्हें कोटिश: नमन।