भारत के राष्ट्रपति और उनका कार्यकाल ,भाग – 4
वाराहगिरि वेंकट गिरि (Varahgiri Venkat Giri)
24 अगस्त 1969 को भारत के चौथे राष्ट्रपति के रूप में प्रात: नौ बजे पद और गोपनीयता की शपथ ली। डा. खुशवंत सिंह ने इन्हें तब तक के सारे राष्ट्रपतियों में सर्वाधिक दुर्बल राष्ट्रपति कहकर उल्लेखित किया है। लेकिन यहां राष्ट्रपतियों की तुलना करना उचित नहीं होगा। इतना अवश्य था कि कांग्रेस भी अंतर्कलह के कारण गिरि की निष्ठा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रति थी और वही उन्होंने बनाये भी रखी। उन्होंने अपने पहले संबोधन में इंदिरा गांधी को अपनी पुत्री के रूप में संबोधित किया था। जिस पर कई लोगों ने आपत्ति और आश्चर्य व्यक्त किया था। लेकिन वीवी गिरि ने यह भली भांति स्पष्टï कर दिया था कि संवैधानिक परंपराएं अलग हैं और उनका निर्वाह करना भी एक अलग पक्ष है। जबकि व्यक्तिगत संबंध और मर्यादाएं एक अलग चीज है। इंदिरा गांधी ने वीवी गिरि के निर्वाचन के लिए तब कांग्रेसियों को अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने के लिए कहा था। वीवी गिरि को 50.2 प्रतिशत वोट मिले थे और लगभग नगण्य अंतर से ही वह जीत पाये थे। उनके विरूद्ध नीलम संजीवा रेड्डी चुनाव मैदान में थे। यदि रेड्डी जीते गये होते तो इंदिरा गांधी और वी.वी. गिरि की तकदीर की तस्वीर ही दूसरी हो सकती थी। इसलिए वस्तुस्थिति को समझकर गिरि इंदिरा गांधी के प्रति आभारी रहे तो इसमें गलत तो कुछ हो सकता है पर निंदनीय नहीं। 24 अगस्त 1974 को इन्होंने राष्ट्रपति छोड़ा। उसी दिन डाक विभाग ने इनके सम्मान में एक 25 पैसे का नया डाक टिकट जारी किया। वह एक विदेशी शिक्षा प्राप्त विधिवेत्ता, सफल छात्र नेता, एक अतुलनीय श्रमिक नेता, निर्भीक स्वतंत्रता सैनानी, एक जेल यात्री, एक प्रमुख वक्ता, एक त्यागी पुरूष जिन्होंने केन्द्रीय मंत्री पद को त्याग दिया था, अपने सिद्घांतों पर अडिग रहने वाले नैष्ठिक पुरूष थे। उन्हें 1975 में भारत रत्न से सुशोभित किया गया था।
डॉ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत