सैरंध्री कीचक द्वारा किए गए अपने अपमान को भुला नहीं पा रही थी। अब वह उस पापी के अंत की योजना पर विचार करने लगी। तब एक दिन उसने निर्णय लिया कि आज रात्रि में जाकर भीम को बताया जाए और उसके द्वारा इस नीच पापी का अंत कराया जाए। सैरंध्री ने यही किया और एक दिन वह रात्रि के अंधकार में उठकर भीम के कक्ष में पहुंच गई। भीम ने अचानक अपने कक्षा में आई हुई द्रौपदी को देखकर कहा कि “इतनी रात गए तुम्हारे यहां आने का प्रयोजन क्या है ? मुझे सच-सच बताओ। तुम्हारी कांतिहीन मुख मुद्रा को देखकर मैं यह अनुमान लगा सकता हूं कि निश्चय ही तुम इस समय किसी कष्ट में हो। मैं तुम्हारे हर कष्ट का निवारण करता आया हूं। मैं आज भी आपको यह विश्वास दिलाता हूं कि मेरे से जो बन पड़ेगा, उस प्रकार तुम्हारे कष्ट का हरण करूंगा।”
तब द्रौपदी ने भीम को बताया कि “राजा विराट का जो यह कीचक नाम का सेनापति है, वह उनका साला लगता है। उसकी बुद्धि पाप से भरी है। वह जब भी मुझे देखा है तभी मुझे कहता है कि “तुम मेरी पत्नी बन जाओ।”
“उस पापी के इस प्रकार के प्रस्ताव को सुन-सुनकर मेरा हृदय विदीर्ण हो रहा है । भीम ! राजा का निकट संबंधी और प्रिय होने के कारण ही कीचक मेरे लिए इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करता है। मैं चाहती हूं कि तुम इस पापी को इस प्रकार नष्ट कर दो जैसे पत्थर पर पटक कर किसी घड़े को फोड़ दिया जाता है। इस नीच पापी के रहते हुए मुझे चैन नहीं मिल सकता। मैं जहर घोलकर पी लूंगी, परंतु कीचक के अधीन नहीं होऊंगी। भीम ! कीचक के वश में होने की अपेक्षा तुम्हारे समक्ष प्राण त्याग देना अधिक अच्छा मानती हूं।”
इस प्रकार के दु:ख भरे शब्दों को सुनकर भीम को अत्यधिक कष्ट हुआ । तब उसने द्रौपदी से कहा कि “तुम निश्चिंत रहो। मैं इस पापी का अंत निश्चय ही कर दूंगा । कल रात्रि में आप इसे किसी प्रकार उकसाकर नृत्यशाला की ओर ले आना। वहां पर एक पलंग पड़ा हुआ है। मैं इसे उस पलंग पर पटककर इसका अंत कर दूंगा और इसे अपने बाप दादों से मिलने के लिए भेज दूंगा। उस समय तुम इस प्रकार का नाटक करना जैसे तुम्हें कोई देख नहीं रहा है। किसी प्रकार इसे एक बार उस पलंग की ओर लाने के लिए प्रेरित करना। मैं वहीं छिपा बैठा होउंगा और इसका अंत कर दूंगा।”
इस बातचीत के बाद भीम और द्रौपदी वहां से अलग-अलग हो गए। प्रातः काल में कीचक उस दिन भी उठकर सैरंध्री के कक्ष में गया और उससे कहने लगा कि ” सैरंध्री ! तुम्हें यह भली प्रकार ज्ञान होना चाहिए कि मैंने तुम्हें किस प्रकार यहां के राजा की राजसभा में पटक कर लात मारी थी। उस समय राजा भी कुछ नहीं बोल पाया था । जानती हो, ऐसा क्यों हुआ था? ऐसा केवल इसलिए हुआ था कि यहां का राजा वास्तव में मैं हूं। क्योंकि सारी सेना मेरे अधीन है। मेरी शक्ति के सामने यहां का राजा कुछ नहीं कर सकता। तुम्हें मेरी शक्ति पहचाननी चाहिए और मेरी अर्धांगिनी बनकर जीवन को आनंद में गुजारने के लिए आगे आना चाहिए।”
तब द्रौपदी ने उस कामवासना से पागल हुए कीचक से कहा कि “यदि ऐसा है तो मैं तुम्हारे साथ आने को तैयार हूं। पर मैं तुमसे एक ही बात कहना चाहती हूं कि हमारी तुम्हारी वार्ता को कोई न जाने न सुने। इसके लिए तुम्हें मेरे पास अकेले ही आना होगा। मैं चाहती हूं कि यहां की नृत्यशाला में दिन में कन्याएं खेलती कूदती हैं, पर रात में वहां पर सूनापन रहता है। यदि तुम उस एकांत में मेरे साथ सहवास करो तो मुझे तुम्हारा बनने में कोई आपत्ति नहीं है। उस गुप्त स्थान को गंधर्व भी नहीं जानते।” सैरंध्री की इस बात को सुनकर कीचक आनंद से पागल हो उठा। उसने बिना आगा पीछा सोचे सैरंध्री से कह दिया कि जैसा तुम चाहती हो मैं वैसा ही करूंगा और नृत्यशाला के एकांत में तुम्हारे साथ सहवास करूंगा।”
उस अधर्मी को उस दिन यह पता नहीं था कि आज तू अपने आप ही अपनी मौत की ओर जाएगा। द्रौपदी ने दिन की संध्या होते-होते अपनी सारी योजना से किसी प्रकार भीम को अवगत करा दिया। भीम ने भी मन में प्रसन्नता व्यक्त करते हुए आज अपने इस शत्रु का अंत करने का निर्णय ले लिया।
अपनी बनी बनाई योजना के अनुसार भीमसेन रात्रि में पहले ही नृत्य शाला में पहुंचकर छिपकर बैठ गए। इधर कीचक भी सज धजकर द्रोपदी के साथ समागम की अभिलाषा लिए उस नृत्य शाला के निकट आ गया । वहां उसने नि:संकोच प्रवेश किया। वहां प्रवेश करने पर उसने देखा कि वह विशाल भवन चारों ओर से अंधकार में ढका हुआ था। भीमसेन वहां जाकर एकांत में एक शय्या पर लेटे हुए थे। द्रौपदी के आने से पहले ही कीचक इस शय्या पर पहुंच गया और उस चारपाई पर लेटे भीमसेन को सैरंध्री मान बैठा। उसे नहीं पता था कि इस शय्या पर उसका काल लेट रहा है।
उस समय कीचक ने भीमसेन को ही सैरंध्री मानकर उसके साथ अश्लील हरकतें करनी आरंभ कर दीं। इस पर भीमसेन ने कहा कि “सौभाग्य की बात है कि तुम स्वयं अपनी प्रशंसा कर रहे हो , परंतु ऐसा कोमल स्पर्श भी तुम्हें पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ होगा। तुम कामशास्त्र के विलक्षण ज्ञाता प्रतीत होते हो।” कीचक से ऐसा कहकर भयंकर पराक्रमी कुंती पुत्र भीमसेन अचानक उछल पर खड़े हो गए और हंसते हुए कीचक से कहने कि “मैं तुझ पापी को पृथ्वी पर पटककर वैसे ही घसीटुंगा जैसे शेर महान गजराज को घसीटता है। ऐसा कहकर महाबली भीम ने कीचक के सिर के बाल पकड़ लिए। कीचक भी अत्यधिक बलशाली था। सिर के बाल पकड़ लिए जाने पर उसने जोरदार झटका देकर बालों को छुड़ा लिया। बड़ी फुर्ती से भीम को दोनों भुजाओं में जकड़ लिया। इसके पश्चात उन दोनों में बाहु युद्ध होने लगा। दोनों ऐसे लड़ रहे थे जैसे दो सांड लड़ रहे हों। कीचक भीम की पकड़ में आकर बलहीन होता जा रहा था। इसके उपरांत भी वह यथाशक्ति भीम को परास्त करने का प्रयास कर रहा था।
अचानक कीचक ने भीम को पृथ्वी पर पटक लिया। तब ऐसा लगा कि वह नीच पापी ही इस द्वंद्व युद्ध में विजयी होगा, पर ऐसा नहीं हुआ। भीमसेन हाथ में दंड धारण करने वाले यमराज की भांति बड़े वेग से उछलकर खड़े हो गए। तब उन्होंने अपनी दोनों हथेलियों से कीचक की छाती पर प्रहार किया। चोट खाकर बलशाली कीचक मारे क्रोध से जल उठा। पर वह अपने स्थान से एक इंच भी विचलित नहीं हुआ। भूमि पर खड़े रहकर दो घड़ी तक वह भीमसेन के बल से पीड़ित हो अपनी शक्ति खो बैठा। वह अचेत होते हुए धरती पर गिर रहा था। तब भीमसेन उसकी छाती पर चढ़ बैठे और बड़े वेग से उसे रौंदने लगे। अंत में भीम ने कीचक को अपनी भुजाओं में कस लिया। उन्होंने दोनों हाथों से उसका गला पकड़कर बड़े जोर से दबाया। अब कीचक के सब अंग टूट गए। आंखों की पुतलियां बाहर निकल आईं और वस्त्र फट गए। तब उन्होंने उस नीच कीचक की कमर को अपने घुटनों से दबाकर दोनों भुजाओं द्वारा उसका गला घोंट दिया और उसे पशु की भांति मारने लगे। मृत्यु के समय कीचक को दु:खी होते देख पांडुनंदन भीम ने उसे धरती पर घसीटा और कहा कि “अपने बड़े भाई की पत्नी ( इससे स्पष्ट है कि द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी ना होकर केवल युधिष्ठिर की पत्नी थी। ) का अपहरण करने वाले सैरंध्री के लिए कंटक रूप दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं ऋण से उऋण हो जाऊंगा और मुझे अत्यधिक शांति प्राप्त होगी।”
इस प्रकार नीच कीचक का अंत कर भीम ने आराम की सांस ली। भीम ने कीचक का सारा शरीर मथ पर मांस का लौंदा सा बना दिया। तब उन्होंने द्रौपदी से कहा “पांचाली ! यहां आओ और इसे देखो। मैंने इस पापी की कैसी दुर्गति बना दी है ?”
इस कहानी से हमें चरित्र की बड़ी ऊंची शिक्षा मिलती है। हमें यह पता चलता है कि प्राचीन काल में हमारे पूर्वज अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा देते थे। महिलाएं पतिव्रत धर्म का पालन करती थीं और किसी भी कीमत पर अपने आत्मसम्मान को नीलाम नहीं होने देती थीं। इससे हम एक सुरक्षित, सभ्य और सुसंस्कारी समाज बनाने में सफल होते थे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( यह कहानी मेरी अभी हाल ही में प्रकाशित हुई पुस्तक “महाभारत की शिक्षाप्रद कहानियां” से ली गई है . मेरी यह पुस्तक ‘जाह्नवी प्रकाशन’ ए 71 विवेक विहार फेस टू दिल्ली 110095 से प्रकाशित हुई है. जिसका मूल्य ₹400 है।)