लखनऊ। कु. मायावती ने आखिर प्रदेश को चार राज्यो में विभाजित करने से सम्बनिधत अपनी सरकार का प्रस्ताव भारत सरकार की सेवा में भेज दिया है। देश के अधिकांश राजनीतिक दलों ने इस प्रकार प्रदेश के विभाजन को राजनीति से प्रेरित बताया है। इसका अभिप्राय है कि या तो वे कु. मायावती के निर्णय से सहमत हैं, और उनके पास कोर्इ ठोस आलोचना करने के लिए शब्द नहीं है, या फिर वे राजनीति में रहकर केवल विरोध की औपचारिकता पूरी करने की राजनीति कर रहें हैं। विपक्ष का अभिप्राय विशेष पक्ष होता है, विरोधी पक्ष कदापि नहीं। सरकार के निर्णय/प्रस्ताव/विधेयक आदि में कोर्इ रचनात्मक सुझाव दे और उसे उसी प्रकार मनवाने का कार्य करे। जबकि विरोधी पक्ष का कार्य होता है सरकारी कार्यो और नीतियों का हर समय और हरसंभव विरोध करना। भारत में विपक्ष विशेष पक्ष न रहकर विरोधी पक्ष हो गया है। पर इसका अभिप्राय यह भी नहीं कि देश में सरकारे लोकतांत्रिक सोच के साथ ही कार्य कर रही है। उनकी कोशिश सदा रहती है कि विपक्ष को झटका और चकमा दिया जाये और अपना काम कर लिया जाये। इसमें विपक्ष को विश्वास में लेकर चलने की भावना नहीं होती अपितु विपक्षी दलों को चिढ़ाने की सी दुर्भावना होती है। इसलिए कर्इ बार विपक्ष जब हक्का बक्का रह जाता है- किसी सरकारी निर्णय को देखकर तो वह हताशा में केवल अपनी भड़ास निकालने के लिए कुछ औपचारिक आलोचना करता है और शांत हो जाता है। ‘सही और सच्ची बात को सब जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? पर सब के सब हमाम में नंगे हैं। इसलिए अपने नंगेपन को छिपाने का असफल प्रयास करते हुए थोड़ी बहुत आलोचना करते हैं। यह आलोचना भी सच्ची नहीं होती। क्योंकि इसमे सच को झूठ की परतों में लपेटकर पेश किया जाता हैं। हाल में कु॰ मायावती सरकार के प्रदेश के विभाजन सम्बन्धी प्रास्ताव की भी यदि चीरफाड़ की जाये तो यह जनहित में हैं, परंतु मायावती ने अपने विरोधियों को राजनीतिक पटकनी दी हैं, तो सारे विरोधी पटकनी की चोट से कराह रहे हैं, पर यह नहीं बता रहे कि पटकनी क्यों दी? चूंकि पटकनी के दांव को सभी दल समय-समय पर एक दूसरे के खिलाफ चलते रहते हैं इसलिए उसे अनुचित मानकर भी अनुचित नहीं कह रहे हैं। आलोचना मायावती सरकार के राज्य पुनर्गठन संबंधी प्रस्ताव की होनी चाहिए, पर आलोचना पटकनी देने के दांवों की गंदी प्रवृत्तियों को अपनी राजनीति का अंग बना लेने वाले राजनीतिज्ञों की भी होनी चाहिए, राजनीतिज्ञों की मानसिकता की भी आलोचना होनी चाहिए। जिन्होने राजनीति को ‘वैश्या जैसी उपाधि तक दिला दी हैं। कु॰ मायावती को भी एक बात पर ध्यान देना चाहिए कि पशिचम प्रदेश नामक प्रांत का अब क्या औचित्य हैं? जब उत्तर प्रदेश हीं नहीं रहा तो ऐसा नाम देना कहां तक उचित हैं? हमारे विचार में इस प्रांत को क्रांति प्रदेश ( 1857 क्रांति मेरठ से प्रारम्भ हुर्इ थी ) तथा पूर्वांचल के प्रांत ( इलाहाबाद में संगम की पवित्रता के –षिटगत ) कहा जाना उचित होगा। नामों में ऐतिहासिकता तथा संस्कृति का बोध होना चाहिए तभी उनकी सार्थकता है। इसके अतिरिक्त बुंदेलखंड में कुल सात जिले रखकर उसे फिर एक छोटा प्रांत बना दिया गया है। जबकि उसमें सुविधाजनक रूप से कुछ और जिले मिलाये जा सकते हैं। इसी प्रकार पूर्वांचल के प्रांत में से कुछ जिले अवध प्रांत को दिये जाने उचित होंगे।