आजकल सभी लोगों में यह होड़ (Competition) लगी है कि "मुझे ऊंचा पद चाहिए, ऊंची नौकरी चाहिए, बहुत अधिक धन चाहिए, बड़ा व्यापार चाहिए, बड़ी प्रसिद्धि चाहिए, बड़ा बंगला चाहिए, बड़ी कार चाहिए, सब महंगे महंगे आभूषण आदि साधन चाहिएं इत्यादि।" "यदि मेरे पास यह सब हो, तो मैं सफल व्यक्ति मान जाऊंगा।"
अर्थात लोगों ने सफलता की परिभाषा यह मान ली है, कि "यदि मेरे पास बहुत अधिक धन आदि भौतिक साधन हैं, तो ही मैं सफल हूं, अन्यथा मैं असफल हूं।" सफलता की यह परिभाषा वास्तव में गलत है।
"व्यक्ति का मुख्य उद्देश्य धन संपत्ति मोटर गाड़ी मकान आदि प्राप्त करना नहीं है, बल्कि सुख शांति आनंद प्रसन्नता संतुष्टि प्राप्त करना है।" "धन आदि वस्तुएं प्राप्त करके भी आप क्या करना चाहेंगे? यही तो करना चाहेंगे, कि आप प्रसन्न या संतुष्ट रहें।"
यदि धन संपत्ति ऊंची नौकरी बड़ा व्यापार बंगला गाड़ी आदि प्राप्त करके भी आप संतुष्ट नहीं हैं, प्रसन्न नहीं हैं, तनाव में हैं, चिंताओं से घिरे हुए हैं, भयभीत हैं, स्वयं को असुरक्षित अनुभव करते हैं, तो यह समझना चाहिए, कि आपका मुख्य उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। "जब आपका मुख्य उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, तो इसका अर्थ है आप असफल हैं।"
"अतः आजकल जो लोग धन आदि भौतिक साधनों की ओर भाग रहे हैं, यदि वास्तव में निष्पक्ष भाव से देखा जाए, तो ये सब लोग असफल हैं।" सफलता तो मुख्य उद्देश्य की पूर्ति में है। "और वह मुख्य उद्देश्य है, प्रसन्नता या संतुष्टि प्राप्त करना।"
"यदि यह मुख्य उद्देश्य थोड़े से धन, छोटे से व्यापार या छोटी नौकरी, छोटे ही पद आदि से भी पूरा हो सकता हो, और चिंता तनाव आदि कुछ न हो या कम से कम हो, तो इसका नाम वास्तविक सफलता मानना चाहिए।"
"कितने ही लोग तो आजकल फल सब्जी बेचकर छोटी-मोटी रेहड़ी लगाकर ऑटो या टैक्सी चला कर भी गुजारे लायक अच्छी मात्रा में धन कमाकर, उतने में ही संतुष्ट हैं। क्या वे अपने जीवन में सफल नहीं हैं? वे थोड़े साधनों में भी संतुष्ट होने के कारण सफल हैं।"
"भौतिक साधनों की प्राप्ति में ही मुख्य सफलता मानकर आज बहुत से लोग आत्महत्या कर रहे हैं। यह बुद्धिमत्ता नहीं, बल्कि मूर्खता है।" "अभी कुछ ही दिन पहले बेंगलुरु में एक 24 वर्ष के युवक ने आत्महत्या की। वह कंप्यूटर विद्या में पारंगत था, और उसकी 54 लख रुपए वार्षिक आय थी। अच्छी कंपनी में काम करता था। फिर भी उसने आत्महत्या की।" "बताइए यह सब प्राप्त करके भी वह कहां सफल हुआ? असफल हुआ।"
सफलता तो इस बात में है, कि "आपके जीवन में जो समस्याएं आती हैं, आप उनको सुलझाना जानते हैं, और आसानी से सुलझा लेते हैं। और यदि स्वयं न सुलझा पाएं, तो दूसरे बुद्धिमान लोगों की सहायता से, अध्यात्म विद्या की सहायता से सुलझा लेते हैं। आप तनाव मुक्त होकर जीवन जी रहे हैं। और थोड़ी सी संपत्ति से भी आप संतुष्ट हैं। इसका नाम असली सफलता है।"
"इसलिए मूर्खों की नकल न करें। बुद्धिमान लोगों का अनुकरण करें। अध्यात्म विद्या को अपने जीवन में धारण करें। बुद्धिमत्ता से काम लें, और असली सफलता को प्राप्त करके आनंद से जिएं।"
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात।”