डा. शंकर दयाल शर्मा भारत के नौवें राष्ट्रपति बने। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी जी.जी. स्वेल को भारी मतों से परास्त किया था। जी.जी. स्वेल को 1500 मत मिले थे जबकि डा. शर्मा को 2865 मत मिले थे। भाजपा जनता दल एवं अन्य क्षेत्रीय दल प्रो. जी.जी. स्वेल के साथ थे किंतु सी.पी. आई. (एम) तथा सी.पी.आई. कांग्रेस के साथ डा. शर्मा के लिए खड़े हो गये जिससे उनकी जीत आसान हो गयी। डा. शर्मा को छह लाख पिचहत्तर हजार आठ सौ चौंसठ मत मिले। जबकि प्रो. स्वेल को तीन लाख छियालीस हजार चार सौ उनासी मत मिले थे। अत: डा. शर्मा को 64.78 प्रतिशत मत मिले और प्रो स्वेल को मात्र 33.21 प्रतिशत मत ही मिल सके। राष्ट्रपति बनने से पूर्व डा. शर्मा भारत के उपराष्ट्रपति थे।
1972-1974 में वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। इससे पूर्व 1968-1972 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव बनाये गये। 10 अक्टूबर 1974 से 24 मार्च 1977 तक वह संचार विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे। 1984 में वे आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बनाये गये। 1985 में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाकर भेजा गया।
तीन सितंबर 1987 को वे उपराष्ट्रपति के पद पर आसीन किये गये। इस पद पर निर्विरोध निर्वाचित होने वाले वे तीसरे व्यक्ति थे। स्वभाव से डा. शर्मा बहुत ही विनम्र और अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। कानून से हटकर निर्णय लेने की वह सोच भी नहीं सकते थे। उपराष्ट्रपति के रूप में राज्यसभा का संचालन करते समय इन्हें राजीव गांधी वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर तथा पी.वी. नरसिंहाराव जैसे कई प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य करना पड़ा। लेकिन कभी भी इन्होंने किसी के लिए पक्षपाती होने का आरोप अपने ऊपर नहीं आने दिया। उनके राज्यसभा संचालन के समय विपक्षी सांसद बहिगर्मन नहीं करते थे। 1992 में कुछ उद्दण्डी सांसदों ने जब ऐसा किया तो जब तक उन सांसदों ने क्षमा याचना नहीं कर ली वे सभा की अध्यक्षता के लिए नहीं गये। 25 जुलाई 1992 को भारत के नौवें राष्ट्रपति के रूप में इन्हें जस्टिस एम.एच. कानिया ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई थी।
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत