यज्ञ शर्मा
व्यंग-विनोद
आदमी पैसा पैदा करना चाहता है। जितना हो सके, उतना पैदा करना चाहता है। अनाप-शनाप पैदा कर सके तो और भी अच्छा। कुछ लोग इसे आर्थिक विकास कहते हैं। और, कुछ लोग बाज़ारवाद। कोई क्या कहेगा, यह इस बात पर निर्भर है कि पैसे के बारे में उसका रुख क्या है। जितना वह चाहता है, उतना कमा पा रहा है या नहीं। किसी का रुख चाहे कुछ भी हो, लेकिन हकीकत यह है कि आज पैसे के बिना किसी का काम नहीं चलता। उनका भी नहीं, जो पूंजीवाद का विरोध करते हैं। दुनिया में सबको पैसा चाहिए। मज़दूर को पेट भरने के लिए चाहिए। सेठ को व्यापार करने के लिए चाहिए। नेता को राजनीति करने के लिए चाहिए। साधु को आश्रम बनाने के लिए चाहिए। चाहे राजनीति हो, व्यापार, अध्यात्म या कोई और, जितने भी काम हैं, आज सब पैसा पैदा करने के लिए किये जाते हैं। तो, दुनिया के ज़्यादातर काम पैसा कमाने के लिए किये जाते हैं। बस, एक काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है- पैसे की खेती! ताज्जुब नहीं कि एक दिन वह भी शुरू हो जाए।
पैसे की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि अपने पास कितना भी क्यों न हो, थोड़े दिन बाद वही कम लगने लगता है। पेट भर जाता है, पर जेब नहीं भरती। इसीलिए इन्सान पैसे पैदा करने के नये-नये तरीके खोजता रहता है। यकीनन, दुनिया के किसी न किसी कोने में बैठा, कोई न कोई इन्सान ज़रूर ऐसा तरीका खोज रहा होगा जिससे पैसे की खेती की जा सके। आख़िर, अनाज उगा कर भी किया क्या जाता है? बेच कर पैसा ही कमाया जाता है न? जब अनाज बेच कर पैसे ही कमाने हैं, तो क्यों न सीधा एंड प्रएडक्ट पैदा किया जाए! गेहूं क्यों उगाना, सीधा पैसे ही उगाओ न!
जिस दिन से पैसे की खेती शुरू हो जाएगी, उसी दिन से उसकी पैदावार बढ़ाने के तरीके भी खोजे जाने लगेंगे। अधिक उत्पादक बीज तैयार किए जाएंगे। विशेष रासायनिक खाद बनायी जाएगी। नोटों की सुरक्षा के लिए ख़ास कीटनाशक ईजाद किए जाएंगे। रासायनिक खाद और कीटनाशक पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं। मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। इन्सान के हित और अहित का सवाल कोई नया नहीं है। इतिहास में यह सवाल अलग-अलग संदर्भों में बार-बार खड़ा होता रहा है। और हर बार इन्सान पैसे को चुनता रहा है। क्योंकि, पैसा कम पड़ जाए तो उसकी भरपाई स्वास्थ्य से नहीं की जा सकती। लेकिन, स्वास्थ्य ख़राब हो जाए तो पैसे से इलाज करवाया जा सकता है। जैसे पैसे, वैसा इलाज!
खेत में पैसे उगाने की बात कपोलकल्पना लग सकती है, लेकिन है नहीं। देखा जाए तो पैसे की खेती शुरू हो चुकी है। आख़िर, किसानों की ज़मीन पर कारखाने लगाने का मतलब क्या है? खेती की ज़मीन पर कारखाने लगाना, मशीन उगाना नहीं तो और क्या है? अगर, आज मशीनें पैदा की जा सकती हैं, कल को नोट भी उगाये जा सकेंगे। बस नयी टेक्नोलॉजी के विकसित होने की देर है। फिर नोट बोये जाएंगे और नोट काटे जाएंगे। एक नोट से दस नोट पैदा कर लिए जाएंगे। इन्सान को नोटों के सिवाय सब कुछ दिखना बंद हो जाएगा। हमेशा से चतुर लोगों का एक ही सिद्धांत रहा है- आज जो मिलता है, हथिया लो। कल किसने देखा है! लेकिन, कल जब इन्सान नोटों का थैला ले कर गेहूं की मंडी में जाएगा, तब क्या होगा? उसे गेहूं नहीं मिलेगा। गेहूं की मंडी नोटों की मंडी बन चुकी होगी। बहुत पहले किसी ने राजा मिडास की कहानी लिखी थी। इन्सान वह कहानी पढ़ता तो है, पर उससे सबक नहीं लेता। क्योंकि वह पूरी तरह से जेब से जुड़ता जा रहा है। आजकल जिस जेब में वह नोट डालता है, एक दिन वह ख़ुद भी उसी में जा गिरेगा। लोग समझते हैं कि राजा मिडास की कहानी कोरी कल्पना है। जी नहीं, राजा मिडास की कहानी हकीकत भी बन सकती है। आपको यकीन नहीं हो रहा हो तो जो कल तक बहुत पैसे वाले थे उन देशों की हालत देख लीजिए।