‘चोर उचक्के डाकू को तुम कहते हो सरकार लिखूं?’
राजकुमार आर्य
दादरी। जब देश आलस और प्रमाद की झपकी लेने लगता है, निराशा निशा चहुं ओर झलकने लगती है, जब देश की फिज़ाओं में चारों ओर एक मौन आह्वान गूंजने लगता है तब कवि आशा की एक किरण बनकर मैदान में आता है और अपनी लेखनी की पैनी धार से निराशा के सारे बादलों को दूर करने का प्रशंसनीय कार्य करने लगता है।
कवि की लेखनी जिन शब्दों को राष्ट्रवासियों के हृदय में उतारने का कार्य करती है वो शब्द एक प्रेरक कविता बन जाते हैं। ये प्रेरक कविता झपकी लेते हुए युवा को झकझोर कर जगाती है और अलसायी पड़ी व्यवस्था की आंखों पर पानी के छींटे मारकर उसे जगाने का कार्य करती है। ‘उगता-भारत’ समाचार पत्र द्वारा काव्य सम्मेलन में जिन कवियों को आमंत्रिात किया गया उनकी प्रत्येक कविता कुछ ऐसा ही संकेत दे रही थी।
महाशय राजेन्द्र सिंह आर्य जी
की 100वीं जयंती पर कवि सम्मेलन
कवि सम्मेलन में हाथरस से पधारे कवि आर्य नरेन्द्र निर्मल ने कहा-
‘उधम को याद कर लें, संकल्प का निराला था।
प्रतिशोध था चुकाया डायर के घर पे जाके’…
कवि मोहन द्विवेदी ने वर्तमान व्यवस्था पर करारा प्रहार करते हुए अपनी कविता को ये शब्द दिये-
‘अपहरणों के धंधों को क्या चांदी का व्यापार लिखूं
जंजीरों की जकड़न को क्या पायल की झंकार लिखूं
निष्ठा और ईमान त्याग कर क्या मैं भ्रष्टाचार लिखूं
चोर उचक्के डाकू को तुम कहते हो सरकार लिखूं?’
कवि दिनेश राज कटारा ने आज के कुछ कवियों द्वारा दूसरों की कविताओं की चोरी कर उन पर अपनी छाप डालने के प्रयास को अनुचित बताया। उन्होने कहा-
‘कविता हर कवि के लिए होती जी की जान।
उसे चुराना छेड़ना है अपराध महान।।’
‘बाबा देवी सिंह निडर’ ने पत्र के वैचारिक पिता महाशय राजेन्द्र सिंह आर्य जी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए माहौल को कुछ दूसरा रूप देने का प्रयास किया-
‘इनकी अतुल कृपा का बदला, नहीं चुकाने आया हूं।
इनकी यादों में शब्दों के सुमन चढ़ाने आया हूं।।
पूज्य महाशय राजेन्द्र सिंह आर्य जी के इस
शताब्दी वर्ष को ही ’निडर’ अमर बनाने आया हूं।।’
माता पिता के प्रति अपने बचपन की यादों को कुरेदते हुए कवि गणपति गणेश की कविता बचपन में झांकने लगी। उन्होने अपने बचपन में झांकते हुए कहा-
‘मात पितुन कौ लाड प्यार हम अब तक भूलि न पाये।
अंगुलि पकरि चलावत कबहूं गोद लिये मुस्काये।।
प्यार भरी मुस्कान ठिठौली पायी जन जन की,
मीठी-मीठी याद पुरानी ढूंढें बचपन की।।’
कवि बलवीर पौरुष ने मुल्क के नौजवान को शहीद अब्दुल हमीद का वास्ता देकर जगाने का प्रयास किया-
‘मुल्क तेरा मुरीद हो जाता,
जग में तू शहीद हो जाता।
हिंद का वास्ता दिया होता,
तू भी अब्दुल हमीद हो जाता।।’
प्रभुदयाल दीक्षित ‘प्रभु’ ने मनुष्य के अंदर मिथ्याभिमान की भावना को ललकारते हुए बहुत ही गंभीर बात कही-
‘पंछी उड़ता गगन में नीचे नजर झुकाय।
तू जमीन पर भी चले ऊपर शीश उठाय।।’
कार्यक्रम के आयोजन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कवि योगेन्द्र साथी एडवोकेट ने माहौल को पुनः देशभक्ति के रंग में रंगने का प्रयास करते हुए कहा-
‘आजाद तूने देश को आजाद कर दिया,
इसे बोस की तलवार ने आबाद कर दिया।
यह देश हिंदुस्तान एक महान देश था,
इसे देश के नेताओं ने बर्बाद कर दिया।।’
धौलपुर राजस्थान से पधारे राम बाबू सिकरवार ने बड़े कष्टों से मिली स्वाधीनता की रक्षा करने के लिए नई पीढ़ी का आह्वान किया-
‘ये स्वाधीनता अब गंवानी नहीं है,
शहीदी चिताएं सिरानी नहीं है।
करे गर कोई बेवफाई वतन से,
समझो वो असल खानदानी नही है।।’
अपने हास्य विनोद के लिए प्रसिद्ध कवि देवेन्द्र दीक्षित ‘शूल’ ने लोगों को हर हाल में हंसने के लिए चैबीसों घंटे तैयार रहने के लिए प्रेरित किया-
‘चारों तरफ हों शूल मत दामन बचाइये।
आप भी गुलाब जैसे हर क्षण मुस्कराइये।।’
कवि शूल ने अपने दिल के शूल को लोगों के सामने कुछ इस प्रकार नई पीढ़ी के श्रवण कुमार पर व्यंग्य कसते हुए निकालने का प्रयास किया-
‘काम करे बूढ़े पिता, सोवे श्रवण कुमार।
चिंतित है मां भारती, कैसे हो उद्धार।।’
कवि सौरभकांत शर्मा ने देश की उस व्यवस्था पर सवाल उठाया जो आतंकवादियांे की शरण स्थली बन चुकी है-
‘आतंकवादियों की शरण स्थली बना जो
ऐसा नहीं देश का विधान होना चाहिए।
अफजल को फांसी देने में जो कांपे हाथ,
पहले उन हातों का ही संधान होना चाहिए।।’
उर्मिलेश ‘सौमित्रा’ ने नौजवानों का आह्वान क्रांति के लिए इन शब्दों में किया-
‘लहू की हर रवानी में जवानी जोश भरती है,
क्रांति की आग हो पागल निगाहों में उतरती है।
तभी तो मातृ भू पर शीश हंस के चढ़ाते हैं,
लहू इसका चढ़ावा है, शहीदों की ये धरती है।’
अनिल बाजपेयी ने पूज्य महाशय राजेन्द्र सिंह आर्य जी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा –
‘जहां दोस्तों की दोस्ती का मान होता है
जहां आर्यों की कद्र और सम्मान होता है।
जहां पूजते हैं हम बड़ों को देवतुल्य सा,
उस घर के कोने-कोने में बैठा भगवान होता है।’
कवियत्री पूनम अदा ने कहा-
‘नहीं जरूरत आज देश को शीरी और फरहाज,
माता मंगल पाण्डे जैसी हमको पुनः जवानी दे दे।
सुभाष चंद्र सा नेता दे दे, अब्दुल सा बलिदानी दे दे,
नारी की इज्जत की खातिर झांसी वाली रानी दे दे।’
कवियत्री श्रीमती अपर्णा शर्मा ने बेवफा शौहर के दिल को आंदोलित करने वाली कविता का पाठ करते हुए कहा-
जब मैं जलूंगी अंतिम बार, तब तुमसे पूछेगा दाह,
जलायेगा कैसे जब तू मुझे अंतिम बार।
इस अवसर पर समाचार पत्र के चेयरमैन देवेन्द्र सिंह आर्य ने प्रारंभ में ही कवियों के लिए अपना निवेदन करते हुए स्पष्ट किया कि आज के सामाजिक व राजनीतिक परिवेश के दृष्टिगत हमें कवि सम्मेलन के माध्यम से राष्ट्र चिंतन व राष्ट्र निर्माण की बात करनी चाहिए। जिससे एक मर्यादित समाज का निर्माण हो सके। उन्होने कहा कि आज के परिवेश में ऐसा सोचना व करना प्रत्येक बुद्धिजीवी का विशेष दायित्व है। उन्होने अपनी कविता को पैनापन देते हुए कहा-
‘आज के इस पावन अवसर पर एक उमंग भरी नई शुरूआत होनी चाहिए।
हास्य व्यंग विनोद से हटकर राष्ट्र निर्माण की कुछ बात होनी चाहिए।।’
श्री आर्य ने पूज्य महाशय जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कविता के माध्यमों से उनका चरित्र चित्रण किया-
तारीफ सिंह के बाल की, मेधावती के लाल की, थी बातें बड़ी कमाल की।
उस ऊंचे भाल की, छाती विशाल की, अनुपम सुंदर गोरे गाल की।।
थी बातें बड़ी कमाल की…।