भ्रम में जीने वाले हिन्दू , धर्म रक्षा कैसे करेंगे ?
१- हिन्दू आज संशय में है कि वे ईश्वर को निराकार माने या साकार मूर्तियों को।
२- हिन्दू निर्णय नहीं कर पा रहे कि दुष्ट और अधर्मियों का वध करने के लिए ईश्वर अवतार लेगा या उन्हें स्वयं धर्म रक्षा करनी होगी।
३-हिन्दू को ज्ञान नहीं हो रहा कि वे भक्ति व उपासना नाच कूद कर ढोल घंटा बजा कर जागरण वरत से करें या यज्ञ योग ध्यान व समाधि अवस्था में करें।
४- हिन्दू निर्णय नहीं कर पा रहा कि उनका धर्म शास्त्र वेद हैं या गीता रामायण पुराण या जिसने जो बता दिया वहीं मान लेना धर्म है।
५-हिन्दू को समझ नही आ रहा कि जो कथा वाचक और पुजारी कहते हैं वे धर्म है या चार वेद, चार उपवेद, चार ब्राह्मण ग्रंथ, छ: वेदांग, ग्यारह उपनिषद, छ: दर्शन शास्त्र, मनुस्मृति, बाल्मिक रामायण, व्यास कृत महाभारत, सत्यार्थ प्रकाश, ऋगवेदादिभाष्यभूमिका।
६- हिन्दू जान नहीं पा रहा कि धर्म श्रद्धा और आस्था पर टीका है या सत्य तर्क विज्ञान और अटल सृष्टि नियमों के आधार पर।श्रद्धा को महत्व दें या ज्ञान को।
७- हिन्दू को जानकारी नहीं हो रही कि सुख दुख का मूल कारण कर्म फल व्यवस्था है।इस लिए वे तीर्थों मन्दिरों हर धर्म स्थलों पर जा कर सुख की इच्छा से भटक रहा है।
८- हिन्दू को समझ नहीं आ रही कि जनेऊ और चोटी उसके धर्म चिन्ह हैं या तिलक टीका कलावा।
९-हिन्दू निर्णय नहीं कर पा रहा कि मांसाहार से शक्तिशाली बनेगा या आत्म बल से।
१०- हिन्दू को कैसे समझ आयेगी कि मांस शराब जुआ व्यभिचार को त्यागना धर्म है या सात्विक भोजन और शुद्ध आचरण धर्म के लिए आवश्यक है।
११-हिन्दू दृढ़ निश्चय नहीं कर पा रहा कि सभी धर्म सम्प्रदाय ईश्वर उपासना का सत्य मार्ग बता रहे हैं या उनके वेद आदि धर्म शास्त्र ।
१२- हिन्दू समझ रहा है कि सैकुलर व सब धर्मों का सम्मान करते हुए ही वे इनसानियत के धर्म को पा रहा है।लेकिन इसे जानकारी नहीं मिल रही कि उनके वेद आदि शास्त्र ही बताते हैं कि इन्सान कैसे बना जाता है।
१३- हिन्दू को समझ नहीं है कि मन्दिर मूर्तियों पंडितों को चढ़ावा देने से धर्म बचेगा या गुरुकुलों , शास्त्रों के विद्वानों , धर्म प्रचार संस्थाओं को दान देने से।
१४- हिन्दू निर्णय नहीं कर पा रहा कि भाग्य धर्म स्थलों क़ब्रों दरगाहों साईं पाखंडी गुरूओं के पास जाकर धन लूटा कर माथे टेकने से होगा या पुरुषार्थ करने और कर्म फल व्यवस्था से बनेगा
१५- हिन्दू को जानकारी नहीं मिल रही कि ईश्वर उपासना व मोक्ष के लिए यज्ञ योग ध्यान समाधि शुद्ध आचरण करे या तीर्थ यात्रा . गंगा स्नान , कुम्भ स्नान करे।
इतने सारे भ्रम में पल रहा हिन्दू धर्म को जानेगा कैसे मानेगा कैसे और फिर धर्म रक्षा कैसे कर सकता है।इस भ्रम में तो हिन्दू के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा रहा है कि वे करें को क्या करें जाए तो कहाँ जाएँ ।इस भ्रम से निकलने के लिए एक ही पुस्तक मार्ग दर्शन कर सकती है वे है ऋषि दयानंद का सत्यार्थ प्रकाश।लौटो वेदों कि ओर लौटो धर्म कि ओर जिस पर चलते हुए श्री कृष्ण श्री राम ने धर्म रक्षा और धर्म स्थापन की। ०
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