वैज्ञानिकों ने तोड़ी भाषा की दीवार
कहते हैं विज्ञान के आगे कुछ भी असम्भव नहीं है। भारत समेत पांच देशो के वैज्ञानिकों ने मिलकर भाषा की दीवार तोड़ दी है। वैज्ञानिकों ने ऐसा सिस्टम तैयार किया है, जिसकी मदद से अंग्रेजी समेत अन्य किसी भाषा में बोला गया वाक्य तत्काल आपकी मनचाही भाषा में अनुवादित होकर सुनाई पड़ेगा। “एशियन लैग्वेंज स्पीच ट्रांसलेशन प्रोग्राम” के अंतर्गत भारत सहित पांच देशों के वैज्ञानिकों ने यह कमाल कर दिखाया हैं।
इस सोफ्टवेयर की विशेषता यह है कि भले ही दूसरी तरफ से कोई जापानी, इंडोनेशियाई, थाई, कोरियाई भाषा में बोले लेकिन आपको वह वाक्य हिन्दी में ही सुनाई देगा। स्पीच-टु-स्पीच ट्रांसलेशन सिस्टम” को तैयार करने में भारत की ओर से नोएडा सेक्टर-62 स्मिथ ‘सी-डैक’ के वैज्ञानिकों की मदद ली गई है। वैज्ञानिक यहीं नहीं रुके हैं, वे इस सिस्टम को और आसान बनाते हुए मोबाइल में भी लगाना चाहते हैं। अगर ऐसा हुआ तो वास्तव में एक चमत्कार ही होगा और दुनिया भर में सभी भाषाई दीवारें टूट जाएगी।
जापान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, चीन, कोरिया एवं भारत के वैज्ञानिकों ने मिलकर यह सिस्टम तैयार किया है। एशियाई देशों में भ्रमण करते हुए अब न तो वहां की स्थानीय भाषा सीखने की जरूरत है और न ही अनुवादक रखने की। वैज्ञानिकों ने एक विशेष तरह का ‘स्पीच-टू-टेक्स्ट’ सोफ्टवेयर तैयार किया है, जिसे कम्प्यूटर में लोड कर दिया जाएगा। यह सोफ्टवेयर बोले गये वाक्य को उसी भाषा के टेक्स्ट में बदल देगा। बाद में इस टेक्स्ट का उस भाषा में अनुवाद होगा जिसमें सुना जाता है। यह अनुवाद फिर वॉयस में बदल कर मनचाही भाषा में सुनाई देगा। ‘सी-डैक’ के वैज्ञानिक वीएन शुक्ला ने बताया कि यह सिस्टम पूरी तरह से तैयार है।
जुलाई 2009 को जापान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, चीन, कोरिया और भारत (नोएडा) में एक साथ प्रयोगात्मक तोर पर इसे परखा गया। इसमें हम हिन्दी में बोलते हैं और इस प्रोग्राम से जुड़े अन्य देशों के वैज्ञानिकों को हमारी ओर से बोली गयी बात वहां की स्थानीय भाषा में सुनाई देती है। वैसे ही उधार से वह अपनी भाषा में बोलते हैं और हमें यहां हिन्दी में सुनाई देती है। यह सब इंटरनेट तथा ‘स्पीच-टू-टेक्स्ट’ सोफ्टवेयर की मदद से होता है। इसका उद्देश्य है कि लोग एक दूसरे की भाषा को अपने मातृभाषा में आसानी से समझ सकें और जनसंचार के माधयमों से सभी एशियाई देश एकजुट हो जाएं। ‘स्पीच-टू-स्पीच ट्रांसलेशन सिस्टम’ को तैयार करने में जापान की एनआईसीटी-एटीआर थाईलैंड औरनेशनल इलेक्ट्रानिक एंड कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी सेंटर, इंडोनेशिया की बीपीपीटी चीन के एनएलपीआर-सीएएसआईए तथा भारत से सी-डैक के वैज्ञानिक जुड़े हुए हैं।