सत्य को ग्रहण और असत्य को छोड़ना चाहिए

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ओ३म् विश्वानि देव सवितर दुरितानि परासुव यद् भद्रम् तन्न आसुव ( हे सकल जगत के उत्पत्तिकर्त्ता , समग्र ऐश्वर्ययुक्त , शुद्धस्वरूप , सब सुखों के दाता , परमेश्वर ! आप कृपा करके हमारे सम्पूर्ण दुर्गुण , दुर्व्यसन और दुखों को दूर कर दीजिए , जो कल्याणकारक गुण कर्म स्वभाव और पदार्थ है वह सब हमको प्राप्त कराइये )
अर्थात जो श्रेष्ठ है उसी को ग्रहण करो और जो बुरा है उसे छोड़ो , चाहे अपना हो या पराया ।

ईश्वर सत्य है और उसके गुण कर्म स्वभाव भी सत्य है ।
जो वस्तु जैसी होती है उसके कार्य भी वैसे ही होते है ।
इसलिए ईश्वर सत्य है , उसकी वाणी भी सत्य है और उसकी वाणी है वेद ।

और वेद का रक्षक है आर्य समाज । आर्य समाज वेद को मानता है।
आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य सत्य का प्रचार करना है , जिससे संसार का उपकार हो ।
जिस जिस बात को सब मानते हो जिसमें सबका हित हो उसे ग्रहण कीजिये और जिसमें आपसी विरोध हो और दूसरों की हानि हो उसे छोड़ दीजिये ।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी कहते है कि सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए ।
इसलिए जो वेदानुकूल है , उसका आचरण करना चाहिए जैसे ईश्वर एक है , सर्वव्यापक है , न्यायकारी है , निराकार है , ईश्वर का ज्ञान वेद है , वेद अनुसार ईश्वर की उपासना करना , ईश्वर की एक प्रजा मनुष्य जाति है इसलिए सबके साथ प्रेमसहित न्यायपूर्वक व्यवहार करें , किसी के साथ अन्याय न करें न पक्षपात करे और न किसी का शोषण करें ।
जैसा व्यवहार अपने लिए चाहते है वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करें , जैसे अपने लिए सुख की इच्छा करें , वैसा ही दूसरों के लिए भी सुख की इच्छा करे ।
सबकी उन्नति में ही अपनी उन्नति समझनी चाहिए ।
और जो वेद की निंदा , वेद का अपमान और वेदविरुद्ध आचरण मांस खाना , शराब पीना , जुआ खेलना , नशा करना , व्यभिचार करना , जड़ पूजा करना , करता है उसको ईश्वर अवश्य दंड देगा ।
इसलिए जो सत्य है उसे ग्रहण कीजिये और असत्य को छोड़ दीजिए ।
नोट: यदि सत्य ग्रहण की इच्छा है , तो आर्य समाज से जुड़े ।

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