धन तेरस पर्व* भाग- 2
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डॉ डी के गर्ग
धन्वंतरि त्रयोदशी पर बर्तन खरीदने का औचित्य और महत्व:
ये सभी जानते हैं कि कार्तिक माह में वर्षा और ग्रीष्म ऋतु की पूर्ण विदाई और शरद ऋतु का पूर्ण आगमन हो चुका होता है। भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष अक्टूबर सितंबर के महीने में अक्सर बीमारियां फैल जाया करती हैं। जैसे कि मलेरिया, डेंगू, खांसी, कफ, बुखार का प्रकोप दिन-प्रतिदिन फैलता चला जाता है। अधिकांश परिवार इसकी चपेट में आ चुके होते हैं। धनवंतरि ने खोज द्वारा बताया कि शरद ऋतु सभी रोगों की माता है। धनवंतरि ने वानस्पतिक चिकित्सा द्वारा इससे बचने के सभी उपाय बताये। ताकि पूरे वर्ष के लिए बीमारियों से बचने का बीमा पहले से ही कर ले। इसलिए धनवंतरि के समय से ही प्राकृतिक उत्पादनों का बाजार शुरू हुआ जिसमें स्वास्थ्य से संबंधित उत्पादन की खरीद्दारी की जाने लगी। जिनमे मिट्टी के बर्तन भी शामिल थे। क्योंकि अधिकांश आयुर्वेद की दवाएं मिट्टी के बर्तन में बनाई जाती है। उस समय आयुर्वेद का ज्ञान अपनी उच्चतम चरम सीमा पर पहुंच चुका था।
आयुर्वेद में रोगों की पहचान और उनके निवारण हेतु प्रयुक्त की जाने वाली औषधियों का विस्तृत विवरण दिया हुआ है।धनवंतरि ऋषि द्वारा विभिन्न रोगों के लिए अनेक रसायन अपनी प्रयोगशाला में तैयार किए गए थे। दुनिया के लोगों को स्वस्थ बनाए रखने में उनकी तपस्या ने अपना महत्वपूर्ण सहयोग किया। धनवंतरि ऋषि ने अपने जीवन में एक नियम बनाया था कि दीपावली से 2 दिन पूर्व प्रति वर्ष रसायनों को नए बने मिट्टी के बर्तनों में रखा जाए। जिससे कि वे एक बर्तन में रहते हुए सड़ने की स्थिति में न पहुंच जाएं।
उक्त नियम के अनुसार प्रतिवर्ष ऋषि द्वारा रसायनों को नए बर्तनों में रखा जाता था और नव बर्तन कुंभकार से खरीद कर मंगाए जाते थे। जिससे हमारे कुंभकार समाज के लोगों का भी जीवन अच्छी तरह से चलता था। इसीलिए रसायनों, दवाइयों, तथा औषधियों को मिट्टी के बर्तनों में सुरक्षित और संरक्षित रखा जाता था।
ऋषि धनवंतरि कहते है कि आयुर्वेद और प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करो तो तुम्हारे जीवन में ऐश्वर्य आएगा। आयुर्वेद ने स्वस्थ शरीर को ही धन माना है। आयुर्वेद के अनुसार, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ शरीर और दीर्घायु से ही हो सकती है और इसी से धन सम्पदा की बढ़ोतरी सम्भव है।
प्राचीन भारत में प्रतिवर्ष नव बर्तन खरीद कर दवाइयों को संरक्षित रखने के लिए बरतन खरीदने की एक प्रथा बन गई जो कालांतर मे अपभ्रंश होते -होते ,बिगड़ते बिगड़ते वर्तमान स्वरुप में सोने चांदी आदि की खरीददारी पर रुक गई। अब रसायनों को बदलने के लिए नहीं बल्कि घर में धन को आमंत्रित करने के लिए बरतन खरीदे जाते हैं । अब इसका अर्थ मात्र यही रह गया है । वर्तमान में यह एक ऐसी रूढ़ी बन गई है जिसका धन्वंतरि से कोई सम्बन्ध नहीं है ।
वैदिक स्वरूप में ईश्वर का एक नाम धन्वंतरि : वैदिक स्वरूप में देखें तो प्रत्येक ग्रहस्थ हर दिन धनतेरस मनाता था। नित्य प्रति किए जाने वाले बलिवैश्वदेव यज्ञ की सोलह आहुतियों में पांचवी आहुति इस मन्त्र से दी जाती है।
ओ३म धन्वन्तरये स्वाहा ||५||
महर्षि जी ने इस मन्त्र मे आये धन्वन्तरये शब्द का अर्थ इस प्रकार किया है।
” जो जन्म- मरण आदि रोगों का नाश करने हारा परमात्मा है वह धनवंतरी कहाता है।”
कालांतर में धनवंतरी शब्द चिकित्सकों के संबंध में भी रूढ हो गया। जो मानस शारिरिक रोगों की चिकित्सा करें वह भी धनवंतरी कहलाने लगा। ईश्वर आध्यात्मिक मानसिक शारीरिक तीनों रोगों का समूल नाश करता है। इस आलोक में ईश्वर को धनवंतरी भी कहा गया है।
आज के दिन हमें विशेष होम अपने घर परिवार में करना चाहिए ।रोग नाशक सुगंधित पुष्टि दायक मिष्ठान पकवान विशेष आहुति चूल्हे की अग्नि में ही देनी चाहिए चूल्हे की अग्नि में यदि संभव नहीं है तो विशेष मिष्ठान की आहुति अग्निहोत्र की अग्नि में आज के दिन देनी चाहिए ऋषियों ने बलि वैश्व देव यज्ञ का विधान यद्यपि पाक अग्नि में ही किया है आज अधिकांश परिवारों में चूल्हे पर भोजन पकाने का कार्य नहीं होता तो ऐसे में देश काल प्रस्थिति के अनुसार दैनिक यज्ञ के हवन कुंड में यह आहुति दी जा सकती हैं।
वास्तविक पर्व विधिः आज आवश्यकता धनवंतरी ऋषि के जीवन, उनके सिद्धांतों उनके आदर्शों और उनके द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में की गई क्रांति को समझने की है ना कि बर्तन खरीद कर इस त्यौहार का गलत अर्थ निकालने की।
ऋषि धन्वंतरि के द्वारा दिये गये ज्ञान में प्रकृति के समुचित उपयोग से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी उपायों को जन-मानस में पहुंचाना और प्रकृत्ति के सदुपयोग द्वारा सभी के स्वास्थ्य की रक्षा के प्रति जागरूक करते रहना ही धनतेरस पर्व का मुख्य प्रयोजन है।
१. इस दिन मिट्टी और तांबे के बने बर्तन खरीदे।
2. शरीर शुद्धि के लिए आयुर्वेदिक औषधि उत्पाद एवं वनस्पति खरीदे।
3. अच्छे स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेदिक विषय पर चर्चा एवं गोष्ठी का आयोजन करें, उनमे भाग ले।
4. आज के दिन परिवार के साथ सामूहिक यज्ञ करें और उसमे मौसम के अनुसार सुगन्धित और पुष्टिवर्धक औषधि सामग्री में डालें।
5. शरद ऋतु में संभावित बीमारियों से बचने की योजना बनाये और सुखपूर्वक भविष्य के लिए चर्चा करें।
6. घर में आयुर्वेदिक साहित्य लाए और आर्युवेद के अध्ययन का संकल्प ले।