वेदों में विश्व शांति के सूत्र

विश्वशान्ति केवल वेद द्वारा सम्भव
वेद के कुछ मन्त्रों की दिव्य भावनाएं :-

अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।

      (ऋग्वेद ५/६०/५)
      ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा । तुम सब भाई-भाई हो । सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो ।

सह्रदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि वः ।

अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्न्या ।।
(अथर्व० ३/३०/१)
मैं तुम्हारे लिए एकह्रदयता, एकमनता और निर्वैरता करता हूं । एक-दूसरे को तुम सब और से प्रीति से चाहो, जैसे न मारने योग्य गौ उत्पन्न हुए बछड़े को प्यार करती है ।

ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः ।

अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्वः संमनसस्कृणोमि ।।
(अथर्व० ३/३०/५)
बड़ों का मान रखने वाले, उत्तम चित्त वाले, समृद्धि करते हुए और एक धुरा होकर चलते हुए तुम लोग अलग-अलग न होओ, और एक-दूसरे से मनोहर बोलते हुए आओ । तुमको साथ-२ गति वाले और एक मन वाले मैं करता हूँ ।

सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।

देवां भागं यथापूर्वे संजानाना उपासते ।।
(ऋ० १०/१९१/२)
हे मनुष्यो ! मिलकर चलो, परस्पर मिलकर बात करो । तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें । जिस प्रकार पूर्वविद्वान, ज्ञानीजन सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं, वैसे ही तुम भी किया करो ।

समानी व आकूतिः समाना ह्रदयानि वः ।

समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ।।
(ऋ०१०/१९१/४)
हे मनुष्यों ! तुम्हारे संकल्प समान हों, तुम्हारे ह्रदय परस्पर मिले हुए हों, तुम्हारे मन समान हों जिससे तुम लोग परस्पर मिलकर रहो ।
एकता तभी हो सकती है, जब मनुष्यों के मन एक हों । वेदमन्त्रों में इसी मानसिक एकता पर बल दिया गया है । संगठन का यह पाठ केवल भारतीयों के लिए ही नहीं, अपितु धरती के सभी मनुष्यों के लिए है । यदि संसार के लोग इस उपदेश को अपना लें तो उपर्युक्त सभी कारण जिन्होंने मनुष्य को मनुष्य से पृथक कर रखा है, वे सब दूर हो सकते हैं, संसार स्वर्ग के सदृश्य बन सकता है ।
वेद से ही विश्व शान्ति संभव है।संसार का कोई अन्य तथाकथित धर्म-ग्रन्थ इसकी तुल्यता नहीं कर सकता । वेद का सन्देश
संकीर्णता, संकुचितता, पक्षपात, घृणा, जातीयता, प्रान्तीयता और साम्प्रदायिकता से कितना ऊंचा है।

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