सर्वप्रथम वेदों का प्रादुर्भाव भारतवर्ष की धर्म धरा पर हुआ ।
ईश्वरीय वाणी वेद का यह निर्मल ज्ञान संसार में सर्वत्र फैलाने का काम हमारे ऋषियों ने किया। वैसे तो वेद एक ही है पर संख्या की दृष्टि से इसे चार भागों में बांटकर देखा जाता है।
प्रत्येक वेद का एक उपवेद है। इस प्रकार 4 वेद +4 उपवेद कुल 8 हो जाते हैं। जिनमें से एक उपवेद आयुर्वेद है।
आयुर्वेद में रोगों की पहचान और उनके निवारण हेतु प्रयुक्त की जाने वाली औषधियों का विस्तृत विवरण दिया हुआ है।
वेद अथवा उपवेद हमारे ऋषियों के द्वारा सृष्टि के प्रारंभ में प्राप्त हुए हैं। कालांतर में आने वाले ऋषियों ने वेद ज्ञान के प्रचार प्रसार और विस्तार में अपना जीवन खपा दिया। ऐसे अनेक ऋषि हुए जिन्होंने वेद ज्ञान की निर्मल धारा को धरती के कोने कोने में पहुंचने का प्रशंसनीय कार्य किया।
आयुर्वेद के क्षेत्र में काम करने वाले ऋषियों में धनवंतरि ऋषि का विशेष योगदान रहा। इसलिए उन्हें भारतवर्ष में ही नहीं वेद और आयुर्वेद से परिचित रहे संसार के सभी क्षेत्रों में प्राचीन काल में जाना जाता था। उन्होंने भारत की यश पताका को दूर-दूर तक फहराने में अपना अप्रतिम योगदान दिया। धनवंतरि ऋषि द्वारा विभिन्न रोगों के लिए अनेक रसायन अपनी प्रयोगशाला में तैयार किए गए थे। दुनिया के लोगों को स्वस्थ बनाए रखने में उनकी तपस्या ने अपना महत्वपूर्ण सहयोग किया।
धनवंतरि ऋषि ने अपने जीवन में एक नियम बनाया था कि दीपावली से 2 दिन पूर्व प्रति वर्ष रसायनों को नए बने मिट्टी के बर्तनों में रखा जाए। जिससे कि वे एक बर्तन में रहते हुए सड़ने की स्थिति में न पहुंच जाएं।
उक्त नियम के अनुसार प्रतिवर्ष ऋषि द्वारा रसायनों को नए बर्तनों में रखा जाता था और नव बर्तन कुंभकार से खरीद कर मंगाए जाते थे। जिससे हमारे कुंभकार समाज के लोगों का भी जीवन अच्छी तरह से चलता था। इसीलिए रसायनों, दवाइयों, तथा औषधियों को मिट्टी के बर्तनों में सुरक्षित और संरक्षित रखा जाता था।
प्रतिवर्ष नव बर्तन खरीद कर दवाइयों को संरक्षित रखने के लिए बरतन खरीदने की एक प्रथा बन गई जो कालांतर मे अपभ्रंश होते -होते ,बिगड़ते बिगड़ते वर्तमान स्वरुप में धनतेरस कहीं जाती है । अब रसायनों को बदलने के लिए नहीं बल्कि घर में धन को आमंत्रित करने के लिए बरतन खरीदे जाते हैं । अब इसका अर्थ मात्र यही रह गया है । वर्तमान में यह एक रूढ़ी बन गई है। देखा- देखी आज के दिन बर्तन जरूर खरीदे जाते हैं, नहीं तो माना जाता है कि ऐसा न करने पर लक्ष्मी नाराज हो जाएगी, और पूरे वर्ष लक्ष्मी का दर्शन नहीं होगा।
जो बर्तन खरीदने जाते हैं उनके घर में धन आता है या नहीं आता, यह तो मालूम नहीं, परंतु जो व्यापारियों को धन से भरपूर कर दिया जाता है। और अपना धन घर से बाहर कर दिए जाता है।यह कैसी विडंबना है।
इसका धनतेरस से कोई संबंध नहीं है। आयुर्वेदाचार्य धनवंतरि ऋषि की प्रथा को हम नमन करते हैं। उस ऋषि को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। यहां पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि धन्वंतरि त्रयोदशी ही हमारे इस महान ऋषि का जन्म दिवस भी है। हमारे ऋषि पूर्वज इस दिन को धन्वंतरि त्रयोदशी के नाम से ही मानते आए हैं। इसलिए भी इस शब्द को बिगाड़ कर धनतेरस कहने लगे हैं।
हम यहां पर यह बात भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष अक्टूबर सितंबर के महीने में अक्सर बीमारियां फैल जाया करती हैं। उन बीमारियों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए भी ऋषि धन्वंतरि जी की जयंती का विशेष महत्व है। उन सभी बीमारियों का निदान किस प्रकार हो और हम किस प्रकार पूरे वर्ष के लिए स्वास्थ्य का बीमा कर लें ? इसके लिए भी धन्वंतरि त्रयोदशी के महत्व को समझने की आवश्यकता है।
आज आवश्यकता धनवंतरी ऋषि के जीवन, उनके सिद्धांतों उनके आदर्शों और उनके द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में की गई क्रांति को समझने की है ना कि बर्तन खरीद कर इस त्यौहार का गलत अर्थ निकालने की।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट चेयरमैन उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।