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लेखक आर्य सागर खारी 🖋️।

महर्षि दयानंद सरस्वती ने पंचमहायज्ञ विधि नामक अमूल्य लघु ग्रंथ में ग्रहस्थ आश्रम में किए जाने वाले पांचो यज्ञों पर प्रकाश डाला है। महर्षि दयानंद जी की अपनी मान्यताओ के प्रस्तुतिकरण की( उल्लेखनीय होगा महर्षि की अपनी कोई निज मान्यता नहीं थी वेद की ही मान्यता महर्षि दयानंद की मान्यता थी) अपूर्व अद्भुत ऋषि प्रोक्त आर्ष शैली रही है।महर्षि जी पहले आप्त व शब्द प्रमाणों से विषय को पुष्ट करते हैं फिर विधि पक्ष को स्थापित करते हैं।

पंच महायज्ञ विधि ग्रन्थ में बलिवैश्वदेव यज्ञ के प्रमाण प्रकरण में महर्षि जी लिखते है।

अथ बलिवैश्वदेवकर्मणि प्रमाणम

अहरहर्बलिमिक्ते हरन्तोsश्वायेव तिष्ठते घासमग्ने ।
रायस्पोपेषेण समिषा मदन्तो मा ते अग्ने प्रतिवेशा रिषाम|| १||

अथर्ववेद काण्ड १९ सूक्त ५५ मन्त्र ७

अथर्ववेद १९ वे कांड के ५५वें सूक्त के सातवें मंत्र को महर्षि दयानंद प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करते हैं साक्षात वेद से महर्षि दयानंद प्रमाण देते हैं।

इस मंत्र के भाषार्थ में महर्षि जी लिखते है।

“हे !अग्नि परमेश्वर आपकी आज्ञा से नित्य प्रति बलिवैश्वदेवकर्म करते हुए हम लोग चक्रवर्ती राज्यालक्ष्मी, घी, दुग्ध पुष्टि कारक पदार्थ की प्राप्ति और सम्यक शुद्ध इच्छा से नित्यानंद में रहे तथा माता-पिता, आचार्य आदि की उत्तम पदार्थों से नित्य प्रतिपूर्वक सेवा करते रहे जैसे घोड़े के सामने बहुत से खाने के पदार्थ धर दिए जाते हैं, वैसे सब की सेवा के लिए बहुत से उत्तम उत्तम पदार्थ देवे जिनसे वह प्रसन्न होकर हम पर नित्य प्रसन्न रहे ।हे! परम गुरु अग्नि परमेश्वर आप और आपकी आज्ञा से विरुद्ध व्यवहारों में हम लोग कभी प्रवेश न करें अन्याय से किसी प्राणी को पीड़ा ना पहुंचावे , किंतु सबको अपना मित्र अपने को सबका मित्र समझ के परस्पर उपकार करते रहें।”

इन्हीं उत्तम भाव व्यवहारों की प्राप्ति के लिए पाक अग्नि में बलिवैश्वदेव देव यज्ञ किया जाता है ।जिसके दो भाग हैं एक होम, दूसरा बलि रखना अर्थात भोजन का हिस्सा रखना।

होम के १० मंत्र हैं ।बलिदान के १६ मंत्र हैं।

आज कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी है। आज का दिवस धनतेरस के रूप में मनाया जाता है ऐसा प्रचलन में है । धनतेरस को महर्षि धन्वंतरि नामक प्राचीन आयुर्वेदाचार्य की जयंती के रूप में भी मनाया जाता ऐसी मान्यता है।

वैदिक स्वरूप में देखें तो प्रत्येक ग्रहस्थ हर दिन धनतेरस मनाता था। नित्य प्रति किए जाने वाले बलिवैश्वदेव यज्ञ की पांचवी आहुति इस मन्त्र से दी जाती है।
ओ३म धन्वन्तरये स्वाहा ||५||

महर्षि जी ने इस मन्त्र मे आये धन्वन्तरये शब्द का अर्थ इस प्रकार किया है।

” जो जन्म- मरण आदि रोगों का नाश करने हारा परमात्मा है वह धनवंतरी कहाता है।”

महर्षि दयानंद जैसा दूसरा महाभारत काल के पश्चात इतिहास में आध्यात्मिक मार्ग का प्राशस्ता ईश्वरवादी दार्शनिक नहीं हुआ है।
कालांतर में धनवंतरी शब्द चिकित्सकों के संबंध में भी रूढ हो गया। जो मानस शारिरिक रोगों की चिकित्सा करें वह भी धनवंतरी कहलाने लगा। ईश्वर आध्यात्मिक मानसिक शारीरिक तीनों रोगों का समूल नाश करता है महर्षि दयानंद ने वेद के अनेक मंत्रो का भाषार्थ इस विषय में किया है ।आज के दिन हमें विशेष होम अपने घर परिवार में करना चाहिए ।रोग नाशक सुगंधित पुष्टि दायक मिष्ठान पकवान विशेष आहुति चूल्हे की अग्नि में ही देनी चाहिए चूल्हे की अग्नि में यदि संभव नहीं है तो विशेष मिष्ठान की आहुति अग्निहोत्र की अग्नि में आज के दिन देनी चाहिए ऋषियों ने बलि वैश्व देव यज्ञ का विधान यद्यपि पाक अग्नि में ही किया है आज अधिकांश परिवारों में चूल्हे पर भोजन पकाने का कार्य नहीं होता तो ऐसे में देश काल प्रस्थिति के अनुसार दैनिक यज्ञ के हवन कुंड में यह आहुति दी जा सकती हैं। महर्षि दयानंद ने पंच महायज्ञ का सरलीकरण करते हुए उन्हें मनुष्य मात्र के लिए सुलभ सहज करने योग्य बनाया है ।महर्षि जी का पंच महायज्ञ विधि ग्रंथ इसका उत्तम प्रमाण है।

आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं ।

लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

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